'लाडो' की वजह से पूरे देश में जानी गई मेरी ग्राम पंचायत: सुनील जागलान
आपने अपने गांव को सुधारने के लिए क्या प्रयास किए?
मैं पहली बार 6 जून 2010 को अपने बीबीपुर गाँव (हरियाणा के जींद जिले का एक गांव) का सरपंच बना। गाँव के सरपंच चुने जाने के बाद मैंने अपने पहले भाषण में कहा कि मैं अभी नहीं जानता कि कैसे काम करूंगा लेकिन मैं वादा करता हूँ कि मैं अपने ग्राम पंचायत का देश भर में नाम रोशन करूँगा। इसके बाद सबसे पहले मैंने अपनी ग्राम पंचायत की वेबसाईट बनाई जिस पर गांव की पूरी जानकारी, पंचायत के कार्यों का लेखा जोखा व वोटर लिस्ट सब ऑनलाइन करके देश की पहली हाईटेक ग्राम पंचायत बनाया, जिससे पंचायत को देशभर में सुर्खियों में ला दिया। इसके साथ गाँव में स्वच्छता पर कार्य करना शुरू किया। इसके बाद सोलर ऊर्जा के क्षेत्र में कार्य किया जिसके लिए जिला स्तर पर 50 हजार पर प्रथम स्थान प्राप्त किया। समय-समय पर मैं अपनी ग्राम पंचायत में अलग-अलग तरीके के नवाचार करता रहा।
लाडो योजना शुरू करने का ख्याल कैसे आया?
मेरी जिंदगी में सबसे बड़ा बदलाव दिनांक 24 जनवरी 2012 को आया जब एक प्राइवेट अस्पताल में मेरी बेटी का मध्यरात्रि में जन्म हुआ। बेटी होने की सूचना देने के लिए आई अस्पताल की एक नर्स जिसके चेहरे के भाव बड़े अजीबोगरीब थे उसने आकर हल्की सी आवाज में कहा था कि बेटी हुई है। यह सुनते ही मेरे चेहरे पर खुशी की भावनाएं थी। मैंने अस्पताल से जाते समय नर्स को दो हजार रुपये देते हुए कहा कि सुबह अस्पताल में मिठाई बांटना और कहना कि बीबीपुर के सरपंच के यहां बेटी पैदा हुई है। फिर नर्स ने कहा कि हम यह नहीं ले सकते आप 100 रुपये दे दीजिए, अगर लड़का होता तो हम इससे ज्यादा ले लेते, और डाक्टर भी गुस्सा हो जाएगी। यह मेरी जिंदगी का पहला वक्या था। जब मेरे चेहरे की खुशी को कम करने की कोशिश की। जब मैं पिता बनने की खुशी में अगले दिन मिठाइयां बांटने लगा तो कुछ अधिकारियों ने सीधे ही बेटा होने की बधाई दे दी।
आपने अपनी बेटी के होने पर भी परंपराओं से अलग हटकर कुछ किया था?
हां, जब मेरी बेटी पैदा हुई थी उसी दिन रात को परम्परा से हटकर मेरी बहन रीतू ने थाली बजाई थी। इसके बाद जब तक मेरी बेटी के छटी के गीत नहीं गवाए गए तब तक लोगों को यही लगा कि थाली बजाई गई है तो सरपंच को बेटा ही हुआ होगा। छठी के गीत गवाए जाने पर लोगों को पता लगा कि बेटी हुई है, तो सभी आश्चर्यचकित हो गए। कई दिन तक नर्स से लेकर गांव में बने इन हालातों की बाते मेरी जहन में घुमती रही। इसके बाद जब मैंने गांव का पहली बार लिंगानुपात जाना, तो इसमें कन्या शिशु की संख्या बहुत कम थी। इसके बाद मैंने बेटियों की संख्या बढ़ाने के लिए कई छोटी-छोटी मिटिंग की और 18 जून 2012 को कन्या भ्रूण हत्या रोकने के लिए गांव की चौपाल में महिला ग्राम सभा के आयोजन की मुनादी गांव के चौकीदार द्वारा करवाई। यही से मैंने बेटी बचाओ अभियान शुरू किया। मैंने मुनादी तो करा दी लेकिन पता चला कि महिलाएं चौपाल में नहीं जाती, पंचायत के पास से गुजरती है तो घुंघट करके ही निकलती है। हमारे हरियाणा में समझा जाता है कि चौपाल पुरुष प्रधान समाज का ही एक मुखौटा होता है। इसके बाद मैंने गांव की महिलाओं से बातचीत करके उन्हें विश्वास दिलाकर की हम आपके लिए ही कुछ बेहतर करने की कोशिश करेंगे, इसमें हमें आपका साथ चाहिए। इन बातों पर विश्वास करके गांव से 250 से ज्यादा महिलाएं पहली बार चौपाल में एकत्रित हुई। फिर मेरी सुनील ने बेटी के पैदा होने पर नर्स व अधिकारियों की प्रतिक्रियाओ का पूरा किस्सा बताया तो उन्होंने कहा कि हमेशा ऐसा ही तो होता है। इसमें नया क्या है?
कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए आपने जो प्रयास किए उनके बारे में कुछ बताएं।
चौपाल में महिलाएं सामने आई और जब सबके सामने कन्या शिशु के कम जन्म होने के आंकड़े सामने रखे गए तो गांव की बुजुर्ग महिला शीला देवी ने कहा कि हम तो पुराने समय से सुनते आए है कि बेटा ही वंश चलता है और अगर किसी को ज्यादा लड़कियां पैदा होती है तो उन्हें पेट के अंदर ही मरवा दिया जाता है। फिर इस तरह की बातें ग्राम सभा में हुई कि यह अकेले बीबीपुर की नहीं बल्कि देश में बहुत जगह ऐसा ही होता है। इसके बाद काफी विचार विमर्श करके हमनें गांव में कन्या भ्रूण हत्या को समाप्त करने के लिए कमेटी का गठन किया। साथ ही निर्णय लिया कि गर्भवती महिलाओं को उनका रजिस्ट्रेशन भी पहले दो माह के अंदर ही करवाना चाहिए। इसके बाद हमने कन्या भ्रूण हत्या रोकने के लिए महा खाप, महा पंचायत का आयोजन 14 जुलाई 2012 को गांव में करवाने का निर्णय लिया। जिसमें हमने हरियाणा, पंजाब, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, राजस्थान की सभी खापों को इस पंचायत में शामिल होने का न्यौता भेजा। इसके बाद हमने यह भी निर्णय लिया कि इस खाप पंचायत में महिलाएं भी शामिल होगी और अपनी बातों को खाप प्रतिनिधियों के सामने रखेगी।
खाप पंचायत में क्या खास था?
जब यह निर्णय हुआ की खाप पंचायत 14 जुलाई को होगी तो उसके आयोजन होने से पहले बहुत सारी महिलाओं की टीमें बनाई, जिनमें काफी पढ़ी लिखी महिलाओं ने कम पढ़ी लिखी महिलाओं व अनपढ़ बुजुर्ग महिलाओं को स्टेज पर बोलने के लिए तैयारी करवाई व महिलाओं को फिल्मों के द्वारा महिला सशक्तिकरण से जुड़ी हुई फिल्में व कन्या भ्रूण हत्या किसी प्रकार की जाती है यह सब मंदिर के हॉल में दिखाया गया। इसका असर यह रहा कि महिलाओं को कन्या भ्रूण हत्या के बारे में पूरी तरह से समझ में आ गया। 14 जुलाई को आयोजित खाप पंचायत में करीबन 125 से ज्यादा खाप पंचायतों ने भाग लिया व सबसे पहले महिलाओं ने अपनी ओजस्वी विचार रखने शुरू किए। गांव की सबसे बुजुर्ग महिला संतोष देवी ने कहा कि हमारे इस सरपंच बेटे ने हमारे सामने पहली बार हमारी आंखों को यह सच्चाई दिखाई है कि भ्रूण हत्या होती कैसे है और समाज के दबाव से महिलाएं भ्रूण हत्या करवा लेती है। हमें इसको रोकना होगा। इसके बाद देशभर से आए हुए खाप प्रतिनिधियों ने भी महिलाओं के विचारों को सुना व इसे रोकने के लिए विभिन्न सुझाव वहां उपस्थित महिला व पुरुषों से मांगे। इसमें कन्या भ्रूण हत्या करने वालों को 302 का दोषी माने जाने का विधयेक पास कराने का निर्णय लिया गया। उसी दिन से इस अभियान की जागरुकता का संदेश देशभर में गया व उत्तर भारत में गोत्र व संगठन खापों का आयोजन होना शुरू हो गया।
आपके काम को सरकार से क्या कोई प्रोत्साहन मिला है?
