लुप्त...बताती है कि घटिया फिल्में कैसे बनाएं
Posted By: Sachin Yadav
Last updated on : November 10, 2018
अगर किसी फिल्म का ट्रेलर आपको रोमांचित कर रहा है तो जरूरी नहीं है कि फिल्म भी उतनी ही बढ़िया होगी। क्योंकि ऐसा ही कुछ मेरे साथ भी हुआ। लुप्त देखने उम्मीदों के संग गया था पर फिल्म निर्देशक से लेकर स्टोरी राइटर और अभिनेता तक सबने उम्मीदों को माचिस दिखा दी। ऐसी फिल्में देखने के लिए दर्शकों को भी पैसे मिलने चाहिए।
निर्देशक- प्रभुराज
स्टार कास्ट- जावेद जाफरी, विजय राज, निकी वालिया
फिल्म अवधि - 1 घंटा 50 मिनट
टिकट के दिए- 100 रुपये
स्टोरी, डायरेक्टर और राइटर
फिल्म बनाते समय डायरेक्टर ने क्या सोचा था, यह वही बता सकते हैं। पर ये बात सच है कि डायरेक्टर ने फिल्म न बनाकर बाकी सब कुछ बना दिया है। किसी भी फिल्म की जान उसकी स्टोरी, संवाद और एक्टर्स व एक्ट्रेस की एक्टिंग होती है। पर इस फिल्म से वो सब कुछ गायब है। जावेद जाफरी फिल्म में एक कंपनी के मालिक बने हैं और वो आगे बढ़ने के लिए कुछ भी करना चाहते हैं। इसी चक्कर में वो अपने प्रतिद्वंदी की कार के एक्सीडेंट का कारण बनते हैं और उसको व उसकी फैमिली को सड़क पर मरने के लिए छोड़ जाते हैं। और बाद में इसका बदला जावेद जाफरी की फैमिली से लिया जाता है। कुल मिलाकर बिना सिर पैर की स्टोरी है। जावेद जाफरी और विजय राज की क्षमता का पूरा प्रयोग नहीं किया गया है। बस फिल्म बनाकर खत्म कर देनी थी, इसलिए फिल्म बना दी गई है।
अभिनय
जावेद जाफरी और विजय राज दोनों ही प्रतिभावान अभिनेता हैं। उन्होंने भी फिल्म की स्क्रिप्ट पढ़ी होगी। शर्तिया तौर पर यह फिल्म दोनों ने सिर्फ पैसे कमाने के लिए की है। आखिर पापी पेट का जो सवाल है। बाकी फिल्म क्यों बनाई जा रही है, उन्होंने भी इस बावत सवाल नहीं किया होगा।
म्यूजिक- ऐसा कुछ नहीं था जो यादों में बस जाए या यादों में बसाया जाए। म्यूजिक के बारे में भूल जाना ही अच्छा है।
लोकेशन- लखनऊ पर बेस्ड फिल्म है। सारी शूटिंग भी लखनऊ और आस—पास के इलाकों में हुई होगी। लखनऊ में फिल्म शूट करने और बनाने का मकसद भी सिर्फ यही है कि सरकार की तरफ से मिलने वाली सब्सिडी को पाया जा सके। पर उत्तर प्रदेश सरकार को भी सोचना चाहिए कि आखिर इतनी घटिया फिल्म को सब्सिडी क्यों दी जाए।
फिल्म क्यों देंखे- ऐसी कोई वजह नहीं है मेरे पास बताने के लिए।
फिल्म क्यों न देंखे- दो घंटे बर्बाद करने से अच्छा है अपने दोस्तों के साथ वो वक्त बिता लें।
फिल्म समीक्षक - सचिन यादव
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