नवरात्र के पहले दिन माँ शैलपुत्री के बारे में जान लीजिये कुछ खास बातें
Posted By: Team IndiaWave
Last updated on : March 25, 2020
चैत्र नवरात्र आज से आरंभ हो चुका है और आज पहले दिन चैत्र प्रतिपदा पर माँ शैलपुत्री की विधिवत पूजा की जाती है और कलश की स्थापना की जाती है। आज हम आपको बता रहे है माँ शैलपुत्री की पूजाविधि, मंत्र और भोग के बारे में।
माँ शैलपुत्री को पर्वतराज हिमालय की पुत्री माना जाता है। इनका वाहन वृषभ है इसलिए इनको वृषोंरूंढा और उमा के नाम से भी जाना जाता है। देवी सती ने जब पुनर्जन्म ग्रहण किया तो इसी रूप में प्रकट हुयी। इसलिए देवी के पहले स्वरूप के तौर पर माता शैलपुत्री की पूजा होती है। माँ शैलपुत्री की उत्पत्ति शैल से हुयी। नवदुर्गा में प्रथम देवी शैलपुत्री अपने दाहिने हाथ में त्रिशूल धारण करती है। यह त्रिशूल जहां भक्तों को अभयदान देता है, वहीं पापियों का नाश भी करता है। बाएँ हाथ में सुशोभित कमल का पुष्प ज्ञान और शांति का प्रतीक है।
माँ शैलपुत्री का मंत्र
माँ दुर्गा की षोडशोपचार (16 प्रकार) पूजा की जानी चाहिए। नवरात्र के पहले दिन माँ शैलपुत्री स्वरूप की पूजा में सभी नदियों, तीर्थों और दिशाओं का आह्वान किया जाता है। नवरात्र के पहले दिन से आखिरी दिन तक घर में सुबह शाम कपूर को जलाने से नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है। शैलपुत्री का ध्यान एवं जपनीय मंत्र इस प्रकार है...
वंदे वांछितलाभायं, चंद्रार्धकृतशेखराम।
वृषारूढ़ा शूलधरां, शैलपुत्री यशस्विनीम॥
पूणेन्दु निभां गौरी मूलाधार स्थितां प्रथम दुर्गा त्रिनेत्राम्॥
पटाम्बर परिधानां रत्नाकिरीटा नामालंकार भूषिता ॥
प्रफुल्ल वंदना पल्लवाधरां कातंकपोलां तुंग कुचाम्।
कमनीयां लावण्यां स्नेमुखी क्षीणमध्यां नितम्बनीम् ॥
मंत्र
ओम् शं शैलपुत्री देव्यै: नम: ।
माँ शैलपुत्री का भोग
नवरात्र के पहले दिन माँ को सफ़ेद वस्त्र और सफ़ेद फूल और सफ़ेद भोग चढ़ाना चाहिए। साथ ही सफ़ेद बर्फी का भी भोग लगाना चाहिए। माँ के इस पहले स्वरूप को जीवन में स्थिरता और दृढ़ता का प्रतीक माना जाता है। शैल का अर्थ होता है पत्थर और पत्थर को दृढ़ता का प्रतीक माना जाता है। महिलाओं को इनकी पूजा से विशेष फल की प्राप्ति होती है। इसके साथ ही विधि के अनुसार कुंवारी कन्या की पूजा की जानी चाहिए।
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