बीते 10 साल में भारत में लू का प्रकोप तेजी से बढ़ा है। लोगों खासकर शिशुओं और 65 साल से अधिक उम्र के बुजुर्गो को हर साल औसतन आठ दिन भीषण लू का सामना करना पड़ा है। 1990-1999 के दशक के मुक़ाबले शिशुओं के लिए 47 फीसदी और बुजुर्गों के लिए 58 फीसदी अधिक हीटवेव के दिन देखे गए हैं। यह खुलासा स्वास्थ्य और जलवायु परिवर्तन पर द लैसेंट काउंटडाउन की नई रिपोर्ट में हुआ है।
2023 की रिपोर्ट में प्रकाश डाला गया है कि भारतीयों ने हल्की बाहरी गतिविधियों जैसे पैदल चलने के दौरान लगभग 2,400 घंटे, जो 100 दिनों के बराबर है, मध्यम से उच्च गर्मी तनाव का सामना किया। यह आठवां वार्षिक रिपोर्ट WHO और WMO सहित 57 शैक्षणिक संस्थानों और संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों के 122 विशेषज्ञों के योगदान को शामिल करता है।
COP29 से पहले प्रकाशित, रिपोर्ट जलवायु परिवर्तन के स्वास्थ्य पर प्रभाव का देश-विशिष्ट विश्लेषण प्रदान करती है। यह पहचान करता है कि वैश्विक तापमान से जुड़े स्वास्थ्य खतरों पर नज़र रखने वाले 15 संकेतकों में से 10 चिंताजनक नए रिकॉर्ड तक पहुँच गए हैं। इनमें रात के तापमान में वृद्धि और अत्यधिक वर्षा की घटनाएँ शामिल हैं। आर्थिक रूप से, भारत का कृषि क्षेत्र 2023 में श्रम क्षमता कम होने के कारण संभावित आय हानि से सबसे अधिक प्रभावित हुआ, जो 71.9 बिलियन अमरीकी डालर से अधिक है। रिपोर्ट अनुमान लगाती है कि 2023 में भारत में गर्मी के संपर्क में आने के कारण लगभग 181 अरब श्रम घंटे संभावित रूप से खो गए, जो 1990-1999 की अवधि से 50% की वृद्धि है।
21 करोड़ से अधिक लोग आ सकते हैं हैजा की चपेट में
जलवायु परिवर्तन मलेरिया और डेंगू जैसी बीमारियों के प्रसार के लिए भी अनुकूल स्थिति बना रहा है। भारत में 2014-2023 के दौरान तटवर्ती क्षेत्रों में ऐसी स्थिति बनी जो हैजा जैसी बीमारियों के प्रसार के लिए अनुकूल थी। यह बीते 10 साल के मुक़ाबले 23 फीसदी अधिक थी। रिपोर्ट के मुताबिक बीते 10 साल में 21 करोड़ से अधिक लोग अब भारत के तटीय क्षेत्रों से 100 किलोमीटर के अंदर रहते है जहां हैजा जैसी बीमारियां फैलने के लिए अनुकूल परिस्थितियां हैं। रिपोर्ट का ज़ोर है कि अगर अब कदम नहीं उठाये गए तो ये सेहत से जुड़े खतरे बढ़ते रहेंगे।