जलकुंभी की भस्म से तैयार किए कैप्सूल्स, अब इन बीमारियों का होगा इलाज

जलकुंभी के बारे में आप सभी जानते होंगे। अक्सर ठहरे हुए पानी में उग आने वाला यह जंगली पौधा तेजी से बढ़ता है। इसे एक समस्या के तौर पर भी जाना जाता है, इसके उग आने से पानी में ठहराव आ जाता है और बदबू आने लगती है, लेकिन नई शोध में इस जंगली पौधे के कई गुण सामने आए हैं। जलकुंभी की भस्म के प्रयोग से हाइपर थायराइडिज्म के रोगियों को काफी राहत मिल सकती है। इसमें ऐसे तत्व पाए गए हैं जो इस खतरनाक बीमारी से दूर रहने में मदद करते हैं। जलकुंभी की भस्म से मोटापा, बाल गिरना, याददाश्त कमजोर होना, रूखी त्वचा, माहवारी, पेट की समस्या व हाथ-पैरों में ऐंठन जैसी बीमारियों से भी राहत मिलती है। उत्तर प्रदेश के लखनऊ स्थित राजकीय आयुर्वेदिक मेडिकल कॉलेज में हुए शोध में जलकुंभी की यह विशेषताएं सामने आई हैं। यहां डॉक्टर्स ने जलकुंभी की भस्म से कैप्सूल्स तैयार किए हैं।

02 साल की मेहनत से बनाया कैप्सूल

राजकीय आयुर्वेदिक मेडिकल कॉलेज में कार्य चिकित्सा विभाग के प्रमुख डॉ कमल सचदेवा, डॉ अनंत कृष्णा और डॉ सोनल चौधरी जलकुंभी की भस्म से ऐसी दवाएं बनाई हैं, जो थायराइड जैसे रोगों में आराम पहुंचाती हैं। इस शोध में उन्हें 02 साल का वक्त लगा है। इस बारे में डॉ. कमल ने बताया कि पिस्टिया स्ट्रेशियोट्स प्रजाति की जलकुंभी लेकर इसे 21 बार गोमूत्र डालकर सामान्य तापमान पर सुखाया गया। इस प्रक्रिया को ‘भावना’ कहा जाता है। इसके बाद इस जलकुंभी का भस्म बनाया गया और इससे कैप्सूल तैयार किया गया है। अभी इस पर और शोध हो रहा है, जल्द ही यह कैप्सूल मरीजों को दिया जाने लगेगा।

मरीजों पर हो चुका है परीक्षण

इस भस्म से बने कैप्सूल का अभी तक 39 मरीजों पर परीक्षण हो चुका है। परीक्षण के लिए मरीजों को दो ग्रुप्स में बांटा गया था। जिसमें पहले ग्रुप में 17 मरीज रखे गए थे वहीं दूसरे में 22 मरीज थे। डॉ अनंत ने बताया कि पहले ग्रुप के मरीजों को जहां जलकुंभी की भस्म से बने कैप्सूल दिए गए वहीं दूसरे ग्रुप के मरीजों को कैप्सूल व पिपली, गुग्गल भी दी गई। परिणाम में स्पष्ट हुआ कि दूसरे ग्रुप का परिणाम काफी ज्यादा अच्छा था, वहीं पहले ग्रुप का परिणाम भी सकारात्मक था।

आयुर्वेद में बताई गई हैं विशेषताएं

जलकुंभी अक्सर पोखरों और तालाबों में पाई जाती है। इसकी राख घेंघा और थायराइड रोगियों के लिए रामबाण है। लगभग 2000 साल पहले आयुर्वेद के मनीषी वृंद माधव ने जलकुंभी की विशेषता लिखते हुए कहा था ‘जलकुंभीकजं भस्म पक्व गोमूत्र गालितम्, पिवेत कोद्रव तक्राशी गलगंडोपशांतये’। वर्तमान समय में वैज्ञानिकों की खोज में भी पाया गया है कि जलकुंभी में 0.20 प्रतिशत कैल्शियम, 0.6 प्रतिशत फास्फोरस होता है। विटामिन ए, बी और सी प्रचुर मात्रा में होते हैं। आयुर्वेद के मुताबिक यह शोथहर, रक्तशोधक, पेशाब लाने वाली और दुर्बलता दूर करती है। जलकुंभी की भस्म का प्रयोग करने पर हायपर थायराइडिज्म रोगी की सेहत में काफी हद तक सुधार हो सकता है।

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