
देश रोया था। तब भी रोया था जब एक युवा गायिका लता मंगेशकर ने “ऐ मेरे वतन के लोगों” गाया था। प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू की आंखों में भी आंसू आ गए थे और देश तब भी रोया था जब सालों बाद, 2022 में वो गीत गाने वाली गायिका लता मंगेशकर ये दुनिया छोड़कर गई थी। बरसों पहले जब लता ने कवि प्रदीप का लिखा “ऐ मेरे वतन के लोगों” गीत गाया था, तब उन्होंने सोचा भी नहीं होगा कि इस दुनिया से वो ठीक उसी दिन विदा होंगी जिस दिन कवि प्रदीप कभी इस दुनिया में आए थे। यानि छह फ़रवरी को। लता का देहांत हुआ था 06 फ़रवरी 2022 को। और कवि प्रदीप का जन्म हुआ था 6 फ़रवरी 1915 को। यानि आज लता की पुण्यतिथि है और कवि प्रदीप का जन्मदिवस है। बात कवि प्रदीप के बारे में करेंगे।
कवि प्रदीप का जन्म मध्य प्रदेश के बड़नगर में हुआ था। उनका वास्तविक नाम रामचंद्र द्विवेदी था। साल 1940 में आई फ़िल्म बंधन से कवि प्रदीप को पहचान मिली थी। मगर साल 1943 में आई किस्मत फ़िल्म के गीत “दूर हटो ऐ दुनिया वालों हिंदुस्तान हमारा है” गीत ने कवि प्रदीप को असली ख्याति दिलाई थी। ये गीत उस वक्त बहुत बड़ा हिट साबित हुआ था। अंग्रेज सरकार इस गीत की लोकप्रियता से इतनी बौखला गई थी कि कवि प्रदीप को सरकार से बचने के लिए भूमिगत तक होना पड़ा था और सिर्फ़ कवि प्रदीप को ही नहीं, फ़िल्म से जुड़े और भी कई लोगों को तब छिपना पड़ गया था।
बात अगर “ऐ मेरे वतन के लोगों” गीत के बारे में करें तो 1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद सेना के जवानों को आर्थिक मदद करने के लिए फ़िल्म इंडस्ट्री की तरफ़ से एक चैरिटी शो का आयोजन किया गया था। शो आयोजित होना था 27 जनवरी 1963 को। शो में राष्ट्रपति राधाकृष्णन व पीएम नेहरू को भी बतौर मेहमान शरीक होना था। फिल्म इंडस्ट्री के कई बड़े और दिग्गज नाम इस प्रोग्राम में शामिल होने वाले थे। नौशाद, सी. रामचंद्र, मदन मोहन, शंकर-जयकिशन व महबूब खान जैसी हस्यितां शो में शामिल होनी थी।
शो से कुछ दिन पहले ही संगीतकार सी.रामचंद्र इस बात से परेशान हो गए कि वो शो में कौन सा गीत परफॉर्म करेंगे। वो शो ऐसा था जिसमें कोई देशभक्ति गीत होना ज़रूरी था। वो फौरन कवि प्रदीप के पास पहुंचे, जो देशभक्ति गीतों के लिए मशहूर थे। कवि प्रदीप ने सी. रामचंद्र के कहने पर गीत लिखने की हामी तो भर दी, मगर एक ताना भी उन्होंने सी. रामचंद्र को मारा। उन्होंने सी. रामचंद्र से कहा,”फ़ोकट का काम हो तो आते हो। वैसे नहीं आते।”
ख़ैर, कवि प्रदीप गीत के बारे में सोचने लगे। एक या दो दिन बाद वो सुबह के वक्त मुंबई के माहिम इलाके में समंदर किनारे टहल रहे थे। तभी उनके दिमाग में कुछ लाइनें आई। मगर उस वक्त उनके पास पैन नहीं था। उन्होंने एक राहगीर से पैन उधार मांगा और सिगरेट के पैकेट पर वो लाइनें लिख ली। फ़िर घर आकर उन लाइनों को एक पूरे गीत में बदला। यूं तैयार हुआ वो अमर गीत “ऐसे मेरे वतन के लोगों।”
27 जनवरी 1963 को दिल्ली में वो शो आयोजित हुआ। बड़ी तादाद में आम नागरिकों के अलावा देश की कई बड़ी हस्तियां भी वो शो देखने आई थी। जब लता ने कवि प्रदीप का लिखा वो गीत मंच से गाया तो अधिकतर लोगोंकी आंखों में आंसू आ गए थे। वो शो भी यादगार बन गया। लेकिन अफ़सोस की बात ये है कि उस शो में शामिल होने के लिए किसी ने कवि प्रदीप को ही बुलावा नहीं भेजा।
साभार : किस्सा टीवी