Movie Review: बिना कमिटमेंट साथ रहने वाले युवाओं की कहानी है 'बेफिक्रे'

आदित्य चोपड़ा ने अपने डायरेक्शन के करियर की शुरुआत 1995 में शाहरुख खान के साथ फिल्म 'दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे' से की थी जो आज भी मुम्बई के मराठा मंदिर में चल रही है। फिर उन्होंने शाहरुख खान के साथ 'मोहब्बतें' (2000) और 'रब ने बना दी जोड़ी' (2008) बनाई।
अब आदित्य फिर 8 साल बाद 'बेफिक्रे' लेकर आए हैं। आज के यूथ के मिजाज के साथ अपना कनेक्शन चेक करने के लिए उन्होंने रणवीर सिंह और वाणी कपूर को लेकर यह फिल्म बनाई है। इसमें उन्होंने आज के टाइम का हर मसाला परोसा है। जिसमें ब्रेकअप कूल है और एक्सपोज बहुत है।
फिल्म की कहानी
कहानी दिल्ली और पेरिस के बीच घूमती है, पेरिस में धरम गुलाटी (रणवीर सिंह) और शायरा गिल (वाणी कपूर) की मुलाकात होती है। धरम कैसेनोवा लड़का है जो दिल्ली से पेरिस जाकर स्टैंड अप कॉमेडी करता है वहीं शायरा एक टूरिस्ट गाइड होने के साथ अपने पापा के साथ के रेस्टोरेंट में काम करती है। हालांकि एक साल में इनका ब्रेकअप हो जाता है, क्योंकि दोनों ही कमिटमेंट से बचते हैं।
कहानी आगे बढ़ती है और जैसा कि आज के यूथ को डिफाइन किया जाता है कि वे बिना कमिटमेंट ही साथ रहना चाहते हैं। हालांकि कहानी में दोनों को अलग-अलग पार्टनर भी मिलते हैं लेकिन फिर हर दूसरी फिल्म की तरह इनको एक दूसरे के लिए अपने प्यार का एहसास होता है।
कमजोर कड़ी
फिल्म की कमजोर कड़ी इसकी कहानी है जिसमें कहीं कुछ नया नहीं है। 'शुद्ध देसी रोमांस' में हम ऐसी थीम पहले देख चुके हैं और प्यार को लेकर कंफ्यूजन भी कोई नया पहलू नहीं है। आदित्य चोपड़ा जिस फैमिली क्लास रोमांस के लिए जाने जाते थे, उन्होंने अपनी इस इमेज को तोड़ने की कोशिश की है। फिल्म की शूटिंग पेरिस की है तो किस पर बहुत फोकस है। हो सकता है कि फैमिली माइंडसेट इस खुलेपन को स्वीकार न कर सके और फिल्म को ऑडियंस का एक खास सेक्शन ही पसंद करे।
कैसे रहे रणवीर और वाणी
बाजीराव जैसे काफी गंभीर किरदार को निभाने के बाद इस फिल्म में रणवीर सिंह ने यूथ को आकर्षित करने वाले माचो मैन का किरदार निभाया है। रणवीर ने अपने स्टाइल में अच्छी परफॉर्मेन्स दी है। वहीं वाणी कपूर का लुक उनके किरदार से बिल्कुल अपोजिट है, जिसकी वजह से एक्टिंग से ज्यादा ग्लैमर ही स्क्रीन पर नजर आता है।
कमाल का है आदित्य का डायरेक्शन
फिल्म में आदित्य चोपड़ा का डायरेक्शन कमाल का है और पेरिस जैसे खूबसूरत शहर को उन्होंने और भी ज्यादा सुंदर दर्शाया है। साथ ही उसी शहर के बीच कैनम ओनोमोया की सिनेमैटोग्राफी ने और निखार दिया है। फिल्म का म्यूजिक और बैकग्राउंड स्कोर भी अच्छा है। हालांकि कहानी को दर्शाने के हिसाब से लगता है कि युवाओं से जुड़ी कहानी को दिखाने के लिए आदित्य को किसी यंग डायरेक्टर की सलाह जरूर लेनी चाहिए थी।
स्टार: ***
साभार: आरजे आलोक
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