समय के साथ-साथ बैक्टीरिया के शक्तिशाली होने से काम नहीं कर रहीं एंटीबायोटिक दवाएं

बैक्टीरियल इन्फेक्शन से होने वाली बीमारियों को खत्म करने के लिए एंटीबायोटिक दवाओं का इस्तेमाल किया जाता है लेकिन चिकित्सक की सलाह के बिना इसका सेवन करना नुकसान पहुंचा सकता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की रिपोर्ट के अनुसार छोटी-छोटी बीमारियों में एंटीबायोटिक दवाओं का इस्तेमाल करने से उनका शरीर पर पड़ने वाला असर कम हो सकता है।

पिछले कुछ सालों में वायरस अधिक शक्तिशाली हो गए हैं जिन पर कई एंटीबायोटिक और एंटीवायरस दवाएं अब काम नहीं करती। जैसे-जैसे समय बीतता जा रहा है बैक्टीरिया और कवक उन दवाओं के प्रति भी प्रतिरोध विकसित कर रहे हैं जो सालों से कारगर रहीं है।

एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस या प्रतिरोध एक स्थिति को माना जाता है, जिसमें दवा आपके शरीर में बीमारी फैला रहे जीवाणुओं को मारने में अ-सक्षम हो जाती है। यानी बैक्टीरिया इतने ताकतवर हो जाते हैं कि उन पर दवाइयों का असर नहीं होता। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार – निमोनिया, गोनोरिया, ट्यूबरक्लोसिस, ब्लड पॉइजनिंग और अन्य खाद्य पदार्थ जनित बीमारियों इलाज और मुश्किल और कई स्थितियों में लगभग नामुमकिन होता जा रहा है। यहां ये बात गौर करने वाली है कि एंटीबायोटिक प्रतिरोधक क्षमता बैक्टीरिया में पैदा होती है।

एंटिबायोटिक रेजिस्टेंस कैसे होता है

अक्सर आपने भी सुना होगा कि आपको एंटीबायोटिक का पूरा कोर्स करना चाहिए और इसकी एक बड़ी वजह भी है। दरअसल किसी भी अन्य सूक्ष्मजीव की तरह ही बैक्टीरिया भी अनुकूल परिस्थितियों में तेजी से बढ़ते हैं। प्रजनन के दौरान बैक्टीरिया के डीएनए में कई बार म्यूटेशन होता है। इनमें से कुछ का कोई प्रभाव नहीं होता, जबकि कुछ घातक रहते हैं तो कुछ बैक्टीरिया को एंटीबायोटिक प्रतिरोधक बनाते हैं जो इनको मारने या इनकी ग्रोथ को कम करने के लिए ली जाती हैं।

ये म्यूटेटेड जीवाणु आगे और प्रजनन करते हैं और संक्रमण का एक ऐसा नया रूप पैदा करते हैं जिसका इलाज पहले इस्तेमाल की हुई एंटीबायोटिक द्वारा मुमकिन नहीं होता। दूसरे शब्दों में कहें तो ये बैक्टीरिया उस एंटीबायोटिक के लिए अपनी प्रतिरोधक क्षमता को विकसित कर चुके होते हैं। ऐसे बैक्टीरिया न सिर्फ खुद से विकसित होने वाले नए बैक्टीरिया (जिनको डॉटर सेल्स कहा जाता है) को ये डीएनए पास करते हैं बल्कि अपने डीएनए के कुछ हिस्से को पड़ोसी बैक्टीरिया को भी ट्रांसफर कर देते हैं।

यही वजह है कि जीवाणुओं को खत्म कर देने के लिए अक्सर एंटीबायोटिक्स की हाई डोज लेने की सलाह दी जाती है और साथ ही मरीजों को भी इसका पूरा कोर्स करने को कहा जाता है। एंटीबायोटिक की प्रतिरोधक क्षमता वाला अगर एक भी बैक्टीरिया जीवित रह जाता है तो वो मरीज के शरीर में प्रजनन के जरिए अपनी संख्या बढ़ा उसे और अधिक बीमार करने में सक्षम होता है।

बैक्टीरिया में एंटीबायोटिक प्रतिरोधक क्षमता बढ़ने के पीछे तीन वजह हो सकती हैं। पहला है एंटीबायोटिक का दुरुपयोग यानी बीमारी इस बैक्टीरिया की वजह से हुई ही न हो और फिर भी दवा दे दी गई हो। दूसरा इसका अत्यधिक उपयोग यानी बहुत हल्के इंफेक्शन में या फिर इलाज में इसकी जरूरत ही न होने पर भी एंटीबायोटिक दे देना। तीसरी वजह है कम डोज लेना यानी इंफेक्शन होने पर एंटीबायोटिक की हल्की या कम डोज लेना।

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