बंजर जमीन में फसल उगाना है इस गुजराती बिजनेसमैन का जुनून

भारत भले ही अभी भी कृषि प्रधान देश हो, लेकिन आज भी यहां खेती बहुत ही सामान्य तरीके से की जाती है। इस कारण से पैदावार में कमी रहती है, इसके साथ ही भारत में समय पर बारिश न होने और बेमौसम बरसात की वजह से भी फसलों को नुकसान होता रहता है। फसलों के लिए पानी की जरूरत उसी तरह है जैसे इंसानों को जीने के लिए हवा...
पानी की इसी समस्या का समाधान गुजरात की एक सामाजिक संस्था ने निकाल लिया है। इस संस्था को चलाने वाले बिप्लव केतन ने एक अनोखी जल सरंक्षण प्रणाली खोज निकाला है। बिप्लब ने इसका नाम ‘भुंगरू’ दिया। ये जल सरंक्षण तकनीकी है जिससे बारिश का भारी जल खेतों में ही अंडरग्राउंड स्टोर कर लिया जाता है। जिसे किसान बाकी के महीनों में जरूरत के वक्त खेतों की सिंचाई के लिए प्रयोग कर सकते हैं।
आपको बता दें, ‘स्ट्रॉ’ को गुजराती में ‘भुंगरु’ कहते हैं। इस तकनीक को देश में गरीबी हटाने की मुहिम में जुटी सामाजिक संस्था नैरीता सर्विसेज ने तैयार किया है, जिसके निदेशक बिप्लब केतन पॉल हैं। उन्होंने भूंगरु तकनीक के माध्यम से 50,000 एकड़ को हरा-भरा व उपजाऊ करने का काम किया है। उनके इस प्रयास से 14,000 किसान लाभान्वित हुए हैं।
गुजरात और देश के अन्य राज्यों में बंजर क्षेत्रों की स्थिति यह है कि वहां की मिट्टी की लवणता जमीन के ऊपर एक अभेद्य परत बना देती है, जिससे जमीन ज्यादा पानी सोख नहीं पाती। यही कारण है कि भारी बारिश के बाद भी पानी जमीन की ऊपरी परत पर ही टिका रहता है और मिट्टी के ऊपर नया लवणता परत बना देता है। ये लवणता मिटटी का खारापन है।
इस तकनीक के इस्तेमाल से बदली तस्वीर
खेतिहर जमीन में लवणता के घटने-बढ़ने की वजह से पैदावार में भारी कमी देखने को मिलती है। जल का स्तर इन इलाकों में अपेक्षाकृत कम होता है और उनके द्वारा शुरू किया गया भूंगरू तकनीक सूखे में बफर का काम करता है। इस तकनीक की मदद से अब यहां का किसान साल भर में 3 फसलें निकाल रहा है।
क्या है पूरी तकनीक?
भुंगरु किसानों को इसी समस्या से निजात दिलाने की तकनीक है, जिसे मिट्टी की लवणता वाले क्षेत्रों में प्रयोग किया जा रहा है। इस प्रणाली में एक पाइप को जमीन के भीतर इस तरह फिट किया जाता है कि बाहरी जमीन का पानी इससे होता हुआ पहले फिल्टर होता है फिर जमीन के भीतर बने कुएं में जमा हो जाता है। बाद में किसान उस पानी को मोटर पम्प का प्रयोग कर बाहर निकालकर सिंचाई कर सकते हैं। इस तरह किसानों का दोगुना फायदा हो जाता है। ये तकनीकी मानसून के दौरान होने वाले पानी के नुकसान का भी बचाव करती है, वरना मानसून का पानी यूँ ही किन्हीं गड्ढों में भरे-भरे भाप बनकर उड़ जाता है।
