पंजाब से आए दो दोस्तों ने तमिलनाडु में बंजर जमीन पर लाई हरियाली

साल 2007 की बात है, पंजाब के दो दोस्त मनमोहन सिंह और और दर्शन सिंह ने अपने गुरु बाबा इकबाल सिंह (पूर्व कृषि निदेशक, हिमाचल प्रदेश) की सलाह मानकर उस बंजर जमीन पर खेती में अपना हाथ आजमाने की कोशिश की जो उस समय तक बंजर थी।
10 साल पहले यहां की जमीन थी बंजर
हम बात कर रहे हैं रामनाथपुरम, जिसे अब रामनद भी कहा जाता है। यह स्थान दक्षिणी तमिलनाडु के सबसे अधिक सूखे जिलों में से एक है। आज से दस साल पहले यहां की जमीन बंजर, पथरीली और कट्टू करुवेलम (एक कंटीली झाड़ी) से ढकी हुई थी। बंजर जमीन से उपजाऊ खेत के रूप में ये बदलाव दस साल पहले पंजाब से यहां आकर बसे मुट्ठीभर किसानों के प्रयासों का परिणाम है।
2007 में पंजाब से मनमोहन सिंह और उनके दोस्त दर्शन सिंह ने 3000 किमी दूर तमिलनाडु के रामनद में सूखे और उजड़े वल्लनधाई गांव आने का फैसला किया। दरअसल खेती के लिहाज से वह जमीन बिल्कुल ठीक नही थी। स्थानीय निवासियों द्वारा सचेत करने के बावजूद दर्शन और मनमोहन ने इसे एक चुनौती के रूप में स्वीकार किया और उस बंजर जमीन में जीवन डालने का निश्चय किया।
दोनों दोस्तों ने पैसे जोड़कर स्थानीय किसानों से 300 एकड़ जमीन खरीदी। भूमि की उत्पादकता पर शंका होने के कारण स्थानीय किसानों ने उन्हें औने पौने दामों में जमीन बेच दी। अगले तीन साल तक दर्शन और मनमोहन प्रतिदिन अकाल फार्म की यात्रा करते रहे, जमीन से पत्थरों को साफ किया, बोरवेल खोदे, फव्वारे बनाये और मिट्टी को फसल रोपने के लिए तैयार किया।
दर्शन और मनमोहन ने 80 एकड़ में आम के पेड़, 40 एकड़ में आंवला और अमरुद के पेड़, पपीते और नारियल के पेड़ 10 एकड़ में और मिश्रित रूप से काजू, खजूर और बादाम के पेड़ 5 एकड़ में लगाए। इसके साथ -साथ उन्होंने मिश्रित फल और सब्जियों जैसे-गाजर, खीरा, कद्दू, शरीफा, चीकू और तरबूज़ को भी लगाया।
बाद में इनके रिश्तेदारों ने दिया इनका साथ
उनके प्रयासों को देखते हुए जल्दी ही उनके कुछ दोस्त और रिश्तेदार वहां उनके साथ आ गए। उन लोगों ने अपने दोस्तों और उनके परिवारों के लिए घर बनाए और अन्य कार्यों के लिए 900 एकड़ जमीन इकट्ठा की। उन्होंने वहां एक सामान्य रसोईघर और पूजाघर भी निर्मित किया। उनके सबसे नजदीक का गुरुद्वारा रामेश्वरम् में गुरु नानक धाम है, जो मात्र एक घंटे की दूरी पर है।
उनके खेत के ‘लखनऊ 49’ नाम की किस्म के अमरूद और कीमती ‘इमाम पसन्द’ आम अपने स्वाद और आकार के कारण स्थानीय बाजारों में बहुत लोकप्रिय है। अकाल फार्म की सफलता किसानों के लिए प्रेरणाप्रद है। स्थानीय किसान खेती के साधनों के बारे में और बंजर भूमि पर खेती करने की विधि सीखने के लिए अकाल फार्म आते हैं। दर्शन और मनमोहन सिंह को अकसर जिलाधिकारी द्वारा स्थानीय प्रशासन और किसानों को सम्बोधित करने के लिए आमंत्रित किया जाता है।
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