जमालुद्दीन काज़ी से जॉनी वाकर तक का सफर

”इस शराबी को उठाकर बाहर फेंक दो।” गुरूदत्त जी ने नवकेतन फिल्म्स के स्टाफ से कहा। और वाकई में उस शराबी को बाहर कर दिया गया। हालांकि वो कई शराबी नहीं था। वो थे बदरुद्दीन जमालुद्दीन काज़ी। जो उस वक्त तक जॉनी वॉकर नहीं बने थे। क्या था वो किस्सा? चलिए, जानते हैं।

ये तो हम सभी जानते हैं कि बलराज साहनी जी ने एक दिन बदरुद्दीन काज़ी को बस में देखा था। उन दिनों बदरुद्दीन बस कंडक्टर हुआ करते थे। और टिकट बनाते वक्त वो तरह-तरह की आवाज़ें निकालकर लोगों का मनोरंजन करते थे। उनका वही अंदाज़ बलराज साहनी जी को पसंद आ गया। एक दिन बलराज साहनी बदरुद्दीन को अपने साथ लेकर पहुंच गए नवकेतन फिल्म्स के ऑफिस। वहां उन्होंने गुरूदत्त की ओर इशारा करते हुए बदरुद्दीन से कहा,”देखो, वो फिल्म का डायरेक्टर है। उसका नाम गुरूदत्त है। अगर तुमने उसे पटा लिया तो तुम्हारा काम बन गया समझो।”

बदरुद्दीन ने सोचा कि वो ऐसा क्या करें जिससे ये डायरेक्टर खुश हो जाए। वो फिल्मों में काम तो करना ही चाहते थे। चंद फिल्मों में वो क्राउड का हिस्सा बन भी चुके थे। लेकिन अब तो चांस था कि उन्हें फिल्म में कोई रोल मिल जाए। बदरुद्दीन को याद आया कि कुछ साल पहले वो माहिम के मेले में रात को साइकिल पर घूमते हुए तरह-तरह की आवाज़ें निकालकर सामान बेचते थे और तब वो शराबी की नकल भी करते थे। बदरूद्दीन ने उसी शराबी की एक्टिंग करने का फैसला किया। वो शराबी की तरह लड़खड़ाते हुए नवकेतन फिल्म्स के ऑफिस में घुसे और गुरूदत्त को परेशान करने लगे।

थोड़ी देर तक तो गुरूदत्त उस अंजान शराबी को बर्दाश्त करते रहे। लेकिन आखिरकार उनके सब्र का बांध टूटा। उन्होंने नवकेतन पिक्चर्स के स्टाफ से कहा कि इस शराबी को यहां भगाओ। उठाकर बाहर फेंक दो। बदरुद्दीन को जब स्टाफ ने बाहर निकाल दिया तो बलराज साहनी उन्हें फिर से अपने साथ लेकर गुरूदत्त के पास गए और बोले,”गुरू, ये शराबी नहीं है। ये तो शराबी की एक्टिंग कर रहा था। अगर तुम्हें इसकी एक्टिंग किसी काम की लगी हो तो बाज़ी में इसे कोई रोल दे दो।”

बदरुद्दीन की शराबी वाली एक्टिंग गुरूदत्त को वाकई पसंद आई। वो बदरुद्दीन से बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने कहा,”रोल तो है। लेकिन एक ही सीन का रोल है। जेल में देवानंद को एक शराबी चिट्ठी देता है। अगर वो रोल करना चाहो तो वो मैं तुम्हें दे सकता। हूं।” देवानंद जैसे बड़े स्टार के साथ काम करने का मौका भला कोई कैसे ठुकरा सकता था? तो बदरुद्दीन ने भी कहा कि वो बिल्कुल शराबी का रोल निभाएंगे। उन्हें खुशी होगी वो रोल निभाकर और इस तरह गुरूदत्त साहब की बतौर डायरेक्टर पहली फिल्म बाज़ी से बदरुद्दीन काज़ी का भी एक्टिंग का सफर शुरू हो गया।

बाज़ी 1951 में रिलीज़ हुई थी और ज़बरदस्त हिट रही। फिल्म में एक ही सीन में दिखे बदरुद्दीन को लोगों ने बड़ा पसंद किया। वास्तव में उसी सीन से बाज़ी फिल्म में एक बड़ा टर्निंग पॉइन्ट भी आता है। इसलिए दर्शकों की नज़रों में बदरुद्दीन चढ़ गए। उनकी चर्चा सिने लवर्स के बीच होने लगी। लोग नवकेतन के ऑफिस में फोन करके पूछने लगे कि वो शराबी कौन था? अब कौन सी फिल्म में दिखेगा वो? वगैरह वगैरह।

नवकेतन फिल्म्स ने अगली फिल्म अनाउंस की थी टैक्सी ड्राइवर और चूंकि देव आनंद भी बदरुद्दीन से बहुत खुश थे तो उन्होंने तय कर लिया था कि टैक्सी ड्राइवर में भी वो बदरू को किसी ना किसी रोल में ज़रूर लेंगे। दूसरी तरफ गुरूदत्त साहब ने अपनी खुद की फिल्म कंपनी शुरू की। उन्होंने आर पार फिल्म अनाउंस की और उन्होंने भी बदरुद्दीन से कहा कि इस फिल्म में भी तुम काम करोगे और इसमें तुम्हारा रोल अच्छा-खासा लंबा होगा। गुरूदत्त ने तो ये भी कहा कि वो इस फिल्म में बदरुद्दीन के ऊपर एक गाना भी फिल्माएंगे। जीवन में अचानक से आए इतने बदलावों से बदरुद्दीन बड़े खुश थे। उन्हें अपना भविष्य दिखाई देने लगा था।

लेकिन दिक्कत ये थी कि फिल्म इंडस्ट्री में अभी तक उनका कोई नाम नहीं तय हुआ था। बाज़ी में वो दिखे ज़रूर थे। मगर उनका कोई नाम उस फिल्म में नहीं दिया गया था। यानि क्रेडिट्स में बदरुद्दीन का ज़िक्र भी नहीं किया गया था। इस बारे में कई लोगों ने सोचा कि बदरुद्दीन का फिल्मी नाम क्या होना चाहिए। बदरुद्दीन नहीं चाहते थे कि उनका असली नाम यानि बदरुद्दीन काज़ी फिल्मों में इस्तेमाल किया जाए। क्योंकि वो नाम फिल्मी नहीं, धार्मिक नाम ज़्यादा लगता था।

एक दिन देव साहब के बड़े भाई चेतन आनंद ने बदरुद्दीन से कहा कि तुम्हारे लिए ऐसे फोन्स बहुत आते हैं जिसमें लोग पूछते हैं कि वो शराबी कौन था। क्यों ना तुम कुछ ऐसा ही नाम रखो जो शराब से ही मिलता-जुलता हो। कुछ देर की माथापच्ची के बाद तय हुआ कि बदरुद्दीन का फिल्मी नाम होगा जॉनी वॉकर। वो नाम गुरूदत्त को भी पसंद आया और खुद बदरुद्दीन को भी अच्छा लगा और इस तरह बदरुद्दीन काज़ी बन गए जॉनी वॉकर। इस नाम से जो पहली फिल्म उनकी रिलीज़ हुई थी वो थी गुरूदत्त की आर पार। उसके बाद आई टैक्सी ड्राइवर और वो दोनों फिल्में भी बहुत हिट रही थी। फिर तो बदरुद्दीन काज़ी उर्फ जॉनी वॉकर ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।

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