केएल सहगल : जिनकी आवाज़ में मोहब्बत का दर्द था, गूगल भी कर रहा है जन्मदिन पर याद

हिंदी सिनेमा में साल 1932 से लेकर 1947 तक बॉलीवुड के सबसे टैलेंटेड सिंगर और एक्टर केएल सहगल का समय रहा। 15 साल तक इंडस्ट्री पर अकेले राज करने वाले बेहतरीन सिंगर केएल सहगल का आज 114वां जन्मदिन है। उनके गाए गानों की बात ही कुछ अलग थी। उन्होंने अगर ‘एक बंगला बने न्यारा, रहे कुनबा जिसमें सारा' से रिश्तों को एक सूत्र में पिरोया तो दूसरी ओर अपनी आवाज में दर्द को बयां करते हुए ‘हाय हाय ये जालिम जमाना' से दुनिया की कड़वी सच्चाई को सामने रखा। ‘बाबुल मोरा नैहर छूटो जाये' से जहां उन्होंने घर छूटने के ग़म को सुनाया तो ‘बालम आये बसो मेरे मन में' से मुहब्बत की किलकारियों को गूंज दी। हम बात कर रहे हैं भारतीय सिनेमा जगत के पहले महानायक कहे जाने वाले के एल सहगल की।
गल ने दिग्गज गायक-अभिनेता को आज उनके 114वें जन्मदिन पर एक शानदार डूडल बनाकर याद किया है। आज का डूडल विद्या नागराजन ने बनाया है जिसमें सहगल को कोलकाता की पृष्ठभूमि में गाना गाते हुए दिखाया गया है।

अपने 15 साल के छोटे से करियर में सहगल ने 36 फिल्मों में ही काम किया। इन 36 फिल्मों में ही उन्होंने 200 गाने गाये। 36 फिल्मों में से सहगल ने 7 बंगाली फिल्में कीं और 28 हिंदी फिल्में की थीं।
सबसे पहले केएल सहगल ने संगीत के गुर एक सूफी संत सलमान युसूफ से सीखे। सहगल को अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़ देनी पड़ी थी। उन्होंने जीवनयापन करने के लिए रेलवे में टाइमकीपर की छोटी सी नौकरी भी की थी। बाद में उन्होंने रेमिंगटन नामक टाइपराइटिंग मशीन की कंपनी में सेल्समैन की नौकरी भी की।
साल 1930 में कोलकाता के न्यू थियेटर शास्त्रीय संगीतकार और संगीत निर्देशक हरिश्चंद्र बाली ने कलकत्ता में उन्हें आर.सी बोराल से मिलवाया। वे सहगल की प्रतिभा से काफी प्रभावित हुए। कोलकाता के न्यू थियेटर के बीएनसरकार ने उन्हें 200 रुपये मासिक पर अपने यहां काम करने का मौका दिया। शुरुआती दौर में उन्हें बतौर अभिनेता साल 1932 में प्रदर्शित एक उर्दू फ़िल्म ‘मोहब्बत के आंसू’ में काम करने का मौका मिला। इसी साल उन्होंने दो और फ़िल्में ‘सुबह का सितारा’ और ‘ज़िन्दा लाश’ में काम किया। साल 1933 में प्रदर्शित फ़िल्म ‘पुराण भगत’की कामयाबी के बाद बतौर गायक कुछ हद तक फ़िल्म उद्योग में उनकी पहचान होने लगी।
साल 1935 में शरतचंद्र चटर्जी के लोकप्रिय उपन्यास पर आधारित पीसी बरूआ निर्देशित फ़िल्म ‘देवदास’की सफलता के बाद सहगल बतौर गायक-अभिनेता शोहरत की बुंलदियों पर जा पहुंचे। इस फ़िल्म में उनके गाये गीत काफी लोकप्रिय हुये। साल 1941 में सहगल मुंबई के रणजीत स्टूडियो से जुड़ गये। साल 1942 में आई उनकी फिल्म ‘सूरदास’ और 1943 में ‘तानसेन’ ने टिकट खिड़की पर सफलता का नया इतिहास रच दिया।
सहगल ने अपने 15 साल के फिल्मी करियर में ऐसा अभिनय किया है कि उन्हें लोग उस अभिनय के लिए सालों साल याद रखेंगे। सहगल ने सिर्फ देवदास जैसी ही बडी़ फिल्म नहीं दी है बल्कि इसके सुपरहिट होने के बाद उन्होंने भक्त, सूरदास, तानसेन, उमर खैयाम, कुरुक्षेत्र और शाहजहां जैसी फिल्मों में भी काम किया है।
केएल सहगल उस समय के उभरते सिंगर्स के लिए एक मोटिवेशन थे। बता दें कि उन दिनों हिंदी सिनेमा के महान गायक मुकेश कुमार भी उभरते कलाकारों की श्रेणी में आते थे। मुकेश कुमार सहगल की इतनी इज्जत करते थे कि उनकी आवाज में ही गाने लगे। कई फिल्मों में उन्होंने सहगल की आवाज में गाया है।
फिल्म जगत को एक अलग मकाम पर पहुंचाने के बाद सहगल ने साल 1947, 18 जनवरी को दुनिया से अलविदा कह दिया था। सहगल एक बहुत ही प्रतिभावान सिंगर थे। इंडस्ट्री के लिए उन्होंने एक लक्ष्य बनाया और उसे वहां तक पहुंचाया भी। फिर अपना काम करके हमेशा के लिए ये दुनिया छोड़ गये।
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