आंवले की खेती कर एक ऑटो ड्राइवर के करोड़पति बनने की कहानी

भारत गांवों का देश है, और यहां की अर्थव्यवस्था अभी भी खेती पर निर्भर है। हालांकि इसके बावजूद भारत में किसानों की हालत उतनी अच्छी नहीं है, जितनी की होनी चाहिए।
इतना सबकुछ होने के बावजूद यहां के किसान अपने दम पर देश को आगे बढ़ाते हुए खुद भी प्रगति कर रहे हैं। आज हम आपको ऐसे ही एक किसान की कहानी बताने जा रहे हैं, जो आंवले की खेती कर करोड़पति बन गया है।
सिर्फ 1200 रुपये खर्च कर शुरू की आंवले की खेती
राजस्थान के एक ऑटो ड्राइवर किसान ने सिर्फ 1,200 रुपयों से आंवला के 60 पौधे रोपे थे आज उन्हीं पेड़ों से वह 26 लाख का टर्नओवर कमा रहे हैं। इन पेड़ों को बड़ा होने में 22 साल लग गए, लेकिन उनकी मेहनत आज रंग ला रही है। 57 साल के अमर सिंह उन तमाम किसानों के लिए प्रेरणास्रोत हैं जो धान-गेहूं से अलग हटकर बागवानी के जरिए पैसे कमाने की चाहत रखते हैं। अपने काम और काबिलियत के चलते अमर सिंह को जानने वाले लोग उनकी सफलता के किस्से सुनाते नहीं थकते।
क्या है इस किसान की कहानी
अमर सिंह के पिता वृंदावन सिंह का देहांत 1977 में हो गया था और इस वजह से उन्हें स्कूल छोड़ना पड़ा। उस वक्त उनके दो भाई और एक बहन काफी कम उम्र में थे, जिसके चलते घर चलाने का सारा जिम्मा उनके ऊपर आ गया। अमर सिंह का खानदानी पेशा खेती था और वह इसी के जरिए अपना व अपने घरवालों का पेट पालते थे। उस वक्त खेती से कुछ खास आमदनी नहीं होती थी, बस घर के लिए खाने भर का अनाज पैदा हो जाता था।
ऑटो चलाते थे अमर सिंह
खेती में आमदनी न होने की वजह से अमर सिंह का मन नहीं लग रहा था। इसी लिए उन्होंने ऑटो चलाना शुरू कर दिया। हालांकि इसमें भी उनका मन नहीं लगा और 1985 में वह अपने ससुराल के एक परिजन के यहां गुजरात में अहमदाबाद पहुंच गए। वहां पर मणिनगर में उन्होंने रिश्तेदार की मदद से ही एक फोटो स्टूडियो खोला। अमर सिंह गुजरात में फोटो स्टूडियो का काम देख रहे थे और यहां गांव में उनकी मां सोमवती देवी मजदूरों की मदद से खेती कर रही थीं। यहां वे सरसों, गेहूं और चने की खेती करती थीं। उनसे अकेले खेती का काम नहीं संभाला जा रहा था इसलिए उन्होंने अमर को पत्र लिखकर वापस गांव बुला लिया। लेकिन गांव पहुंचकर अमर सिंह ने खेती करने की बजाय एक महिंद्रा वैन ले ली और उसे लोकल में ही चलाने लगे।
ऐसे बदली अमर सिंह की तकदीर
आंवले की खेती शुरू करने की कहानी अमर सिंह की कम रोचक नहीं है। अमर बताते हैं, कि 1995 में एक दिन सुबह वह सवारी को ढो रहे थे। रास्ते में सड़क पर उन्हें अखबार का एक टुकड़ा पड़ा हुआ मिला। उस अखबार में आंवले की खेती के बारे में जानकारी दी हुई थी। अखबार में छपी जानकारी से अमर सिंह इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने आंवला की खेती करने का निश्चय कर लिया।
जानकारी जुटानी शुरू कर दी
इसके बाद अमर सिंह जहां से भी संभव हो सका आंवले की खेती के बारे में और जानकारी जुटानी शुरू कर दी। भरतपुर में बागवानी विभाग में एडवांस पेमेंट करने पर उन्हें आंवला के 60 पौधे मिल गए। उन्होंने इसे अपनी 2 एकड़ की जमीन पर रोप दिया। एक साल बाद उन्होंने 70 पौधे और खरीदे और उन्हें भी रोप दिया। उनकी जमीन उपजाऊ किस्म की थी और आसपास पानी का अच्छा स्रोत भी था। इस कारण सिर्फ 4-5 साल के भीतर ही उनके सारे पेड़ तैयार हो गए और कुछ ही दिनों में फल भी देने लगे। कुछ पेड़ों में 5 किलो तक आंवला निकलता था तो कुछ में 10 किलो तक। इससे सिर्फ एक साल में ही उन्हें 7 लाख की आमदनी हुई। आंवले की अच्छी मार्केट तलाशने के लिए वे मथुरा, भुसावर और भरतपुर गए जहां पर आंवले के मुरब्बे का उत्पादन होता था।
खुद की फैक्ट्री खोली और चल पड़ा बिजनेस
2005 में अमर ने पांच लाख के निवेश से खुद की एक फैक्ट्री खोल ली। इसके लिए उन्हें ल्यूपिन फाउंडेशन की ओर से 3 लाख रुपये भी मिले। उन्होंने पहले साल लगभग 7,000 किलो आंवले का मुरब्बा तैयार किया। इस काम में उन्होंने गांव की महिलाओं की मदद ली। उन्होंने 'अमृता' ब्रैंड से मुरब्बा बेचना शुरू किया और राजस्थान के कुम्हेर, भरतपुर, टोंक, डीग, मंदवार महवा जैसे इलाकों में मुरब्बा बेचा। धीरे-धीरे अमर सिंह का बिजनेस बढ़ता ही गया और 2015 में उन्होंने 400 क्विंटल आंवले का उत्पादन किया। 2012 में अमर सिंह ने अपनी यूनिट का फिर से रजिस्ट्रेशन कराया और कंपनी का नाम 'अमर मेगा फूड प्राइवेट लिमिटेड' रख दिया। उनकी कंपनी में आंवले उगाने से लेकर, प्रोसेसिंग, पैकेजिंग और ट्रांसपोर्टेशन के काम पर उनकी पूरी नजर रहती है। हर साल लगभग 26 लाख से अधिक रुपये का टर्नओवर होने के बावजूद अमर सिंह काफी सादगी से जिंदगी बिता रहे हैं।
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