दुनिया में क्या है ईवी वाहनों की स्थिति? भारत में अभी क्यों नहीं हैं ये कारगर?

रोवन एटकिंसन, इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग के छात्र और खुद को कार नट कहने वाले (वह एक बार टॉप गियर के 'स्टार इन अ रीजनली प्राइस्ड कार' सेगमेंट में दिखे थे) ने द गार्जियन में एक लेख लिखा, जिसका शीर्षक था, 'मुझे इलेक्ट्रिक वाहन पसंद हैं। उन्होंने लिखा कि में उन लोगों में से हूं जिन्होंने शुरुआत में ही इलेक्ट्रिक व्हीकल लिया था लेकिन मुझे ये बिल्कुल पसंद नहीं आया। उनके इस लेख में पेट्रोलहेड्स और ईवी पसंद करने वालों के बीच एक झगड़े को जन्म दिया। एटकिंसन ने लिखा, "बेशक, इलेक्ट्रिक कारों में जीरो एग्जास्ट एमिशन होता है।।। लेकिन अगर आप थोड़ा ज़ूम आउट करें और एक बड़ी तस्वीर देखें जिसमें कार का निर्माण भी शामिल है, तो स्थिति बहुत अलग है।" उन्होंने लिखा कि बेशक यह पूंजीवाद नहीं है लेकिन ईवी को बड़ा बनाने के सपने के पीछे राज्य, निर्माताओं और खनन कंपनियों के बीच एक मिलीभगत है।
एटकिंसन ने लिखा कि यह भारत के लिए विशेष रूप से प्रासंगिक हो सकता है, क्योंकि केंद्र और राज्य सरकारें नेट जीरो एमिशन वाले भविष्य पर चलने की कोशिश कर रही हैं। भारत की इलेक्ट्रिक मोबिलिटी योजना काफी हद तक इंटरनल कंबशन इंजन (आईसीई) वाहनों की जगह लेने वाले बैटरी इलेक्ट्रिक वाहनों (बीईवी) पर केंद्रित है, जिसमें ली-आयन को अब तक सबसे व्यावहारिक बैटरी विकल्प के रूप में देखा जाता है। जो ईवी क्लियर अपफ्रंट टैक्स इन्सेंटिव के लिए क्वालीफाई करते हैं, उन्हें बीईवी कहा जाता है। यह कारों की वह श्रेणी श्रेणी जिसे एटकिंसन मुख्य रूप से टारगेट करते हैं।

बीईवी पुश में दिक्क्तें
अपफ्रंट सब्सिडी: नॉर्वे से लेकर अमेरिका और चीन तक के बाजारों में बीईवी अनुभव से पता चलता है कि इलेक्ट्रिक पुश तभी काम करता है जब इसे राज्य सब्सिडी मिले। इसे आगे बढ़ाने के लिए नॉर्वे की ईवी नीति केंद्र में है, जिसने दुनिया के सबसे उन्नत ईवी बाजार को बढ़ावा दिया है। यहां सरकार गैर-इलेक्ट्रिक की बिक्री पर लगाए गए हाई टैक्स को माफ कर देती है, यह इलेक्ट्रिक कारों को बस लेन में चलाने की अनुमति देती है, टोल सड़कें उनके लिए मुफ़्त हैं, और पार्किंग के भी पैसे नहीं लगते।
ईवी की इस डायरेक्ट सब्सिडी के साथ समस्या, विशेष रूप से भारत जैसे विकासशील देशों में यह है कि अधिकांश सब्सिडी, विशेष रूप से कारों के लिए टैक्स छूट के रूप में दी जाने वाली सब्सिडी, मिडिल या हाई क्लास के हाथों में जाती है, जो आमतौर पर बैटरी इलेक्ट्रिक चार पहिया वाहनों के खरीदार हैं।
चार्जिंग नेटवर्क: विश्व बैंक के एक विश्लेषण में पाया गया कि ईवी अपनाने में अपफ्रंट परचेज सब्सिडी देने के बजाय चार्जिंग के बुनियादी ढांचे में निवेश 4-7 गुना ज़्यादा प्रभावी है। नॉर्वे और चीन ने सार्वजनिक चार्जिंग बुनियादी ढांचे के विस्तार की लगातार कोशिशों के साथ-साथ परचेज सब्सिडी के ज़रिये ईवी को तेजी से अपनाया है। चीन, सार्वजनिक रूप से उपलब्ध चार्जरों की संख्या में सबसे आगे है और यहां वैश्विक फास्ट चार्जर्स का 85 फीसदी और धीमे चार्जर्स का 55 फीसदी हिस्सा है।