खाप पंचायत में लिए गए निर्णय का यह असर रहा कि हमारा गांव सुर्खियां बन गई। हरियाणा सरकार द्वारा हमारी ग्राम पंचायत बीबीपुर को एक करोड़ रुपये पुरस्कार भी विकास कार्यों को करवाने के लिए दिया गया। देशभर में फैले सकारात्मक संदेश व पुरस्कारों से मिली हुई ऊर्जा का प्रयोग हमने जगह-जगह पर कन्या भ्रूण हत्या करने वाले संकीर्ण विचाराधारा को खत्म करने के लिए किया और कार्यक्रम का आयोजन किया गया। सोशल मीडिया से युवाओं को जोड़कर इस बुराई को खत्म करने के लिए अभियान शुरू किया।
सुना है, आपने बेटियों के पैदा होने पर किन्नर बुलाने की प्रथा शुरू कराई?
जी हां हमने बेटे और बेटी के बीच के अंतर को खत्म करने के लिए यह निर्णय लिया कि मैं अब हम बेटियों के पैदा होने पर भी किन्नर समाज को अपने घर पर बुलाकर बधाई के गीत गवाएंगे। जिस पर किन्नर समाज ने खुश होकर खुद ही कहा कि हम गांव व शहर में बेटी की बधाई देना खुद शुरू करेंगे। यही नहीं 15 अगस्त 2012 को ध्वजारोहण खुद न करके यह मौका इकलौती बेटी की मां को देने का निर्णय लिया व इसके बाद जगह-जगह विभिन्न ग्राम पंचायतों द्वारा अपनाया गया। इसके बाद हमने ग्राम पंचायत में आए हुए प्रत्येक फंड में महिलाओं द्वारा बताए गए कार्य पर 50 प्रतिशत फंड खर्च करने का फैसला लिया गया। इसके बाद हमारी ग्राम सभाओं में 500 के पार जाने लग गई।
गांव में द्वार-द्वार पर लाडो का नाम लिखने का विचार कैसे आया?
लाडो के सम्मान में हमारी हमारी ग्राम पंचायत को मिल रहे सम्मान के बाद आया। हमारी पहचान लाडो की ही वजह से हो रही थी तो हमने गांव में लगभग 70 लाख से बने गांव के सबसे लंबे रास्ते का नाम लाडो मार्ग रखा। गांव के स्वागत गेट पर गांव बीबीपुर के साथ दी विमन वर्ल्ड लिखा गया। इसके साथ गांव में लाडो स्थल, महिला शक्ति स्थल, महिला चबूतरा, लाडो पुस्तकालय व कंप्यूटर सेंटर का निर्माण करवाया गया। इसके बाद गांव में बेस्ट विमन शेफ ऑफ बीबीपुर प्रतियोगिता का आयोजन करवाया गया। जिसमें गांव से 400 से ज्यादा महिलाएं रस्पी लिखकर पोष्टिक खाना बनाकर लेकर आई तथा प्रथम, द्वितीय, तृतीय व सभी प्रतिभागियों को पुरुस्कार दिए गए। जिसे महिलाओं में स्वस्थ प्रतियोगिताओं में भाग लेने की आदत शुरू हुई।
सेल्फी विद डॉटर का आइडिया किससे प्रेरित था?
