मिसाल: इस राज्य में बनी देश की पहली ट्रांसजेंडर फुटबाल टीम
समाज में जीने का सामान अधिकार मिलने के बाद अब ट्रांसजेंडर समुदाय हर क्षेत्र में अपने कदम बढ़ा रहा है। शिक्षा और मॉडलिंग के साथ ही साथ अब खेल की दुनिया में भी अपना सिक्का जमाने की कोशिश यह समुदाय कर रहा है। जी हां, मणिपुर राज्य में देश की पहली ट्रांसजेंडर फुटबॉल टीम का गठन किया गया है। देश में फुटबाल टीम की स्थिति भले ही ठीक न हो, लेकिन मणिपुर की यह खबर सबको सुखद करने वाली है।
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इस संस्था ने की यह अनूठी पहल
ट्रांसजेंडर समुदाय की बनी पहली फुटबॉल टीम की कहानी अपने आप में अलग है। समाज में जब इस समुदाय की प्रतिभा को कहीं पर खेलने का मौका नहीं मिला तो सभी स्वयं ही आगे आ गए। इन लोगों की बनी टीम में वह खिलाड़ी शामिल है, जिन्हें उनके लिंग के कारण महिला और पुरूष की टीम में खेलने का मौका नहीं मिलता। प्रतिभा के धनी इस समुदाय के खिलाड़ियों की तरफ से की गई पहल से अब उनमें नई शुरुआत की एक उम्मीद दिखाती है। इन लोगों की टीम बनाने में सबसे अहम रोल मणिपुर की राजधानी इंफाल की एक एनजीओ का है। ट्रांसजेंडर टीम तैयार करने में अहम रोल अदा करने वाले वाले एनजीओ का नाम है 'या ऑल'। यह एनजीओ 2017 से ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए काम कर रह है। इसका मुख्य उद्देश्य मणिपुर में रह रहे समलैंगिक लोगों के लिए एक स्वस्थ और सुरक्षित माहौल तैयार करना है। इसके अलावा यह एनजीओ लोगों का मानसिक स्वास्थ्य सुधारने और उनके कल्याण के लिए भी काम कर रहा है। एनजीओ की तरफ से बनाई गई टीम में 14 खिलाड़ी हैं, जिन्होंने आपस में दो टीम बांटकर एक मैच भी खेला।
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ऐसे आया टीम बनाने का विचार
इंफाल में बनी देश की पहली ट्रांसजेंडर टीम की कप्तानी स्ट्राइकर निक के हाथों में है, जबकि दूसरे स्ट्राइकर चाकी हुईड्रोम को उपकप्तान बनाया गया है। भारत के पूर्वोत्तर के राज्यों में फुटबाल का अपना अलग क्रेज है। यहां पर लोग क्रिकेट से कहीं ज्यादा फुटबाल खेलने में रूचि रखते हैं। राज्य में टीम बनाने की जिज्ञासा उपकप्तान चाकी के मन में जगी। बचपन से ही फुटबाल की कलाबाजियों में माहिर चाकी को यह खेल खेलना बहुत ही पंसद है। चाकी को सदमा जब लगा तब उन्हें महिला और पुरुष दोनों ही टीम में जगह नहीं मिली। दोनों ही टीमों में जगह न मिलने की वजह से चाकी ने टीम बनाने की इच्छा जताई और आखिरकार टीम को लॉन्च भी कर दिया गया। राज्य में बीते दिनों शुरू हुए 5 दिवसीय योशांग फेस्टिवल के दौरान 8 मार्च को पहले मैच के साथ ही इसे आधिकारिक तौर पर लॉन्च भी कर दिया गया है। इस तरह से चाकी का एक सपना पूरा हुआ। उपकप्तान चाकी ने कहा, उनका टीम बनाने का उद्देश्य है कि सभी खिलाड़ी इस लोकप्रिय खेल का मजा ले सकें और हम दुनिया को दिखा दें कि मिलने के बाद आखिर हम लोग क्या नहीं कर सकते हैं। चाकी ने राज्य सहित देश की सभी बड़ी फुटबॉल टीम से मदद की अपील की। उन्होंने कहा कि इससे किन्नरों के प्रति समाज की सोच में परिवर्तन आएगा।
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आयोजकों ने कहा, बहुत ही खुश है सभी खिलाड़ी
ट्रांसजेंडर की टीम बनाने में अहम भूमिका अदा करने वाले एनजीओ 'या ऑल' के संस्थापक सदाम हंजबम ने बताया कि टीम के खिलाड़ियों ने जब पहला मैच खेला तो वह लोग बहुत ही खुश नजर आए। उनकी खुशी से हमें भविष्य में ऐसे ही और मैच आयोजित करने की प्रेरणा मिली है। उन्होंने कहा कि हमारा कार्य समाज में किन्नरों को अलग पहचान दिलाना है। हर कोई उन्हें स्वीकार करने से बहुत ही हिचकिचाता है। उन्होंने कहा कि यही वजह है कि फुटबाल के ये खिलाड़ी अपना टैलेंट नहीं दिखा पा रहे थे। उन्होंने कहा कि ऐसे मैचों के आयोजन करने का यही उद्देश्य है कि ये खिलाड़ी अपने खेल का मजा ले सकें और दुनिया को दिखा सकें कि साथ मिलकर ये क्या नहीं कर सकते हैं।
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मणिपुर की पहली ट्रांसजेंडर टीम
स्ट्राइकर- निक (कप्तान), चाकी (उपकप्तान), लेम
मिडफील्डर- नेली, मैक्स, थोई, स्टाइकर लेम और सैंतोई
डिफेंडर- केके, लाला, क्रिस्टीना, थोई एस और मिलर
गोलकीपर- पूजा और सिलेबी
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देश में कुल हैं पांच लाख ट्रांसजेंडर
हमने अपनी इस दुनिया को महिला और पुरुष में बांट रखा है। समाज में महिला और पुरुष के अलावा एक और लिंग के लोग जी रहे। यह इन दोनों से अलग ही नजर आते हैं। समाज के मुताबिक वो लोग भले ही फीट न बैठते हो, लेकिन इनके सपने और इच्छाएं हम जैसी ही होती है। जी हां, अब बात कर रहे हैं देश में ट्रांसजेंडर समुदाय की। देश में 5 लाख से अधिक संख्या वाले ट्रांसजेंडर्स समुदाय के लोगों की जिंदगी के बारे में हम सभी अच्छी तरह से वाकिफ है। साल 2014 में ट्रांसजेंडर्स को सुप्रीम कोर्ट द्वारा थर्ड जेंडर की मान्यता दी गई तो ट्रांसजेंडरों को नौकरी मिलनी शुरू हो गई है। जीने का सामान अधिकार मिलने की वजह से ही यह अब समाज में आगे बढ़ रहे हैं।
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