Review: स्लो है 'जग्गा जासूस', लेकिन जमी है रणबीर-कटरीना की जोड़ी

अनुराग बासु ने रणबीर कपूर के साथ मिलकर फिल्म 'बर्फी' का निर्माण किया था जिसे काफी सराहा गया और उन्हें कई अवॉर्ड्स से सम्मानित भी किया गया था। उसके बाद अनुराग बसु ने अपने अगले प्रोजेक्ट के लिए रणबीर कपूर का नाम चुना और उसकी तैयारी शुरु कर दी। उनका ये प्रोजक्ट फिल्म जग्गा जासूस थी।
ब्रेकअप के बाद रणबीर-कटरीना की केमिस्ट्री
अनुराग बासु के लिए यह काफी बड़ा प्रोजेक्ट है जिसमें पहली बार रणबीर कपूर भी प्रोड्यूसर के तौर पर आए हैं और कटरीना संग ब्रेकअप के बाद फिल्म में रणबीर-कटरीना की केमिस्ट्री को देखना भी दिलचस्प होगा।
फिल्म की कहानी
यह कहानी 'जग्गा' (रणबीर कपूर ) की है जो मणिपुर में एक छोटे से अस्पताल में मिलता है और वहीं उसकी परवरिश होती है। जग्गा बोलते हुए हकलाता है लेकिन उसके पिता जग्गा से कहते हैं कि अगर वह गाते हुए बोले तो वह पूरी बातें सही ढंग से बोल पाएगा। स्कूल के दौरान इंग्लिश टीचर की मौत की गुत्थी जग्गा सुलझाता है, फिर कुछ ऐसा होता है कि जग्गा के पिता उसे छोड़कर चले जाते हैं और फिर वह बोर्डिंग स्कूल में अपनी पढ़ाई पूरी करता है। जग्गा के हर जन्मदिन पर उसके पिता उसके लिए एक वीडियो टेप भेजा करते हैं। जग्गा को अपने पिता की तलाश हमेशा से रहती है उसके बाद कहानी में जर्नलिस्ट श्रुति सेन गुप्ता( कटरीना कैफ) की एंट्री होती है, श्रुति का भी एक खास मिशन होता है। जग्गा की मुलाकात श्रुति से होती है और श्रुति के साथ मिलकर जग्गा अपने पिता की खोज में जुटा रहता है। अब क्या जग्गा अपने पिता को खोज पाता है? इसका जवाब आपको फिल्म देखने के बाद ही पता चलेगा।
क्यों देखें
फिल्म की कहानी काफी दिलचस्प है और पिछले 4 सालों से यह बनाई जा रही थी और फिल्म देखते वक्त वाकई इस बात का एहसास होता है कि इस तरह की कहानी को पर्दे पर उतारना काफी मुश्किल काम है। अगर आप अनुराग की फिल्मों के फैन हैं तो उनकी ये फिल्म भी देख सकते हैं।
फिल्म में अनुराग बासु का डायरेक्शन, प्रोडक्शन वैल्यू, कैमरा वर्क ,सिनेमेटोग्राफी, आर्ट वर्क और कई चीजें कमाल की हैं। फिल्म में एडवेंचर के साथ-साथ इमोशनल एंगल भी बहुत अच्छा है जिसे बेहतरीन अंदाज में फिल्माया गया है। साथ ही फिल्म को प्रेजेंट करने का ढंग भी काफी अलग है जैसे शुरुआत में फिल्म देखते वक्त मोबाइल का प्रयोग ना करें या कैरेक्टर्स के नाम दिखाने का अलग ही स्टाइल है।
हकलाते हुए डायलॉग बोलना और अपने किरदार को पूरी तरह से जीने की कला रणबीर कपूर को आती है। इस फिल्म में उनके किरदार को देखकर एक बार फिर कहा जा सकता है कि उन्होंने ने अपना किरदार बखूबी निभाया है। इसके अलावा श्रुति के किरदार में कटरीना कैफ भी शानदार दिख रही हैं और रणबीर संग उनकी केमिस्ट्री भी काफी दिलचस्प है। रणबीर के पिता के किरदार में शाश्वत चटर्जी ने बढ़िया काम किया है और सौरभ शुक्ला का भी काम काबिल-ए-तारीफ है। फिल्म के बाकी सह-कलाकारों का काम भी सहज है।
फिल्म के गाने 'उल्लू का पट्ठा', 'गलती से मिस्टेक', रिलीज से पहले ही हिट है और फिल्म में भी बातचीत छोटे-छोटे गानों के द्वारा ही की जाती है जो देखना काफी दिलचस्प है, फिल्म का बैकग्राउंड स्कोर भी कमाल का है और जैसे-जैसे फिल्म की कहानी आगे बढ़ती है फिल्म का संगीत कहानी को लय में चार चांद लगाता जाता है। फिल्म के संगीत के लिए प्रीतम और अमिताभ भट्टाचार्य की तारीफ किया जाना लाजमी है।
कमज़ोर कड़ियां
फिल्म काफी लंबी है और 2 घंटे 48 मिनट काफी बड़े लगते हैं। फिल्म की एडिटिंग और क्रिस्प होती तो अच्छा होता। फिल्म में एक ही सीन को बार बार दिखाना बोरियत महसूस करवाता है। फिल्म का क्लाइमेक्स काफी अधूरा-अधूरा सा है जिसे सटीक रखा जाता तो फिल्म पूरी लगती। क्लाइमैक्स कमजोर होने के कारण जहन में 'खोदा पहाड़ निकली चुहिया' वाली बात जहन मे आती है। फिल्म के दौरान कई सारे मुद्दों पर एक ही वक्त पर बात की गई है जिसमें हथियारों की स्मगलिंग, रोमांस, पिता पुत्र की कहानी, मर्डर मिस्ट्री, इत्यादि, जिसकी वजह से फोकस बिगड़ता है और अहम मुद्दा भटकता है। फिल्म में कुछ सीन इतने लंबे हैं जिन्हें थोड़ा क्रिस्प करके दिखाया जा सकता है।
रेटिंग: ***
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