अन्तराष्ट्रीय अभियान सेल्फी विद डॉटर के बारे में वे बताते है कि मैं नौ जून 2015 को सोच रहा था कि अबकी 19 जून को जिस दिन मेरा जन्मदिन होता है क्या कार्य करवाऊं तो सामने टीवी पर सलमान खान अभिनेता फिल्म बजरंगी भाईजी का गीत सेल्फी ले ले रे चल रहा था और मेरी बेटी नंदिनी मेरा फोन उठाए सामने के कैमरे से अपना फोटो खिंच रही थी। तो मुझे ध्यान में आया कि इससे जुड़ा हुआ कोई अभियान का आयोजन किया जाए। फिर मेरे को ध्यान आया कि हमारे देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विभिन्न मंचों पर जाकर सेल्फी लेने के काफी शौकीन है और युवाओं में सेल्फी का बहुत ज्यादा क्रेज है तो मैंने सेल्फी विद डाटर अभियान इस दिन से शुरू किया। जिसमें की मैंने सोशल मीडिया व मीडिया के द्वारा कहा कि जो भी व्यक्ति अपनी बेटी के साथ सेल्फी भेजेगा, सेल्फी मेरे व्हाटसएप नंबर 9466014051 पर भेजेगा व तीन सर्वश्रेष्ठ सेल्फी को गांव में कार्यक्रम करके क्रमश: 3100, 2100, 1100 रुपये का नकद पुरुस्कार के साथ ट्राफी व सर्टिफिकट दिए जाएंगे। इसके बाद मेरे व्हाटसएप नंबर पर देशभर से 18 जून शाम तक 794 सेल्फी आई। जिनमें से तीन सर्वश्रेष्ठ सेल्फी को यह इनाम दिए गए।
प्रधानमंत्री द्वारा आपकी चर्चा किस काम के लिए की गई थी?
मेरे द्वारा शुरू किए गए अभियान की चर्चा हर और होने लगी और 28 जून 2015 को माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने मन की बात में मेरे कार्य की सराहना करते हुए कहा था कि हरियाणा के बीबीपुर गांव के एक सरपंच श्रीमान सुनील जागलान जी, उन्होंने एक बड़ा मजेदार इनीशिएटिव लिया। उन्होंने 'सेल्फी विद डॉटर' इसकी स्पर्धा की अपने गांव में ओर एक माहोल ऐसा बन गया कि हर पिता को अपनी बेटी के साथ सेल्फी निकाल कर के सोशल मीडिया में रखने का मन कर गया। ये कल्पना मुझे अच्छी लगी, उसके पीछे कुछ कारण भी हैं। हरियाणा में बालकों की तुलना में बालिकाओं की संख्या बहुत कम है। देश के करीब सौ जिले ऐसे हैं जिसमें भी ये हालत चिंताजनक हैं। हरियाणा में सबसे ज्यादा है। लेकिन उसी हरियाणा का, एक छोटे से गांव का सरपंच बेटी बचाओ अभियान को इस प्रकार का मोड़ दे, तब मन को बहुत आनन्द होता है और एक नई आशा जगती है। इसलिए मैं अपनी प्रसन्नता भी व्यक्त करता हूं। उन्होंने उस समय लोगों से सेल्फी विद डॉटर के साथ जुड़ने के लिए कहा था। उन्होंने बेटियों की फोटो को #selfiewithdaughter पर टैग करने के लिए कहा था। यह सुनकर मन अभीभूत हुआ व प्रधानमंत्री के मुख से अपने अभियान के बारे में प्रशंसा पाकर जो ऊर्जा मिली।
आपने डिजिटल इंडिया विद लाडो अभियान कब शुरू किया?
