इलाहाबाद हाईकोर्ट का बड़ा फैसला: 69 हजार  सहायक शिक्षक भर्ती-2019 की चयन सूची निरस्त

लखनऊ। इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने सहायक शिक्षक भर्ती-2019 के तहत चयनित 69 हजार अभ्यर्थियों की सूची को खारिज करते हुए राज्य सरकार को आदेश दिया है कि वह इस सूची को नए सिरे से बनाए। न्यायालय ने सरकार को तीन महीने का समय दिया है और कहा है कि सूची बनाते समय 1994 की आरक्षण नियमों की धारा 3(6) और बेसिक शिक्षा नियमावली 1981 का सख्ती से पालन किया जाए।

आरक्षण नियमों का उल्लंघन

न्यायमूर्ति ए.आर. मसूदी और न्यायमूर्ति बृजराज सिंह की खंडपीठ ने इस मामले में फैसला सुनाते हुए कहा कि चयन सूची में आरक्षण नियमों का सही से पालन नहीं किया गया। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि यदि नई सूची बनाते समय किसी वर्तमान में कार्यरत सहायक शिक्षक पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, तो राज्य सरकार की जिम्मेदारी होगी कि वह उस शिक्षक को मौजूदा सत्र का लाभ सुनिश्चित करे, ताकि छात्रों की पढ़ाई में किसी प्रकार का संकट न उत्पन्न हो।

पृष्ठभूमि और विवाद

यह मामला 2018 में शुरू हुआ, जब 69 हजार सहायक शिक्षकों की भर्ती के लिए जारी चयन सूची को लेकर विवाद उठा था। कई अभ्यर्थियों ने इस सूची को गलत ठहराते हुए कोर्ट में चुनौती दी थी। इस विवाद के तहत मार्च 2023 में हाईकोर्ट ने 6800 अभ्यर्थियों की सूची को निरस्त करते हुए राज्य सरकार को पूरी सूची को पुनः जांचने का आदेश दिया था। इसके खिलाफ कुछ अभ्यर्थियों ने हाईकोर्ट की दो न्यायाधीशों की खंडपीठ में विशेष अपील दाखिल की थी, जिसमें अब यह महत्वपूर्ण फैसला आया है।

अधिवक्ताओं के तर्क

अभ्यर्थियों की ओर से पेश अधिवक्ताओं ने कोर्ट को बताया कि 69 हजार सहायक शिक्षक भर्ती प्रक्रिया में आरक्षण नियमों का सही से पालन नहीं किया गया था। उन्होंने यह भी कहा कि आरक्षित वर्ग के 18,988 अभ्यर्थियों को सामान्य श्रेणी में शामिल नहीं किया गया, जबकि उन्होंने 65 प्रतिशत से अधिक अंक प्राप्त किए थे। इससे अन्य आरक्षित श्रेणी के अभ्यर्थियों का चयन नहीं हो सका, जो कि आरक्षण नियमावली का स्पष्ट उल्लंघन है।

राज्य सरकार पर असर

इस फैसले से राज्य सरकार को बड़ा झटका लगा है, क्योंकि अब उसे तीन महीने के भीतर 69 हजार अभ्यर्थियों की नई सूची तैयार करनी होगी। साथ ही, उसे यह सुनिश्चित करना होगा कि नए आदेश के अनुसार कोई शिक्षक मौजूदा सत्र से वंचित न हो। न्यायालय का यह आदेश राज्य सरकार के लिए एक चुनौतीपूर्ण कार्य साबित हो सकता है।

इलाहाबाद हाईकोर्ट के इस फैसले से सहायक शिक्षक भर्ती-2019 की प्रक्रिया में नए सिरे से पारदर्शिता की उम्मीद जगी है। राज्य सरकार के लिए यह जरूरी हो गया है कि वह इस मामले में शीघ्रता से कार्रवाई करते हुए सही और न्यायसंगत सूची तैयार करे, ताकि शिक्षकों और छात्रों दोनों के हित सुरक्षित रहें।

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