साल्ट ब्रिज मूवी रिव्यू: परछाई की तरह रिश्तों के भी कोई नाम नहीं होते
कुछ रिश्तों के कोई नाम नहीं होते हैं और ऐसे रिश्तों को भी नाम भी नहीं देने चाहिए। पर सोसायटी ऐसे रिश्तों को आप पर थोप देती है। रिश्तों की उलझनों को सुलझाने की कोशिश निर्देशक अभिजीत देवनाथ ने की है। एंटरटेनमेंट की दुनिया से अलग थोड़ी सी चली, थोड़ी सी थमी और फिर चल देने वाली फिल्म साल्ट ब्रिज है। फिल्म में एंटरटेनमेंट नहीं मिलेगा, पर हम पहले से ही जो मान लेते हैं वो कितना सच है और कितना गलत, ये फिल्म कहने में कामयाब रहती है।
निर्देशक, प्रोड्यूसर, म्यूजिक, लेखक-अभिजीत देवनाथ
अभिजीत देवनाथ ने फिल्म में बसंत और मधु के रिश्तों के बीच जो खाका खींचा है। वही फिल्म है। निर्देशक ने फिल्म को मनोरंजक बनाने का प्रयास नहीं किया है। कुछ मिलाकर ये एक निर्देशक की फिल्म है जो एक ऐसी कहानी कहना चाहता है जो समाज के अंदर का सच है और लोग उसे जीते भी हैं। कुछ कह देते हैं और कुछ नहीं कह पाते। पर ऐसी फिल्में बॉक्स आफिस के कलेक्शन पर कुछ खासा कमाल नहीं दिखा पाती हैं। म्यूजिक उतना असरदार नहीं है।
स्टार कास्ट-राजीव खंडेलवाल, चेल्सी प्रीसटन क्रेफोर्ड, उषा जाधव, कौशिक दास, मयूर कांबले। राजीव खंडेलवाल मेरा मानना है कि एक अच्छे अभिनेता है, पर इंडस्ट्री उनका सही से प्रयोग नहीं कर पा रही है। राजीव खंडेलवाल ने बसंत के किरदार को सही तरीके से निभाया है। जब कोई व्यक्ति कहीं पर फंसता है तो उसके मन का द्वंद देखने को मिलता है। यह राजीव ने पर्दे पर दिखाया है। उषा जाधव ने लिपि का रोल अच्छा किया है। उषा जाधव का और काम देखने का मन करता है। चेल्सी प्रीसटन क्रेफोर्ड ने मधु का रोल निभाया है जो फिल्म की कहानी को कहने में एक अहम भूमिका निभाती हैं।
फिल्म अवधि-1 घंटे 46 मिनट
टिकट के दिए- 140 रुपये
लोकेशन-फिल्म की लोकेशन ऑस्ट्रेलिया है और निर्देशक ने अपने विजन से ऑस्ट्रेलिया को खूबसूरत ही दिखाया है।
फिल्म क्यों देंखे-एंटरटेनमेंट से इतर अगर थियेटर और मल्टीप्लेक्स में जाकर डिफरेंट टाइप की मूवी देखने का अगर शौक है तो।
फिल्म क्यों न देंखे-अगर सिर्फ एंटरटेनमेंट के लिए ही मूवी देखते हैं तो। क्योंकि मूवी एंटरटेनमेंट के लिए नहीं बनी है।
फिल्म समीक्षक- सचिन यादव
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