अक्सर लोग कहते हैं कि नए चावल के मुक़ाबले पुराना चावल ज़्यादा ख़ुशबूदार और ज़ायकेदार होता है।लेकिन सवाल है कि क्या 10 साल पुराना चावल खाना सेहत के लिए ठीक है? इस सवाल पर चर्चा उस समय शुरू हुई जब हाल ही में थाईलैंड के वाणिज्य मंत्री फमथाम वेचायाचाई ने मीडिया के सामने 10 साल पुराने चावल खाकर दिखाए। उनका मक़सद यह साबित करना था कि हाल ही में थाई सरकार की ओर से नीलाम किए जाने वाले 15 हज़ार टन चावल खाने योग्य है।
दरअसल थाईलैंड, सबसे ज्यादा चावल एक्सपोर्ट करने वाला दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा देश है। हाल ही में खबर आई कि थाई सरकार 15 हजार टन चावल को नीलाम करने वाली है। लेकिन कोई देश इन चावलों को खरीदने में दिलचस्पी नहीं दिखा रहा। ऐसा इसलिए क्योंकि थाईलैंड जो चावल नीलाम कर रहा है, वो 10 साल पुराना है। आइए समझते हैं कि इस देश में इतनी बड़ी तादाद में चावल ऐसे ही क्यों पड़ा है। क्या इतना पुराना चावल सेहत के लिए ठीक रहेगा।
थाईलैंड का 10 साल पुराना चावल फिलहाल मुआंग और प्रसांत प्रांत में स्थित दो गोदामों में स्टोर किया हुआ है। इस चावल को 2013-14 में काटा गया था। राज्य सरकार की विवादित स्कीम के चलते, चावल को बेच पाना मुश्किल हो गया था। ऊपर से इन चावलों को गोदाम में रखने के लिए सरकार को अलग से किराया भी देना पड़ रहा है।
क्यों बेकार पड़ा हुआ है चावल का भंडार?
चावल के भारी भंडार का सिलसिला साल 2011 में तब शुरू हुआ जब उस समय के थाई प्रधानमंत्री यंग लिक शिनावात्रा ने एक विवादित स्कीम लागू करवाई। इसके तहत किसानों से मार्केट रेट से ज्यादा दर पर 540 लाख टन से ज्यादा चावल खरीदा गया। स्कीम से किसानों को तो फायदा पहुंचा, लेकिन आम जनता और अंतरराष्ट्रीय व्यापार में देश को उतना ही नुकसान हुआ।
चूंकि सरकार ने बाजार के रेट से ज्यादा पर चावल खरीदा था, इसलिए मुनाफा कमाने के लिए चावल का दाम बढ़ाकर आगे बेचा गया। इससे देश में चावलों की कीमत बढ़ गई, जिससे उसकी खपत पर असर पड़ा। इसके अलावा, अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी थाईलैंड को इसी समस्या का सामना करना पड़ा। नतीजतन, वैश्विक चावल निर्यात रैंकिंग में वो तीसरे स्थान पर खिसक गया। एक आंकड़े के मुताबिक, मई 2014 में जब स्कीम बंद हुई, तो लगभग 18.6 मिलियन टन चावल बिना बिके रह गया। इनमें से अधिकांश चावल को 2018 के दौरान बाजार में लाया गया था।
विवादित स्कीम को लाने वाले तत्कालीन प्रधानमंत्री शिनावात्रा पर इस संबंध में कार्रवाई भी हुई थी। साल 2014 में सैनिक विद्रोह के बाद प्रधानमंत्री यंग लिक शिनावात्रा की सरकार उलट गई थी। इसके बाद साल 2017 में उन पर इस स्कीम की वजह से होने वाले आर्थिक नुकसान के आरोप में मुकदमा चलाया गया, जिसमें उन्हें लापरवाही का दोषी पाया गया। थाईलैंड की गिनती दुनिया के सबसे अधिक चावल निर्यात करने वाले देशों में होती है लेकिन इसके बावजूद वह चावल को मुनाफ़े पर नहीं बेच पाया। वित्त मंत्रालय के अनुसार, इस स्कीम में सरकार को लगभग 15 अरब डॉलर का नुक़सान हुआ।
चावल खरीददारों के मन में संदेह
शिनावात्रा की स्कीम पर चला मुकदमा तो खत्म हो गया, लेकिन थाई सरकार अब भी उस गलती का बोझ ढो रही है। बड़े-बड़े गोदामों में 2013-14 के दौरान काटा गया चावल अब भी स्टोर करके रखा हुआ है। इतना पुराना चावल होने पर दूसरे देश के व्यापारी चावल की गुणवत्ता पर सवाल खड़ा कर रहे थे।
चावलों को लेकर पैदा हुए संदेह को दूर करने के लिए पिछले महीने थाईलैंड के वाणिज्य मंत्री फमथाम वेचायाचाई अधिकारियों और पत्रकारों के एक समूह के साथ चावल के गोदाम पहुंचे थे। वहां उन्होंने मीडिया के सामने भंडार में से निकाले गए ताजा पके हुए चावल खाकर साबित किया कि उनके 10 साल पुराने चावल खाने लायक हैं।
उन्होंने मीडिया के प्रतिनिधियों को चुनौती देते हुए कहा कि वह चावल के किसी भी थैली में छेद कर चावल की क्वॉलिटी चेक कर सकते हैं। थाई वाणिज्य मंत्री ने स्वास्थ्य मंत्रालय की एक लैब में उन चावलों की जांच की और उसके नतीजे मीडिया प्रतिनिधियों से साझा किए। उनका कहना था कि जांच के दौरान चावल में ज़हरीले केमिकल नहीं पाए गए। लेबोरेटरी के अनुसार, उस पुराने चावल की पौष्टिकता अभी मार्केट में मिलने वाले चावलों से अलग नहीं थी।