प्लास्टिक कचरे की समस्या अब वैश्विक चिंता का विषय बन चुकी है। भारत जैसे जनसंख्या वाले देश में, प्लास्टिक उत्पादों का अत्यधिक उपभोग हो रहा है, और कचरा प्रबंधन की कमी से पर्यावरण पर गंभीर प्रभाव पड़ रहा है। हालांकि, हाल के वर्षों में लोग इसके खतरनाक प्रभावों के बारे में जागरूक हो रहे हैं और सरकार ने इसके समाधान के लिए कई पहलों की शुरुआत की है, जिनमें स्वच्छ भारत मिशन प्रमुख है। इस पहल को बढ़ावा देने के लिए छत्तीसगढ़ नगर निगम ने 2019 में भारत का पहला गार्बेज कैफे लॉन्च किया।
गार्बेज कैफे कैसे काम करता है?
इस कैफे में लोग प्लास्टिक कचरे को भोजन के बदले में बदल सकते हैं। गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले लोग, जैसे कि कचरा बीनने वाले, जो पूरी तरह से भोजन नहीं कर सकते, प्लास्टिक कचरे का आदान-प्रदान करके पूरा भोजन प्राप्त कर सकते हैं। सिस्टम के अनुसार, कचरा बीनने वाले 1 किलो प्लास्टिक कचरा बदलकर एक पूरा भोजन प्राप्त कर सकते हैं और 500 ग्राम प्लास्टिक कचरा बदलकर नाश्ता प्राप्त कर सकते हैं।
गार्बेज कैफे का प्रभाव
2019 में लॉन्च होने के बाद, छत्तीसगढ़ के अंबिकापुर स्थित इस पहले गार्बेज कैफे ने शहर में प्लास्टिक कचरे को 66 टन तक कम कर दिया है। 2020 में 292 टन कचरे के मुकाबले, 2024 में यह आंकड़ा 226 टन तक पहुंच चुका है। इसके अलावा, इस पहल ने शहर की वायु गुणवत्ता में भी सुधार किया है। अंबिकापुर को अब देश के सबसे साफ शहरों में से एक माना जाता है।
सरकार ने इस मानवीय पहल के लिए 5 लाख रुपये का बजट मंजूर किया था।
गार्बेज कैफे का सामाजिक प्रभाव
वर्षों से, इस अनोखे गार्बेज कैफे ने शहरवासियों को प्लास्टिक कचरे के पर्यावरणीय प्रभावों के बारे में जागरूक किया है। इस जागरूकता के कारण, शहरवासियों ने इस खतरनाक प्रदूषक, खासकर पॉलीथिन का उपयोग कम कर दिया है।
वातावरण विशेषज्ञों का कहना है कि इस पहल का उद्देश्य पृथ्वी को एक स्वस्थ और सुरक्षित स्थान बनाना है। स्वच्छ भारत मिशन (शहरी) के नोडल अधिकारी रितेश सैनी ने इस पहल के सफल होने की पुष्टि की है। अंबिकापुर के मेयर अजय तिर्की ने भी कैफे के प्रभाव और कचरा प्रबंधन के मामले में इसकी सफलता पर खुशी जताई।
कैफे का दिलचस्प थीम ‘More The Waste, Better The Taste’ न केवल युवाओं को आकर्षित करता है, बल्कि शहर के पुराने लोग भी इस पहल से जुड़ रहे हैं।