'बाइक सिर्फ लड़कों के लिए नहीं होती, हम भी चला सकते हैं : पल्लवी फौजदार

बाइकर पल्लवी फौजदार
18774 फुट की ऊंचाई तक बाइक ले जाने वाली पल्लवी देश की पहली महिला बाइकर हैं। इनका नाम लिम्का बुक में भी दर्ज है। हाल ही में उन्हें मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी ने रानीलक्ष्मी बाई पुरस्कार से नवाजा है।
बाइकर बनने का ये दौर कैसे शुरू किया, दिमाग में कब से जागा से फितूर।
घूमना फिरना हर किसी का शौक होता है मेरा भी बचपन से था। मेरे फादर के पास राजदूत थी वो वही चलाते थे तो कहीं न कहीं एक जुड़ाव होता गया। बड़े होकर भी वो शौक कम होने के बजाय बढ़ता गया। हमारे समय में जब हीरो पुक और लोना जैसी गाड़ियां आती थीं तो लोग वो चलाते थे लेकिन मेरे दिल को हमेशा बाइक ही भाती थी, मेरी कोशिश होती थी कि कैसे भी किसी रिश्तेदार या दोस्त की बाइक मिल जाए तो मैं चलाऊं और मौका मिलते ही मैं उनकी बाइक लेकर गायब भी हो जाती थी।
आपका ये शौक अभी हमारे समाज में अमूमन लड़कियों के लिए नहीं माना जाता है। ऐसी लोगों की सोच बनी हुई है तो क्या आपने भी इस शौक को पूरा करने के बीच ऐसा कुछ झेला या महसूस किया है।
जी बिल्कुल, अब तो फिर भी ये चीजें सामान्य हो रही हैं उस समय लड़की के बाइक चलाने को हमारे समाज में मंजूरी नहीं मिली थी। लोग इसे अच्छी नजर से नहीं देखते थे कई लोग ये बोलते थे लड़कों से टक्कर लेने की कोशिश कर रही हो, बराबर दिखने की कोशिश कर रही हो। लड़कों के शौक पालने से कोई लड़का नहीं हो जाता ऐसे बहुत से ताने सुनने को मिलते थे। लेकिन ये ताने कभी भी मेरा मनोबल तोड़ नहीं पाए, जितना लोगों ने मना किया कि ऐसा न करूं उतनी ही मेरी जिद बढ़ती गई कि अब तो मैं यही चलाऊंगी। बाइक लड़कों के लिए ही नहीं होती हम भी चला सकते हैं।
बाइक चलाना कब से शुरू किया आपने।
मैं कॉलेज बाइक से जाती थी उसके लिए भी लोग मुझे ये बोलते थे कि क्यों करना चाहती हो शौक है तो स्कूटर चला लो। जेनरेशन गैप एक अलग चीज हेती है कि उन्हें हमारी चीजें समझने में थोड़ी परेशानी होती है लेकिन कई बार आपके साथ के हम उम्र लोग जब ऐसी बातें करने लग जाते हैं तो ताजुब्ब होता है। मुझसे भी मेरे दोस्त यही कहते थे कि अगर तुम्हें बोल्ड ही दिखना है तो स्कूटर चला लोए बाइक से क्यों आती हो कॉलेज। उस टाइम मैं कावासाकी से कॉलेज जाया करती थी। तो वो यही बोलते थे बाइक से क्यों कॉलेज जाती हो। मैं उनसे यही कहती थी मेरे लिए ये सिर्फ गाड़ी है अगर आपको नहीं पसंद तो नजरें घुमा लीजिए जरूरी तो नहीं मुझे देखिए ही।
बाइक चलाना तो आपने कॉलेज से शुरू कर दिया था लेकिन अकेले बाइक से दूर-दूर तक घूमने का सफर कैसे शुरू किया।
कहीं न कहीं बहुत सी चीजें होती हैं जिनसे हम महिलाओं को गुजरना पड़ता है कि हम पुरूषों के बराबर काम नहीं कर सकते, हमारी क्षमताएं उनसे कम हैं लेकिन कई जगह महिलाएं ये सााबित कर चुकी हैं कि वो सब कुछ कर सकती हैं तो इसी तरह से मेरा घूमने का जो सफर था वो यहीं से मैंने शुरू किया कि जिस तरह से पुरुष कहीं भी अपनी मर्जी से घूम सकते हैं वो खुद फैसला करते हैं कि उन्हें ये करना है। उनको ये स्वतंत्रता है हमें ये स्वतंत्रता नहीं है तो अगर आप नहीं दोगे तो हम खुद ले लेंगे इस टशन के साथ मैंने बाइक से घूमना शुरूना किया कि जब आपको किसी की इजाजत की जरूरत नहीं है ते मुझे भी नहीं है।
आपके इस सफर में आपके परिवार व माता पिता की क्या भूमिका रही।
मुझे हमेशा उनसे सहयोग मिला। मैंने उनसे ये वादा किया था कि मैं जो भी कर रही हूं या करूंगी अगर आपका विश्वास मेरे साथ है तो उस हर काम में उनका नाम हमेशा रोशन करूंगी। मेरे पति का भी मुझे हमेशा सहयोग मिला उन्होंने मुझे कभी रोका नहीं कभी समाज और लोग क्या कहेंगे की हिदायतें नहीं दी।
सबसे पहली यात्रा आपकी कैसे रही, उससे जुड़े कुछ अनुभव हमें बताइए।
पहले तो डे टू डे लाइफ तक ही सीमित थी बाइक मेरी। लेकिन फिर शहरों से बाहर पहाड़ों पर जाना शुरू कर दिया। सिर्फ इसी जिद् के साथ कि महिलाएं क्या कर सकती हैं क्योंकि मैं ये खाली अपने लिए नहीं निकली थी बहुत सारी उन महिलाओं के लिए भी निकली थी जो अपने जीवन और सपने को न्योछावर कर देती हैं और ये मेरे बचपन का सपना था कि मैं बाइक से घूमना चाहती हूं। मेरी पहली ट्रिप लद्दाख की थी और मेरे अब तक की सारी यात्राएं सोलो ही रही हैं। लद्दाख की ट्रिप 18 दिन की थी। इसमें मैंने कुल 16 पास कवर किए थे जिसमें 8 पास 5000 मीटर से भी ऊंचाई पर थे, जो कि मेरा एक विश्व रिकार्ड भी था।
अभी तक कितने रिकार्ड बनाए हैं आपने।
चार विश्व रिकार्ड मेरे नाम से अब तक दर्ज हो चुके हैं, लिम्का बुक रिकार्ड में भी मेरा नाम है। उत्तराखंड का सबसे ऊंचा पास माना जाता है मानापास जिसकी ऊंचाई 18774 फीट है वहां पहुंची मैं। दूसरा रिकार्ड था देवतार जो कि 5000 मीटर से ज्यादा ऊंचाई पर है ये बदरीनाथ के रास्ते में हैं। चौथे रिकार्ड में मैंने अपना पहला रिकार्ड ब्रेक किया था उडुंगला पहुंच कर जिसकी ऊंचाई 19323 फीट है, ये लद्दाख में पड़ता है।
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