ये अनिल विस्वास ही थे जिन्होने मन्नाडे को ब्रेक दिया था

ये कई बरसों पुरानी बात है। सन 1942 के आखिरी महीनों की। अपने चाचा और बंगाल के बहुत नामी गायक के.सी.डे संग युवा मन्ना डे कलकत्ता से बॉम्बे आए थे। उस ज़माने की कुछ नामी हस्तियों का इन्हें सानिध्य भी मिला और उनसे इन्होंने संगीत की तालीम भी हासिल की। हालांकि संगीत की शुरुआती तालीम मन्ना दा को अपने चाचा के.सी.डे से ही मिली थी। के.सी.डे को सी.एन.त्रिवेदी जी ने बुलाया था जो उस ज़माने में बॉम्बे फिल्म इंडस्ट्री में प्रोड्यूसर हुआ करते थे। उन्होंने एक फिल्म कंपनी बनाई थी जिसका नाम था लक्ष्मी प्रोडक्शन्स। के.सी.डे साहब लक्ष्मी प्रोडक्शन में बतौर म्यूज़िक डायरेक्टर आए थे। और मन्ना डे अपने चाचा के असिस्टेंट थे।

उन्हीं दिनों के बॉम्बे के एक और नामी म्यूज़िक डायरेक्टर खेमचंद प्रकाश जी जब पहली दफा युवा मन्ना डे से मिले तो वो इनसे बड़े प्रभावित हुए उन्होंने मन्ना डे साहब से कहा कि बेटा तुम समय निकालकर मुझे भी असिस्ट किया करो। मन्ना डे ने उन्हें भी असिस्ट किया। फिर एक दिन अनिल बिस्वास जी ने भी मन्ना डे से कहा कि जब तुम्हें वक्त मिला करे तो मेरे पास भी आया करो। अनिल बिस्वास के सानिध्य में मन्ना डे ने उर्दू भाषा पर अपनी पकड़ बनानी शुरू की। ये अनिल बिस्वास ही थे जिन्होंने मन्ना डे को पहली दफा किसी फिल्म में गाने का मौका दिया था।

एक दफा की बात है। नामी उस दौर के बहुत नामी प्रोड्यूसर-डायरेक्टर विजय भट्ट व शंकर भट्ट के.सी.डे साहब से मिलने आए। वो चाहते थे कि के.सी.डे उनकी एक फिल्म में गाएं। के.सी.डे साहब ने उनसे कहा कि मैं तो प्लेबैक सिंगिंग नहीं करता हूं। आप मन्ना से गवा लीजिए। तब विजय भट्ट ने कहा कि ठीक है बुलाइए मन्ना को। कौन है मन्ना? के.सी.भट्ट बोले,”ये आपके सामने ही तो बैठा है।” मन्ना को देखकर विजय भट्ट बोले कि ये तो बच्चा है। हमें तो किसी एक्सपर्ट सिंगर की ज़रूरत है। के.सी.डे ने उनसे कहा कि आप इससे एक दफा गवाइए तो सही। आप निराश नहीं होंगे।

अगले दिन विजय भट्ट ने मन्ना डे को प्रकाश स्टूडियो बुलाया। जिस गीत को मन्ना डे उस दिन रिकॉर्ड करने वाले थे उसके म्यूज़िक डायरेक्टर थे शंकरराव व्यास। मन्ना डे ने जब गाना रिकॉर्ड किया तो शंकरराव व्यास इनकी गायकी के कायल हो गए। और कहां तो मन्ना डे उस दिन ट्रायल देने आए थे। और कहां वो बतौर गायक उन गीतों को गाने के लिए चुन भी लिए गए। शंकरराव व्यास जी के सानिध्य में रहकर भी मन्ना डे साहब ने बहुत कुछ सीखा। शंकरराव व्यास जी ने तो मन्ना डे से साल 1943 में आई रामराज्य फिल्म में मराठी भाषा में गीत भी गवा दिए।

उस फिल्म में काजोल की नानी शोभना समर्थ हीरोइन थी। जबकी हीरो थे प्रेम अदीब। सही मायनों में यही वो फिल्म थी जिससे मन्ना डे के पार्श्वगायन करियर की शुरुआत हुई थी। और इस तरह धीरे-धीरे मन्ना डे को बॉम्बे फिल्म इंडस्ट्री में पहचान मिलनी शुरू हो गई। हालांकि ख्याति इन्हें मिली थी साल 1950 में आई बॉम्बे टॉकीज़ की फिल्म मशाल के एक गीत से जो अशोक कुमार पर पिक्चराइज़ किया गया था। और जिसके बोल थे,”ऊपर गगन विशाल। नीचे गहरा पाताल। बीच में धरती वाह मेरे मालिक तूने किया कमाल।” उस फिल्म में संगीत दिया था एस.डी.बर्मन साहब ने। और उसका डायरेक्शन किया था नितिन बोस ने।