प्रधानमंत्री द्वारा हमारे कार्यों की प्रंशसा का ही नतीजा रहा कि हमने डिजिटल इंडिया विद लाडो अभियान शुरू किया। जिसमें हमने घरों के बाहर बेटियों के नाम की नेम प्लेट के साथ नेम प्लेट पर बेटियों की ई-मेल आइडी अंकित की। इसके साथ गांव की बेटियों व बहूओं से लिखित रुप में उनकी कहानी मांगी जिसका विषय यह था कि मोबाइल ने उनकी जिंदगी को कैसे बदला। इस अभियान में हजारों लोगों के सामने गांव की महिलाओं व बेटियों ने अपनी कहानियां बताई। जिसमें से तीन सर्वश्रेष्ठ कहानियों को 25000, 15000, 10000 रुपये के पुरुस्कार दिए। यह बड़ा ही अनोखा दृश्य रहा कि गांव की बहूओं ने मोबाइल फोन से हुई दोस्ती, जोकि बाद में शादी में तब्दील हुई की कहानियां भी स्टेज पर सुनाई। इस तरह से हमने विभिन्न अभियान ताऊ-ताई रेंप शो विद बेटी बचाओ डॉयलॉग, पहले बेटी को बचाओ-फिर भगवान को मनाओं, सेल्फी विद डॉटर एंड ट्री, सेल्फी अंगेस्ट डॉवरी, लाडो स्वाभिमान उत्सव-जोकि बेटियों को उनकी आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक व डिजिटल भागेदारी दिलाने के लिए शुरू किया गया। इसके बाद सुनील जागलान के बीबीपुर मॉडल ऑफ विमेन एम्पावरमेंट एण्ड विलेज डवलपमेंट के तहत गांव जिला जींद का तलौडा व करनाल जिले का उडाना गोद लेकर महिला सशिक्तकरण के द्वारा ग्रामीण विकास के सम्प्रत्य पर यह यात्रा जारी की।
पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी से अापके कार्याें की चर्चा क्यों की और आपके मॉडल से वे किस तरह से प्रेरित हुए?
मेरे द्वारा अपनी पंचायत में चलाए जा रहे अभियानों से बड़ा बदलाव आया। मेरे कार्यों को संज्ञान में लेते हुए पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी जी ने हरियाणा के 100 गॉंव गोद लिया और मेरी ग्राम पंचायत के मॉडल को सभी गोद लिए हुए गांवों में लागू किया। राष्ट्रपति भवन की तरफ से मुझे इसकी जिम्मेदारी दी गई। इसके बाद मुझे 9 जून 2017 को राष्ट्रपति भवन में सेल्फी विद डॉटर फांउडेशन व सेल्फी विद डॉटर मोबाईल ऐप का उद्घाटन किया। राष्ट्रपति नप्रणव मुखर्जी जी ने सेल्फी विज डॉक्टर को अन्तराष्ट्रीय अभियान करार देते हुए, मेरी जमकर तारीफ की। वह कहते हैं मैने इस फांउडेशन की सहनिदेशक सुनील ने अपनी पत्नी दीपा ढुल को बनाया ।
आपका फाउण्डेशन सेल्फी विद डॉटर क्या का कार्य कर रहा है?
अब सेल्फी विद डॉटर फाउण्डेशन कर रही है, जमीनी स्तर पर महिला सशक्तिकरण का कार्य कर रही है। गुरूग्राम में सेल्फी विद डॉटर फाउण्डेशन द्वारा आधारभूत तरीके से महिला सशक्तिकरण के द्वारा ग्रामीण विकास किया जा रहा है, जिसका असर गांवों के सकारात्मक माहौल से महसूस किया जा रहा है। सेल्फी विज डॉक्टर फाउण्डेशन द्वारा गुरूग्राम व मेवाड़ में अभी तक 53 लाडो पुस्तकालय खोले गए हैं और सभी गाँवों में टीम लाडो बनाई हैं। 100 गाँवों के सरपंच का व्हाटस अप ग्रुप बनाए गए है जिसमें सार्थक चर्चा रहती हैं।इसके सेल्फी विद डॉटर फाउण्डेशन द्वारा अलीपुर गाँव में बेटियों के नाम से नेमप्लेट लगाई जिसकी जागरूकता के आधार पर लक्ष्मण विहार गुरूग्राम में भी नेमप्लेट लगाई गई। इसके अलावा लड़कियों को सैनट्री नैपकिन भी दिया जाता है।
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