भारत में, ईवी की संख्या 2022 के मध्य तक 1 मिलियन को पार कर गई थी, और 2030 तक बढ़कर 45-50 मिलियन हो जाने की संभावना है। लेकिन फ़िलहाल देश भर में केवल लगभग 2,000 सार्वजनिक चार्जिंग स्टेशन ही चालू हैं। इसके अलावा, केपीएमजी की 'इलेक्ट्रिक वाहन चार्जिंग - अगला बड़ा अवसर' रिपोर्ट के मुताबिक, भारत की चार्जिंग बुनियादी ढांचे की मांगें यूनीक हैं, क्योंकि यहां दोपहिया और तिपहिया वाहनों का वर्चस्व है। यहां चार्जिंग नेटवर्क रणनीति में यह देखते हुए बदलाव करना होगा कि बिजली की ज़रूरत अलग-अलग होती है - 2W और 3W में छोटी, कम वोल्टेज वाली बैटरी होती है जिसके लिए सामान्य AC पावर चार्जिंग पर्याप्त होती है, जबकि 4W में विभिन्न बैटरी आकार होते हैं और विभिन्न चार्जिंग मानकों का उपयोग करते हैं।
सिंगल-फ़ेज़ एसी चार्जर सिंगल-फ़ेज़ ऑनबोर्ड चार्जर वाली कारों के लिए ठीक होते हैं, जबकि तीन-फ़ेज़ एसी चार्जर बड़े ऑनबोर्ड चार्जर वाली कारों के लिए ज़रूरी होते हैं। दूसरी ओर, बसों में बड़ी बैटरी और ज़्यादा बिजली की ज़रूरत होती है, जो डीसी फास्ट चार्जिंग को सबसे सही बनाती है।भारत में ज़्यादातर ई-2डब्ल्यू और 3डब्ल्यू मॉडल धीमी चार्जिंग के लिए ठीक हैं, और बैटरी-स्वैपिंग उन मामलों के लिए एक ऑप्शन की तरह उभर रही है जहां तेज चार्जिंग की ज़रूरत होती है।

बिजली स्रोत: ऐसे कई देश जिन्होंने ईवी को बढ़ावा दिया है, वहां ज़्यादातर बिजली रिन्यूएबल एनर्जी से पैदा होती है। नॉर्वे में 99 फीसदी वाटर इलेक्ट्रिक पावर है। भारत में, ग्रिड को अभी भी बड़े पैमाने पर कोयले से चलने वाले थर्मल संयंत्रों द्वारा आपूर्ति की जाती है। जब तक उत्पादन मिश्रण में बदलाव नहीं होता, भारत ईवी को बिजली देने के लिए जीवाश्म ईंधन उत्पादन का उपयोग करता रहेगा।
वैल्यू चेन : जैसे-जैसे भारत ग्लोबल लिथियम वैल्यू चेन में पैठ बनाने के लिए संघर्ष कर रहा है, ईवी मिक्स में ली-आयन बैटरी पर देश की निर्भरता में विविधता लाने की ज़रूरत पर चर्चा हो रही है। भारत से ली-आयन बैटरियों की मांग 2030 तक मात्रा के हिसाब से 30 फीसदी से अधिक की सीएजीआर से बढ़ने का अनुमान है, जो अकेले ईवी बैटरियों के निर्माण के लिए देश के लिए 50,000 टन से अधिक लिथियम की ज़रूरत है। पूरी सोर्सिंग सीरीज में एक मजबूत आधार और बैटरी निर्माता CATL और BYD जैसे उद्योग के नेताओं और Nio, Li Auto और XPENG मोटर्स जैसे कार निर्माताओं के साथ चीन बाकी दुनिया से मीलों आगे है।
इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि भारत के ईवी सेगमेंट के निचले स्तर पर ली-आयन को जबरदस्त सफलता मिली है, जिसमें 2डब्ल्यू और 3डब्ल्यू में तेज उछाल देखा गया है। लेकिन चार-पहिया व्हीकल सेक्शन के बारे में ऐसा नहीं कहा जा सकता, हालांकि वादा तो है। इस बात पर ध्यान देने की ज़रूरत है कि विश्व स्तर पर, ईवी में बीईवी के अलावा, हाइब्रिड इलेक्ट्रिक वाहन, प्लग-इन हाइब्रिड इलेक्ट्रिक वाहन और फ्यूल सेल व्हीकल शामिल हैं।
भारत में, ईवी को बढ़ावा देने के दो प्रमुख उद्देश्य उत्सर्जन में कटौती और महंगे ईंधन आयात को कम करना हो सकता होता है। सरकारी अधिकारियों का तर्क है कि अपफ्रंट टैक्स इंसेंटिव बीईवी तक सीमित हो सकता है, हाइब्रिड जैसी प्रौद्योगिकियों को प्रमुख FAME सब्सिडी योजना के तहत इन्सेंटिव मिलता है।

भारत में अभी इलेक्ट्रिक व्हीकल खरीदना क्यों ठीक नहीं है?
