मगर राजेंद्र कुमार ने उनसे कहा कि नौशाद साहब जो करते हैं, वो बहुत सोच-समझकर करते हैं। आप चिंता मत कीजिए। गाना पूरा रिकॉर्ड होने के बाद आप सुनकर बताइएगा कि गाना कैसा है।” राजेद्र कुमार ने एच.एस.रवैल से कहा। ये किस्सा क्या है? चलिए जानते हैं। और ये किस्सा क्यों आज कहा जा रहा है? क्योंकि ये किस्सा जुड़ा है फिल्म मेरे महबूब के टाइटल सॉन्ग की रिकॉर्डिंग से। और आज मेरे महबूब फिल्म के 61 साल पूरे हो गए हैं। 4 जनवरी 1963 के दिन ये फिल्म रिलीज़ हुई थी। किस्से पर आते हैं।
संगीतकार नौशाद ने फिल्म मेरे महबूब का टाइटल सॉन्ग सिर्फ चार-पांच म्यूज़िशियन्स के साथ रिकॉर्ड किया था। फिल्म के डायरेक्टर-प्रोड्यूसर ए.एस.रवैल ने जब ये देखा तो उन्हें बहुत अजीब लगा। वो फटाफट फिल्म के हीरो राजेंद्र कुमार के पास पहुंचे। उन्होंने राजेंद्र कुमार को बताया कि नौशाद तो सिर्फ चार-पांच लोगों के साथ फिल्म का इतना बड़ा गाना रिकॉर्ड कर रहे हैं। ये गाना भला कैसे अच्छा बनेगा? चूंकि राजेंद्र कुमार की सिफ़ारिश पर ही नौशाद को रवैल साहब ने एज़ ए म्यूज़िक डायरेक्टर कास्ट किया था तो इसिलिए रवैल साहब अपनी शिकायत लेकर राजेंद्र कुमार के पास गए थे।
मगर राजेंद्र कुमार ने उनसे कहा कि नौशाद साहब जो करते हैं, वो बहुत सोच-समझकर करते हैं। आप चिंता मत कीजिए। गाना पूरा रिकॉर्ड होने के बाद आप सुनकर बताइएगा कि गाना कैसा है। फाइनली गाना रिकॉर्ड हुआ और एच.एस. रवैल साहब सहित हर किसी ने वो गाना सुना। सभी को गाना बहुत पसंद आया। फिल्म रिलीज़ हुई तो यही गाना लोगों ने सबसे ज़्यादा पसंद किया। बाद में राजेंद्र कुमार जी ने नौशाद साहब को भी बताया कि कैसे रवैल साहब गाने की रिकॉर्डिंग के वक्त काफ़ी टेंशन में थे। घबरा रहे थे। रवैल साहब कह रहे थे कि नौशाद साहब तो सिर्फ चार-पांच म्यूज़िशियन्स के साथ ही गाना रिकॉर्ड कर रहे हैं।
तब नौशाद साहब ने मुस्कुराते हुए राजेंद्र कुमार जी से कहा कि जब एक शायर या कवि स्टेज पर खड़ा होकर अपनी कोई रचना सुनाता है तो उसके पीछे बड़ा सा ऑर्केस्ट्रा या कई सारे म्यूज़िशियन्स नहीं होते। इसिलिए उन्होंने मात्र चार-पांच वादकों संग ही गाना रिकॉर्ड किया था।