जमीन के भीतर बने स्टोरेज में 40 मिलियन लीटर पानी भरा जा सकता है जिसे कम से कम 7 महीनों तक प्रयोग किया जा सकता है। इसके साथ-साथ बारिश का पानी जब मिट्टी के खारेपन वाले पानी के साथ मिलता है तो मिट्टी की लवणता को भी कम करता है और उसे खेती योग्य पानी बना देता है।‘भुंगरु’ तकनीक की 17 तरह की अलग अलग डिजाइने हैं, जिन्हें भारत के अलग अलग कृषि-क्षेत्रों में प्रयोग किया जाता है। हर खेत के लिए भुंगरु की अलग डिजाइन होती है। भुंगरु तकनीक को खेतों में फिट करने की शुरुआत नैरीता सर्विसेज ने की, अब उन्हें अंतर्राष्ट्रीय सामाजिक व्यव्सायी अशोका इंडिया से पार्टनरशिप में नॉलेज़-गाइडेंस मिल रहा है और विभिन्न गैर सरकारी संगठनों, सहकारी संगठनों, संस्थानों और विभिन्न संगठनों के सी. एस. आर. विभागों से पार्टनरशिप के तहत मिल रही मदद से नैरीता सर्विसेज तकनीकी को आम जीवन में बढ़ाने की भूमिका निभा रही है।
भुंगरु के लिए खेत का सबसे निचला हिस्सा चुना जाता है, क्योंकि बारिश का पानी इसी हिस्से की ओर इकठ्ठा होता है। इसके बाद किसान भुंगरु के निर्माण के लिए मजदूर उपलब्ध करवाते हैं और सब मिलकर एक भुंगरु की सरंचना तैयार कर देते हैं। भुंगरु के निर्माण के दौरान 5 इंच के पाइप को जमीन में 110 फ़ीट की गहराई तक फिट करती है, जिसमें जल को छानने का फिल्टर भी लगा होता है। ये फिल्टर जमीन में जाने वाले पानी के साथ कूड़े, कंकड़ और मिटटी को जाने से रोकता है। एक बार जब पानी नीचे भर दिया जाता है तो जमीन के भीतर वाले पानी का गीलापन फसलों को बढ़ाने में मदद करती है। और इस तरह सालभर किसान के पास फसल की सिंचाई के लिए कभी भी पानी की कमी नहीं रहती।
इस मुहिम की अगुआ हैं महिलाएं
बिप्लब एक उद्यमी होने के साथ-साथ समाजसेवी भी हैं। उन्होंने इस तकनीक को विकसित तो जरूर किया था लेकिन आज इस मुहिम को वहां की स्थानीय महिलाएं लीड कर रही हैं। बिप्लब ने अपनी भूंगरू तकनीक द्वारा जल संरक्षण की दिशा में काम किया है और उसे कामयाबी के साथ आमजन में पहुंचाने की कोशिश की है। इस तकनीक के अंतर्गत जमीन के अंदर मौजूद पानी को साफ करने के लिए पाइपों का इस्तेमाल किया जाता है। ज्ञात हो कि ऐसा करके इस इलाके में केवल पाइपों के माध्यम से ही 40 मिलियन लीटर पानी संरक्षित किया जाता है।
इन महिलाओं को भुंगरु समूह में शामिल करने के पहले चरण में, संस्था ने गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने वाली महिलाओं को चुना और उनकी अपनी जमीन और गरीबी की स्थिति देखकर उन्हें प्रशिक्षण के लिए शामिल किया गया। एक भुंगरु समूह में पांच महिलाएं होती हैं, जिनमें से एक महिला अपनी जमीन पर भुंगरु का निर्माण करवाती हैं। ये टीम खेतों का भौगोलिक अध्ययन कर ऐसी जगह का पता लगाती है, जहां भुंगरु प्रणाली को स्थापित किया जाए।
कौन है बिप्लव?
46 साल के बिप्लब केतन पॉल ने अपने जीवन के 23 साल के लिए काम कर रहे है। अपनी उच्च शिक्षा के लिए बंगाल से गुजरात आए बिप्लब ने पढाई के बाद वहीं गांवों में रहकर लोगों की सेवा करने का निर्णय लिया। 2001 में गुजरात में आए भूकंप के दौरान सहायता काम करते हुए उन्होंने महिलाओं का एक समूह बुलाया जिनके साथ मिलकर उन्होंने पानी के समाधान के लिए योजना बनाई। इसी वक़्त उन्हें एहसास हुआ कि महिलाएं प्रभावशाली सामाजिक परिवर्तन की डोर थाम सकती हैं। 2000 में उन्होंने ‘भुंगरु’ तकनीकी का निर्माण किया और 14 साल के प्रयोगों के बाद 2015 में यूनाइटेड नेशन्स क्लाइमेट चेंज कॉन्फ्रेंस में भुंगरु तकनीक को मूमेंटम ऑफ़ चेंज अवार्ड से सम्मानित किया गया।
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