जब किसी व्यक्ति के लिए इलेक्ट्रिक वाहन खरीदने की बात आती है तो कॉस्ट सबसे बड़ा मुद्दा होती है।हालांकि, केंद्र और राज्य सरकारें कई इंसेंटिव दे रही हैं लेकिन सभी नीतियों में सामान्य स्थिति यह है कि इंसेंटिव केवल एक निश्चित संख्या तक के वाहनों के लिए ही लागू होते हैं। छूट और इंसेंटिव को हटाने के बाद वही ईवी जो खरीदने के लिए आकर्षक लग रही थी, अचानक महंगी हो जाती है। यह बताता है कि एक सैचुरेशन प्वाइंट के बाद ईवी खरीदना सस्ता नहीं रहेगा।
दूसरी बात कि यह अब किसी से छिपा नहीं है कि इलेक्ट्रिक वाहनों में ली-आयन बैटरी 6-7 साल या मुश्किल से 8 साल तक चलने के लिए बनाई जाती है और इलेक्ट्रिक वाहन बैटरी के बैटरी डिके पीरियड के बाद इसके कंज्यूमर के पास नई बैटरी खरीदने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचता है। नई बैटरी जिसकी कीमत पूरे वाहन की लागत का लगभग 3/4 वां हिस्सा है। ईवी खरीदारों के लिए बैटरी की लागत एक गंभीर मुद्दा बनने जा रही है क्योंकि इलेक्ट्रिक वाहन बाजार और ग्राहकों दोनों के लिए नए हैं, बैटरी के मुद्दे को सामने आने में कम से कम 5 साल लगेंगे, इसका लंबे समय में असर होगा।
फिलहाल, टेक्नोलॉजी और कंपनियां दोनों ही बाजार में नई हैं और वे जिन प्रोडक्ट्स को बना रही हैं वे संभवतः पहली बार लोगों के पास जा रहे हैं और ऑटोमोबाइल जैसे जटिल उत्पाद को पहली बार में ग्राहकों के लिए उपयुक्त बनाना लगभग असंभव है, और जैसा कि अपेक्षित था, खरीदारों को कई समस्याओं का सामना करना पड़ा। RV400, EPluto 7G, Nexon जैसे वाहनों को ग्राहकों की प्रतिक्रिया और समीक्षाओं के बाद अपने वाहन को काफी हद तक अपडेट करना होगा।
इलेक्ट्रिक वाहनों को चुनने की सोच रहे लोगों के बीच खराब बुनियादी ढांचा सबसे बड़ा मुद्दा है। खराब बुनियादी ढांचे में न केवल चार्जिंग स्टेशनों की कमी शामिल है, बल्कि उनके घर में उचित चार्जिंग सेटअप की कमी भी शामिल है। भारी इलेक्ट्रिक कार को चार्ज करना किसी भी इलेक्ट्रिक कार मालिक के लिए एक बड़ी समस्या हो सकती है अगर उसके पास उचित सेटअप (शक्तिशाली एमसीबी, तार और अर्थिंग) नहीं है।
हर कंपनी का अपना एक तरह का चार्जिंग सेटअप है जिसमें दूसरी किसी कंपनी की गाड़ी को चार्ज करना मुश्किल हो रहा है। यह भी एक बड़ी समस्या है। टेंपरेचर का असर भी ईवी बैटरी को काफी हद तक प्रभावित कर सकता है जो ईवी को बहुत ठंडे (उत्तराखंड, मेघालय) या बहुत गर्म क्षेत्रों जैसे (राजस्थान, केरल) के लिए अनुपयुक्त बनाता है। 15-40 डिग्री के तापमान रेंज में उपयोग में आने पर बैटरी अपना आदर्श प्रदर्शन दे सकती है।
सर्विस और स्पेयर पार्ट्स के बारे में कम जानकारी, बिजली की ज़्यादा खपत, बिजली बनाने के लिए जीवश्म ईंधन की अधिक खपत जैसे और भी कई मुद्दे हैं जो धीरे- धीरे सामने आने वाले हैं।
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