हिम्मत न हारते हुए एक महिला पत्रकार के 'सुपर वूमन' बनने का नाम है नलिनी गुसाईं

नलिनी गुसाईं
आज हमारे साथ हैं, केसीके अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित अमर उजाला देहरादून की पत्रकार नलिनी गुसाईं। उत्तराखंड में चमोली जिले की रहने वाली नलिनी ने कम उम्र में ही पत्रकारिता के क्षेत्र में नए आयाम स्थापित कर दिए हैं।
सबसे पहले तो आपको केसीके अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार और 'बीइंग वूमेन' पुरस्कार के लिए बहुत-बहुत बधाई।
धन्यवाद।
पत्रकारिता में अपने अब तक के सफर के बारे में कुछ बताइए?
करीब 9 साल से पत्रकारिता में हूं, अमर उजाला देहरादून से पहले अमर उजाला कॉम्पैक्ट, NNI न्यूज एजेंसी, शाह टाइम्स और उत्तर उजाला में काम किया है।
जिस खबर के लिए आपको केसीके अवार्ड मिला, वो खबर आपको कैसे मिली?
ऑफिस में एक गोपनीय पत्र आया था जिसमें इस तरह के गोरखधंधे के बारे में लिखा था, उसके बाद मैं देहरादून के नारी निकेतन गई और वहां स्टिंग ऑपरेशन किया। इस वीडियो क्लिप में मूक बधिर दो संवासिनियों ने इशारों में शोषण की कहानी को बयां किया है।
इस खबर के बारे में कुछ बताएं?
नारी निकेतन में मूकबधिर संवासिनियों का शोषण हो रहा था, इस खबर के बाद हालात सुधरे, दोषियों को जेल हुई और कई स्टॉफ सस्पेंड हुए।
आपके साथ इस खबर पर और किसने काम किया?
वैसे तो पूरे अमर उजाला देहरादून परिवार ने इस खबर में मेरी मदद की लेकिन.. राकेश शर्मा, अभिषेक सिंह और गौरव मिश्रा जी का अहम योगदान रहा। इन तीनों लोगों को भी यह अवार्ड मेरे साथ मिला है। इसके अलावा हमारे सिटी इंचार्ज अरुणेश पठानिया जी ने मुझे इस खबर को प्रस्तुत करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया, उनका भी बराबर का श्रेय है।
इस खबर को करते हुए कभी किसी ने कोई धमकी दी या कोई डर मन में आया था?
उस समय डर तो लगता था, रात को ऑफिस से घर जाते समय डरती थी। ये सोचती रहती थी, कोई मेरी बेटी को ही न उठा ले। लेकिन मैंने हिम्मत नहीं हारी और आगे बढ़ती गई।
पत्रकारिता में आप किसको फॉलो करती हैं, किससे आपने अब तक सबसे ज्यादा सीखा?
वर्तमान में अमर उजाला देहरादून के संपादक हरीशचंद्र सिंह जी ने मुझ पर भरोसा जताते हुए बड़ी जिम्मेदारी दी, उनसे मैंने बहुत कुछ सीखा है। इसके अलावा उत्तर उजाला में काम करते हुए उस समय के संपादक जय सिंह रावत से काफी कुछ सीखा है।
एक लड़की का रिपोर्टिंग करना कितना चैलेंजिंग होता है?
बहुत मुश्किल होता है! घरवाले और रिश्तेदार इस काम को पसंद नहीं करते। खासकर रात को घर जाने वाली लड़की को हमेशा गलत नजरों से देखा जाता है।
बतौर सिंगल मदर आप अपनी बेटी और परिवार के साथ कैसे तालमेल बैठाती हैं ?
मेरी बेटी बहुत समझदार है, वो मुझे बहुत सपोर्ट करती है। मेरी मां और भाभी की वजह से मैं ये कर पा रही हूं।
अपने परिवार के बारे में कुछ बताएं?
मेरे पिता सिचाई विभाग में थे, परिवार की माली हालत उतनी अच्छी नहीं थी। हम चार भाई-बहनों की पढ़ाई विकासनगर में हुई। मैंने डीएवी से बीएससी की पढ़ाई की, पत्रकार बनने का मेरा सपना था, आर्थिक हालात ठीक नहीं होने के कारण मैं यह कोर्स नहीं कर पा रही थी। बीएससी की पढ़ाई पूरी करने के बाद मैं चकराता चली गई जहां मैं बच्चों को कंप्यूटर और ट्यूशन पढ़ाने लगी। तभी मेरे बड़े भाई जिनकी नई-नई जॉब लगी थी उन्होंने किसी तरह पैसों की व्यवस्था करके मेरा एडमिशन पत्रकारिता में करवाया। 2009 में मेरी शादी के ठीक 9 दिन पहले मेरे भाई का देहांत हो गया, उसके 6 महीने बाद ही मेरे पिता भी चल बसे।
भविष्य की क्या योजनाएं हैं? क्या कोई किताब लिखने की सोच रही हैं?
किताब तो लिखना है, लेकिन अभी उसके बारे में कोई तैयारी नहीं है।
भविष्य के लिए आपको बहुत-बहुत शुभकामनाएं...
धन्यवाद।
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