एक और कहानी है मन्ना डे जी की। उसका ज़िक्र भी किए देते हैं। ये कहानी साल 1956 में आई फिल्म बसंत बहार से जुड़ी है। इस फिल्म में भारत भूषण मुख्य भूमिका में थे। उनके बड़े भाई ने ये फिल्म प्रोड्यूस की थी। फिल्म का म्यूज़िक कंपोज़ किया था शंकर जयकिशन ने। भारत भूषण जी के भाई चाहते थे कि फिल्म के सभी गीत रफी साहब गाएं। लेकिन शंकर-जयकिशन वाले शंकर जी ने कहा कि इस फिल्म के गीतों को हम मन्ना डे से गवाएंगे। शंकर जी के कहने पर मन्ना दा को इस फिल्म के गीत गाने के लिए साइन कर लिया गया। मन्ना दा ने पहला गीत रिकॉर्ड किया जिसके बोल थे सुर ना सजे क्या गाऊं मैं। उसके बाद एक और गाना उन्होंने रिकॉर्ड किया। फिर लता जी के साथ भी एक गीत में मन्ना डे जी ने जुगलबंदी की। मगर इसके बाद जो गाना शंकर जी ने मन्ना डे को गाने को कहा, उसी को लेकर बवाल हो गया।

शंकर जी ने मन्ना डे से कहा,”मन्ना बाबू। तैयार हो जाइए। कमर कस लीजिए अपनी। आपको एक गीत गाना है जो बड़ा ही ज़बरदस्त है और ड्यूट है।” ड्यूट सुनकर मन्ना दा को लगा कि लता जी या आशा जी के साथ उन्हें गाना होगा। लेकिन शंकर जी ने उन्हें बताया कि ये एक प्रतियोगी गाना है जिसमें आपको महान भीमसेन जोशी जी के साथ गाना है। और कहानी के मुताबिक भीमसेन जोशी जी की आवाज़ में गाने वाला एक्टर हार जाता है। ये सुनकर मन्ना डे हैरान रह गए। उन्होंने साफ इन्कार कर दिया कि वो ऐसा कोई गीत नहीं गाएंगे जिसमें उन्हें भीमसेन जोशी जी को हराना है। शंकर जी ने उन्हें काफी समझाया कि आप तो हीरो के लिए गा रहे हैं और फिल्म की कहानी में हीरो को जिताना ही है। लेकिन मन्ना डे नहीं माने। मन्ना डे बोले कि आप रफी साहब को बुला लीजिए। उनसे गवा लीजिए। मैं तो ये गाना नहीं गाऊंगा।

दरअसल, भीमसेन जोशी शास्त्रीय संगीत का बहुत बड़ा नाम थे। उनके सामने गाना ही मन्ना डे को बहुत चुनौतीपूर्ण लग रहा था। और फिर ऐसा गाना जिसमें भीमसेन जोशी जी को उन्हें हारना हो, वो तो उन्हें बिल्कुल भी हजम नहीं हो रहा था। उस दिन जब मन्ना डे घर लौटे तो उन्होंने अपनी बीवी को पूरी घटना से अवगत कराया और उनसे बोले कि चलो, कुछ दिन के लिए हम पुणे चले जाते हैं। किसी को नहीं बताएंगे कि हम लोग कहां जा रहे हैं। तब लौटेंगे जब ये गाना रिकॉर्ड हो चुका होगा। लेकिन मन्ना दा की पत्नी ने इन्हें समझाया कि आप भूल कर रहे हैं। आपको शायद समझ नहीं आ रहा कि आप फिल्म के लिए गा रहे हैं। ना कि वास्तव में भीमसेन जोशी जी को चुनौती दे रहे हैं। यही तो मौके होते हैं एक गायक के लिए। और आप इसी मौके को छोड़ना चाहते हैं।

पत्नी के समझाने पर मन्ना डे को वो बात समझ में आ गई। और उन्होंने आखिरकार वो गीत रिकॉर्ड किया। गीत के बोल थे केतकी गुलाब जूही। मन्ना डे ने इतनी निपुणता से वो गीत गाया कि भीमसेन जोशी खुद उनके प्रशंसक हो गए। उन्होंने मन्ना डे से कहा कि मन्ना साहब। आप तो बहुत अच्छा गाते हैं। आप लगातार क्लासिकल गायकी करते रहा कीजिए।

आज महान मन्ना डे जी की पुण्यतिथि है। 24 अक्टूबर 2013 को मन्ना डे जी का निधन हुआ था। यानि आज मन्ना डे को इस दुनिया से गए 11 साल हो गए हैं।

साभार -किस्सा टीवी

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