इन पांचवीं पास महिलाओं ने वो कर दिखाया जो बड़े-बड़े लोग सिर्फ सोचते हैं

राजस्थान के धौलपुर जिले में कुछ महिलाओं ने एक ऐसी इबारत लिखी जिसे सुन कर और देख कर किसी का भी हौसला बुलंद हो सकता है। धौलपुर जिले के डांग इलाके की तीन महिलाओं ने खुद की बीमा कंपनी खड़ी कर 110 ग्रामीण महिलाओं के साथ-साथ हायर क्वालिफाइड युवकों को भी न सिर्फ रोजगार दिया है बल्कि आत्मनिर्भर बनकर नारी के अबला से सबला बन जाने का संदेश भी दिया है।
बैंक ने कर दिया था लोन देने से मना
धौलपुर जिले के डांग इलाके के सरमथुरा में पशुपालन ही लोगों की मुख्य आजीविका है लेकिन बीमारी के कारण पशु मरने लगे। बैंक ने बीमा करने से मना कर दिया। इस पर पांचवीं तक पढ़ी लिखी डांग की तीन महिलाओं ने पशुपालकों की पीड़ा दूर करने के लिए वर्ष 2003 में खुद की बीमा कंपनी बना दी। जिसे उन्होंने सहेली राहत कोष का नाम दिया।
बात वर्ष 2000 के आसपास की है। पशुओं की बीमारियों की वजह से असमय मृत्यु हो रही थी। पशुपालक बहुत परेशान थे। बैंक ने बीमा करने से मना कर दिया। जिन पशुओं का बीमा किया उनके क्लेम देने में इतनी शर्तें रख दी कि क्लेम के हकदार लोगों में से मुश्किल से दो से चार प्रतिशत ही क्लेम ले पाए। इस पर गरीब पशुपालक किसानों की विपरीत परिस्थिति में सहारा देने के लिए 5वीं तक पढ़ी लिखी डांग की तीन महिलाओं ने 2003 में सहेली राहत कोष नाम की बीमा कंपनी का गठन कर दिया।
कोई सरकारी मदद नहीं मिल रही है
बीमा कंपनी की अध्यक्ष राधा कहार, उपाध्यक्ष बेबी ठाकुर और कोषाध्यक्ष राजवाला हैं। वर्तमान में ये कंपनी धौलपुर जिले बाड़ी, बसेड़ी, सरमथुरा के डांग इलाके के 85 गांवो में बिना किसी सरकारी मदद के कार्य कर रही है। राहत कोष बनाने संचालन करने की पूरी योजना में इनका सहयोग संजय शर्मा कर रहे हैं। कंपनी की संचालक महिलाएं भले ही 5वीं तक पढ़ी लिखी हैं लेकिन इनके हुनर के सामने स्नातक और पोस्ट ग्रेजुएट तक पढ़े लिखे युवा इनके आदेशों का पालन करते हैं
दूर कर रही है बेरोजगारी
इन्होंने 60 से अधिक महिलाओं और पुरुषों को रोजगार दे रखा है। पशुओं का बीमा करने के लिए कंपनी ने 50 गांव में एक-एक महिला सखी लगा रखी है। ये अपने मूल गांव में रहकर एक हजार रुपये प्रतिमाह पर कार्य करती हैं। कई महिलाओं को आसपास के एक से अधिक गांव की भी जिम्मेदारी दे रखी है। जिसके बदले उन्हें अतिरिक्त वेतन भी दिया जाता है। साथ ही कंपनी में पूरा लेखा-जोखा रखने के लिए स्टाफ भी नियुक्त हैं।
बीमा में नहीं होता है कोई भी तामझाम
यह बीमा कंपनी पशु का एक वर्ष के लिए बीमा करने को अनुमानित कीमत का पशुपालक से कंपनी 5 प्रतिशत राशि प्रीमियम के रूप में लेती है। साथ ही सामान्य जानकारी वाला एक छोटा सा फार्म भरवाती है। पशु पालक का एक फोटो फार्म में लगाया जाता है। पशु के कान में कंपनी का विशेष तरीके का टैग लगाया जाता है।
यदि एक वर्ष के दौरान किन्हीं कारणों से पशु की मृत्यु होती है तो कंपनी की ओर से सहायता राशि के रूप में पशुपालक को पशु की कीमत की 75 प्रतिशत राशि 15 दिन में दे दी जाती है। पशु के मरने पर पालक पशु सखी को सूचना देता है। वह मौके पर पहुंच कर मोबाइल से मृत पशु का फोटो खींचकर व्हाट्सऐप से ऑफिस भेज देती है। सामान्य सा फार्म और पशु सखी की रिपोर्ट के आधार पर ही क्लेम दे दिया जाता है। इसमें चिकित्सक आदि की रिपोर्ट की कोई जरूरत नहीं होती।
इन महिलाओं वो कर दिखाया जिसे बड़े बड़े लोग सोचते ही रह जाते हैं। इस महिलाओं के हौसल भारत के उन क्षेत्रों के लिए प्रेरणा बन सकता है जहां हुनर तो है लेकिन हौसले की दरकार है। अगर आपको ये कहानी अच्छी लगी हो तो आप इस देश और समाजहित में जरूर शेयर करें।
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