टाइफाइड खत्म करने के लिए भारत में बना पहला टीका

टाइफाइड को पूरी तरह खत्म करने के लिए भारत ने दुनिया का पहला मिश्रित टीका तैयार किया है। पश्चिम बंगाल स्थित राष्ट्रीय जीवाणु संक्रमण अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों ने इस टीका के जरिए सलमोनेला टाइफि और सलमोनेला पैराटाइफी-ए दोनों ही तरह के संक्रमण से बचाव का दावा किया है। भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद ने भारतीय वैज्ञानिकों की इस उपलब्धि की घोषणा की है।   

वैज्ञानिकों के अनुसार, यह पहला ऐसा टीका होगा जो टायफाइड के दोनों प्रकारों से बचाव करेगा। हर साल दुनिया भर में लगभग 10 लाख लोग टायफाइड से प्रभावित होते हैं , जिनमें से अधिकांश मामले भारत और अन्य विकासशील देशों में सामने आते हैं। शोधकर्ताओं ने बताया कि इस टीके का प्रारंभिक परीक्षण चूहों पर किया गया था, जिसमें इसके सकारात्मक परिणाम देखने को मिले। अब इसे बड़े पैमाने पर परीक्षण के लिए तैयार किया जा रहा है।  

विशेषज्ञों का मानना है कि इस टीके के बड़े पैमाने पर उपयोग से टायफाइड के मामलों में  60% तक की गिरावट आ सकती है। यह विशेष रूप से उन इलाकों के लिए फायदेमंद होगा जहां दूषित पानी और खराब स्वच्छता के कारण यह बीमारी अधिक फैलती है।  ICMR के अनुसार, यह टीका सबसे पहले  उच्च संक्रमण वाले क्षेत्रों  में उपलब्ध कराया जाएगा। इसका बड़े पैमाने पर उत्पादन जल्द ही शुरू किया जाएगा, जिससे इसे आम जनता तक पहुंचाया जा सके।  भारत की इस वैज्ञानिक उपलब्धि को वैश्विक स्वास्थ्य के लिए एक बड़ा कदम  माना जा रहा है, जिससे टाइफाइड से होने वाली मौतों और संक्रमण की दर को प्रभावी रूप से नियंत्रित किया जा सकेगा।

कई साल से चल रहा प्रयास  कई बार दवाएं भी बेअसर
साल्मोनेला टाइफी और सालमोनेला पैराटाइफी-ए दोनों के कारण होने वाला आंत्र ज्वर भारत में चिंता का विषय है। भारत में 10 लाख की आबादी पर औसतन 399.2 मामले हर साल मिल रहे हैं, जो टीबी संक्रमण की तुलना में काफी अधिक है।

चूहों पर किया गया शोध
वयस्क चूहों को जब इस द्विसंयोजक ओएमवी-आधारित इम्युनोजेन टीके की तीन खुराक मौखिक रूप से दी गई तो उनमें पर्याप्त एंटीबॉडी विकसित हुई। उसने प्रतिरक्षित चूहों की प्लीहा में विशिष्ट प्रतिरक्षा कोशिका आबादी जैसे सीडी 4, सीडी 8 और सीडी 19 को सक्रिय किया। इसके अलावा टीके ने टीएच 1 और टीएच17 कोशिका-मध्यस्थता प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को भी बूस्ट किया। इस टीकाकरण ने वयस्क चूहों के मॉडल में साल्मोनेला के अलग अलग स्ट्रेन के खिलाफ सुरक्षा प्रदान की है। साथ ही बैक्टीरिया की गतिशीलता और म्यूसिन परतों में प्रवेश करने की क्षमता को काफी हद तक बाधित कर दिया।

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