कहानी पूरी फिल्मी है! बचपन के जुनून और जज्बे ने पहुंचाया बॉलीवुड

सपनों का शहर मुंबई! यहां आते तो बहुत से लोग हैं, लेकिन सपने उनके ही पूरे होते हैं जिनके सपनों में शिद्दत होती है। ऐसी ही है मुंबई में हर स्ट्रगलर की कहानी। हम आपको आज एक ऐसे शख्स की कहानी बताने जा रहे हैं, जिसने मैकेनिकल इंजीनियरिंग में B.Tech किया और बॉलीवुड (मुंबई) जाने के सपने देखने लगा। उसके सपनों में वो शिद्दत थी, जिससे आज वो मुंबई का जाना माना आरजे और जिंदादिल बॉलीवुड रिपोर्टर है।
हम बात कर रहे हैं आरजे आलोक की, वैसे तो आलोक आते हैं उत्तर प्रदेश के छोटे से जिले सोनभद्र से लेकिन आज वो बॉलीवुड के लगभग सभी अभिनेताओं के चहेते हैं। उनकी इस सफलता का राज उनका व्यक्तित्व है। उनको जानने वाले बताते हैं कि आलोक जिस भी इवेंट को कवर करने जाते हैं वहां अपनी उपस्थिति बेहत जीवंत तरीके से कराते हैं और सबका मनोरजंन करते हैं।
आलोक का सफर
इंडियावेव से बात करते हुए आरजे आलोक ने बताया कि वो बचपन से ही फिल्मों के शौकीन रहे, और अपने स्कूल कॉलेज में ऐसी प्रतियोगिताओं का हिस्सा बनते रहे। 7-8 साल की उम्र से ही ऑल इंडिया रेडियो में बच्चों के प्रोग्राम का हिस्सा बनते रहे, जहां उन्हें महीने के 200 से 250 ₹ मिल जाया करते थे। ओबरा से इंटरमीडिएट तक की पढ़ाई करने के बाद आलोक ग्रेजुएशन करने के लिए दिल्ली चले गए, जहां उन्होंने 2006 में इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की। इस समय भी वो दिल्ली के रेडियो स्टेशन के चक्कर लगाते रहे और फ्रीलांस के तौर पर शो करते रहे। बीटेक करने के बाद तक उनको अंदाजा नहीं था कि उन्हें करना क्या है।
आरजे मंत्रा हैं उनके गुरु
बीटेक पूरा करने के बाद 2006 में आलोक ने तय किया कि उन्हें इंजीनियर नहीं आरजे बनना है। देखा जाय तो असली सफर उनका यहीं से शुरू होता है। हालांकि आलोक ने आरजे बनने के लिए कोई कोर्स तो नहीं किया था लेकिन उनकी आवाज और उनका जुनून उन्हें हर दिन नई राह दिखाता रहा। आरजे मंत्रा को अपना गुरु मानने वाले आलोक बताते हैं कि वो मंत्रा को सुनकर काफी कुछ सीखते रहे। यहीं से आलोक को आरजे बनने की प्रेरणा मिली, इसके बाद उन्होंने कई जगहों पर बतौर आरजे काम किया। गाजियाबाद, हिसार और जबलपुर के रेडियो स्टेशन में उन्होंने बतौर आरजे काम किया।
कैसे पहुंचे मुंबई
आलोक अपने शुरुआती अनुभव के साथ 2009 में मुंबई पहुंच तो गए लेकिन उनको यहां बहुत संघर्ष करना पड़ा। करीब 8 महीने तक उनके पास कोई नौकरी नहीं थी। शुरुआत में करीब 9 लोगों के साथ एक छोटे से फ्लैट में रहते थे। इसके बाद आलोक को OYE!FM में काम करने का मौका मिला। आलोक ने इस मौके को जमकर भुनाया और आज वो आरजे के साथ बॉलीवुड के बेहतरीन रिपोटर्स में गिने जाते हैं। आलोक का सपना क्या है? इस सवाल के जवाब में वो कहते हैं वो एक्टिंग को लेकर बेहद गंभीर हैं, उनका कहना है कि अगर मौका मिले तो वो इस फील्ड में भी हाथ आजमाएंगे। हालांकि आलोक अब तक कई सीरियल्स में बतौर गेस्ट काम कर चुके हैं।
कई अवार्ड भी पा चुके हैं आलोक
आज आलोक को करीब 10 अवार्ड उनके काम को लेकर मिल चुके हैं। अभी हाल ही में उनको 2016 का ग्लोबल अचीवर्स अवार्ड भी मिला है। अवार्ड पाने के बाद आलोक ने बताया कि अगर कोई भी काम पूरे तन्मयता से करते हैं तो उसका रिजल्ट जरूर मिलता है। युवाओं को संदेश देते हुए आलोक ने कहा कि युवाओं को भटकने की जरूरत नहीं है, कोई भी काम अगर आप पूरे तन्मयता और सही समय पर करते हैं तो सफलता मिलनी तय है।
आलोक की कहानी आलोक की जुबानी
मैं उत्तर प्रदेश के सोनभद्र ज़िले में 'ओबरा' नामक स्थान से ताल्लुक़ रखता हूं, जहां आज भी नयी फिल्में रिलीज़ होने के 2 महीने बाद लगती हैं जब मैं छोटा था तो घर में नयी रंगीन टी वी आयी थी और वीसीआर प्लेयर किराये पर मंगा कर के महीने में 1-2 बार पिताजी वीडियो कैसेट्स पर फिल्में दिखाया करते थे, आसपास से पड़ोसी भी आ जाया करते थे, फिल्म देखने की पिकनिक, घर में ही हो जाया करती थी! उन दिनों में मुझे याद आता है 'बड़े दिलवाला' फिल्म पूरे परिवार ने साथ देखा था , मेरे हाथ में वो वीडियो कैसेट का कवर भी था और घर के होली पर बनाये गए चिप्स को खाते हुए हम फिल्म देख रहे थे!
