ग्रैमी अवार्ड जीतने के बाद बोले संदीप दास- काशी तो मेरे खून में बसी है

भारत में विभिन्न संस्कृतियों का खजाना है, और जब बात हम संगीत की करें तो भारत का नाम दुनिया में सबसे ऊपर आएगा। संगीत की दुनिया में प्रतिष्ठित पुरस्कार 'ग्रैमी अवार्ड' में भारत के संदीप दास ने अपनी चमक बिखेर कर इस बात की तस्दीक भी कर दी है। आपको बता दें, बनारस में रहकर पद्मविभूषण पं. किशन महाराज से तबला वादन का हुनर सीखने वाले संदीप दास के हिस्से में प्रतिष्ठित ग्रैमी अवार्ड आया है। संदीप को यह अवार्ड अमेरीकी संगीतकार 'यो यो मा' के एल्बम 'सिंग मी होम' के लिए मिला है।
कौन हैं सदीप दास
लॉस एंजिल्स में सम्मान पाने के बाद संदीप ने कहा कि यह सम्मान काशी की माटी और महाराज की थाती है। काशी तो मेरे खून में बसी है। बीएचयू का बिरला हॉस्टल, गंगा घाट और कबीर चौरा की गुरु गली मेरे जीवन का आधार है। संदीप दास ने बताया कि स्कूल के समय टेबल पर ही थाप के कारण, कई बार डांट पड़ी। पिता को लगा कि कुछ अलग है, तो काशी लाए और तबले से लगन लग गयी।
संदीप के क्लासमेट रह चुके हैं मनोज तिवारी
बीएचयू में अंग्रेजी साहित्य में दाखिला लिया और बिरला हास्टल के रूम नंबर 14 में जगह मिली। बोले, तब मेरे क्लासमेट मनोज तिवारी थे। तब भी वह गीत गाते और मैं तबले पर थाप। पटना से काशी, फिर दिल्ली और अब अमेरिका तक की यात्रा पर संदीप ने कहा कि जो भी हूं माता-पिता के प्रोत्साहन, गुरु के आशीर्वाद, बनारस के अल्हण मिजाज और रियाज की देन है। संदीप ने बताया कि आदरणीय गुरुजी मुझे मिट्ठू कह कर बुलाते थे।
जब शिक्षक ने कहा संदीप को डॉक्टर के पास ले जाइए
46 साल के संदीप दास का जन्म पटना में 1971 में हुआ था। पटना के सेंट जेवियर हाईस्कूल में उन्होंने 1975 से 1985 तक पढ़ाई की। संदीप दास के तबला बजाने की प्रतिभा को सबसे पहले उनके पिता केएन दास ने तब भांपा था। जब संदीप के स्कूली शिक्षक ने उनसे बेटे की शिकायत करते हुए कहा था, 'संदीप पूरी क्लास को डिस्टर्ब करता है, डेस्क को हाथ से थपथपाने के लिए बंद करने के लिए कहने पर वह पांव से फर्श को थपथपाने लगता है, उसे डॉक्टर के पास ले जाइए।'

आठ साल की उम्र में शुरू हुआ संदीप का सफर
संदीप का तबले का साथ आठ साल की उम्र में शुरू हुआ था, और नौ साल की उम्र में बनारस तबला गुरु पंडित किशन महाराज के पास पहुंच गए। हर शनिवार-रविवार को वे पटना से बनारस आकर तबले के गुर सीखने लगे। छुट्टी का कोई दिन घर पर नहीं बीत रहा था तो पिता ने भी तबादले की अर्जी दी और परिवार ही बनारस पहुंच गया। स्कूली पढ़ाई पूरी होने के बाद वे बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी पहुंचे, क्योंकि तबले का साथ बना रहे।
15 साल की उम्र में स्टेज पर आने का मिला मौका
संदीप ने अंग्रेजी साहित्य में गोल्ड मेडल के साथ स्नातक किया लेकिन इस दौरान तबले के गुर सीखते रहे। पंडित किशन महाराज के साथ महज 15 साल की उम्र में उन्हें स्टेज पर आने का मौका मिल गया। बनारस घराने में 11 साल तक तबला बजाने के बाद संदीप दास 1991 में दिल्ली आ गए। ऑल इंडिया रेडियो से अनुबंधित सबसे कम उम्र के तबला वादक कलाकार भी बन गए संदीप।
संदीप को यहीं तक थमना नहीं था और उनके तबले की थाप विदेशों में गूंजने लगी। उनके जीवन का टर्निंग प्वाइंट तब आया जब चीनी मूल के अमेरीकी संगीतकार 'यो यो मा' ने उन्हें 2000 में सिल्क रूट इंसेंबल के लिए अपने साथ जोड़ा! उसके बाद देखते-देखते संदीप तबले की दुनिया में नामचीन कलाकार बन गए। 2003 और 2009 में ग्रैमी के लिए नामित भी हुए, अवार्ड नहीं मिला लेकिन तबले की दुनिया में जलवा कायम था।
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