केदारनाथ... इंसान और इश्क दोनों को बचाने का काम इंसाानियत ही करती है!

निर्देशक अभिषेक कपूर ने केदारनाथ को सुंदर तरीके से पर्दे पर दिखाया है। केदारनाथ त्रासदी की याद को ये फिल्म एक बार फिर ताजा कर देती है। फिल्म देखकर केदारनाथ जाने का मन करेगा पर यह सोचेंगे कि अगर वहां जाएं तो क्या गलतियां न करें। वैसे इंसान गलतियां ही करता जा रहा है। अच्छा होगा अगर फिल्म देखकर कुछ गलतियां कम करने लगे।
निर्देशक-अभिषेक कपूर ने फिल्म केदारनाथ के जरिए वहां की खूबसूरती को कैमरे में कैद किया है। जो केदारनाथ नहीं गया तो वो फिल्मों के सीन देखकर वहां जाने के बारे में जरूर सोचेगा। मुक्कू और मंसूर की लव स्टोरी के प्लॉट के जरिए ही फिल्म को पर्दे पर रखा गया है। कुछ लोग जो ज्यादा जानना चाहते हैं और अगर उन्हें केदारनाथ त्रासदी के बारे में नहीं पता है तो वो जरूर जानना चाहेंगे कि आखिर केदारनाथ में यह त्रासदी कैसे आई। फिल्म बनाना एक कठिन काम है, पर फिल्म को और ज्यादा बेहतर किया जा सकता था। क्योंकि ऐसी फिल्मों मेंं बेहतर करने की गुंजाइश हमेशा बनी रहती है। मंसूर के किरदार में सुशांत तो मुक्कू के किरदार में सारा अली खान आप को कैसे लगे हमें जरूर बताइएगा क्योंकि मुझे तो अच्छे लगे।
निर्माता-रोनी स्क्रूवाला, प्रज्ञा यादव कपूर
स्टार कास्ट
केदारनाथ फिल्म में एक अभिनेता के तौर पर है। क्योंकि कहानी में अगर केदारनाथ नहीं होता तो शायद से फिल्म भी नहीं होती। इसलिए लीड रोल में केदारनाथ है। उसके बाद सुशांत सिंह राजपूत, सारा अली खान, नीतीश भारद्वाज, मीर सरवर, निशांत दहिया, सोनाली सचदेवा, पूजा गौड़, अलका अमीन और तरूण गहलोत।
सुंशात सिंह राजपूत दिन पर दिन निखरते जा रहे हैं। कई बातें अब अपने एक्सप्रेशन से भी कह देते हैं उनकी यूएसपी है कि साधरण घर के युवा के रोल में पूरी तरह से फिट हो जाते हैं। सारा अली खान की पहली मूवी है और लगा नहीं कि ये पहली मूवी है उनकी। मां अमृता सिंह की छाप उन पर है। नैन, नक्श वैसे ही हैं। पर ये लगता है कि सारा के अंदर बहुत सारा ऐसा कुछ भरा है जिसे वो कहना चाहती हैं। आगे बहुत से ऐसे मौके आएंगे, हो सकता है जब वो कह पाएंं। नीतीश भारद्वाज की वापसी हुई है। पर सीन कुछ कम उनके हिस्से में आ पाए। अगर आते तो वो और ज्यादा बात कह पाते। निशांत दहिया का हल्का ग्रे शेड ठीक लगा।
फिल्म अवधि-पूरे 2 घंटे की है।
टिकट के दिए- 118 रुपये
स्टोरी, डायरेक्टर, राइटर
अभिषेक कपूर और कनिका ढिल्लन ने मिलकर स्टोरी लिखी है। वहीं स्क्रीन प्ले और संवाद कनिका ढिल्लन ने लिखे हैं। स्टोरी केदारनाथ पर है और उसके इर्द-गिर्द ही घूमती है। मुक्कू और मंसूर की लव स्टोरी। केदारनाथ में आई प्रलय को पर्दे पर दिखाना फिल्म का रोचक पहलू है। पर इस त्रासदी में इतने लोग क्यों मारे गए या लापता हो गए, अगर थोड़ा सा इसके बारे में भी बताते तो अच्छा होता। फिर भी केदारनाथ के सुंदर और भयावह रूप दोनों को दिखाया गया। कह कहते हैं कि तीर निशाने पर है, पर निशाने से जरा सा दूर है।
म्यूजिक-फिल्म का म्यूजिक अमित त्रिवेदी का है और संगीत लिखा है अमिताभ भट्टाचार्या का। दोनों की जोड़ी हर बार की तरह जमती नजर आती है। बाकी असली फैसला म्यूजिक प्रेमी करें कि उन्हें फिल्म का संगीत कैसा लगा और कैसे लिखे गए गाने। अरिजित सिंह और निखिता गांधी को सुनकर ठीक लगा। फिल्म की शुरुआत संगीतमय है जो आपको बांधती है।
लोकेशन
उत्तराखंड में कई केदारनाथ के अलावा कई अन्य जगह पर भी।
फिल्म क्यों देंखे-खूबसूरत केदारनाथ को अगर असल जिंदगी में नहीं देखा है तो पर्दे पर तो देख ही सकते हैं। फिर क्या पता आप भी इसी बहाने केदारनाथ जाने का प्लान बना लें।
फिल्म क्यों न देंखे-अगर जरा-जरा सी बात पर आपकी भावनाएं आहत होती रहती हैं।
नोट-फिल्म का क्लाइमेक्स अच्छा है, पर जरूरी नहीं है कि आप उसे बताकर सबकी फिल्म खराब करें।
फिल्म समीक्षक- सचिन यादव
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