पहली बार मुझे याद है मुंबई दंगों पर आधारित फिल्म 'बॉम्बे ' रिलीज हुयी थी तो सिनेमा हॉल मैं अपने बड़े भाई और उनके दोस्तों के साथ गया था, और थोड़े थोड़े अरविन्द स्वामी और नीले कपडे पहनी हुयी मनीषा कोइराला याद आती है! 21 इंच वाली साइकिल के आगे वाले डंडे पर बैठ कर सिनेमा हाल पहुंचे, और जब पता चला इस फिल्म के लिए दंगा चल रहा है तो 20 मिनट की फिल्म के बाद ही हम सबको भाग कर वापिस घर आना पड़ा! फिर वीडियो कैसेटस ही काम आते थे ! आखिरी फिल्म मैंने वीडियो कैसेट पर देखी थी वो अक्षय कुमार , सुनील शेट्टी और रवीना टंडन की 'मोहरा ' थी , और पहली बार एक ही फिल्म के 3 वीडियो कैसेट आये थे, जिनमें पूरी फिल्म समायी हुयी थी ! मुझे ये भी याद है की फिल्म देखने के बाद अक्षय कुमार की ही तरह सिर के ऊपर गमछा ( तौलिया ) बाँध कर , एक हाथ सिर और दूसरा पेट के ऊपर रख कर के 'तू चीज़ बड़ी है मस्त मस्त ' पर नृत्य भी किया करता था!
फिल्मों का क्रेज़ कुछ इस कदर हुआ करता था की जो भी फिल्म रिलीज़ होती थी , उसी अंदाज़ में दोस्तों से संवाद भी किया करते थे , अच्छी तरह से मुझे याद है की अग्निपथ फिल्म जब रिलीज़ हुयी थी तो उसके डायलॉग हम क्रिकेट खेलते वक़्त बार बार बोलते थे - ' विजय दीनानाथ चौहान पूरा नाम , हायें ' ,
'त्रिदेव , अमर अकबर एंथोनी , मशाल , क्रांति , कर्मा और ना जाने कितनी फिल्में हम सबने सिर्फ दूरदर्शन पर देखी और फिर DD2 की एंट्री हुयी और जिस पर अनोखे कार्यक्रमों के साथ साथ गुरुवार वाली फिल्में काफी प्रसिद्ध हुयी और याद आता है जब लोग डिश के केबल पर अपने अपने तार बिछा देते थे , और कुछ लोग एंटेना को बांध कर रखते थे ताकि फिल्म के वक़्त कोई भी परेशानी ना हो , और जब हम गांव में होते थे तो ट्रक और ट्रैक्टर की बैटरी को तैयार रखते थे , की अगर बिजली गयी तो कम से कम बैटरी का सहारा रहेगा !
फिल्मों का देखना टी वी पर होता था और रही सही कसर मेरी मां पूरा कर देती थी , हर एक गीत को आल इंडिया रेडियो पर सुना देती थी , मां काम करती हुई रेडियो को खुला छोड़ कर रखती थी , और हरेक गीत ज़ेहन में घर कर जाता था ! किशोर मुकेश रफ़ी लता आशा भोसले के साथ बड़ा हुआ हूं मैं !
आज भी वो दिन याद आते हैं , तो लगता है की बचपन से ही फिल्मों का जुनून और जज़्बा नब्ज़ में आज फिल्म इंडस्ट्री के बीच हूं , उन्ही सितारों को देखता हूं , उनसे बातें करने का मौका मिलता है और अतीत की याद आती है...आज भी वो दिन याद आते हैं , तो लगता है की बचपन से ही फिल्मों का जूनून और जज़्बा नब्ज़ में बहता था जो आज भी उसी तीव्र वेग से बहता रहता है!
आरजे आलोक के बारे में और जानना चाहते हैं तो आप उनके फेसबुक और ट्विटर पेज पर उन्हें फॉलो कर सकते हैं।
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