
देश में प्याज की कीमतें आसमान छू रही हैं, जिससे आम जनता को भारी आर्थिक बोझ झेलना पड़ रहा है। हाल ही में प्याज की कीमतों में 60 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। सरकार ने प्याज की बढ़ती कीमतों पर नियंत्रण पाने के लिए भारतीय राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन महासंघ (नेफेड) के माध्यम से प्याज को 35 रुपए प्रति किलोग्राम की दर से उपलब्ध कराने का दावा किया है। हालांकि, अब तक कई जिलों में नेफेड द्वारा इस व्यवस्था को लागू नहीं किया गया है, जिससे लोगों को राहत नहीं मिल पाई है।
बड़े शहरों में प्याज की कीमतें
आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, 22 सितंबर को दिल्ली में प्याज की खुदरा कीमत 55 रुपये प्रति किलोग्राम थी, जबकि पिछले साल की इसी अवधि में यह कीमत 38 रुपये प्रति किलोग्राम थी। इसी प्रकार, मुंबई और चेन्नई जैसे बड़े शहरों में प्याज की कीमतें क्रमशः 58 रुपये और 60 रुपये प्रति किलोग्राम तक पहुंच चुकी हैं। यह वृद्धि घरेलू बाजार में प्याज की उपलब्धता और आपूर्ति पर दबाव को दर्शाती है।
सरकार की राहत योजना
प्याज की बढ़ती कीमतों से निपटने के लिए सरकार ने पांच सितंबर से दिल्ली और अन्य राज्यों की राजधानियों में मोबाइल वैन और नेफेड तथा भारतीय राष्ट्रीय सहकारी उपभोक्ता महासंघ (एनसीसीएफ) की दुकानों के माध्यम से 35 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से प्याज बेचना शुरू किया। हालांकि, इस योजना का अभी तक व्यापक असर नहीं दिखा है और कई जिलों में प्याज की उपलब्धता को लेकर समस्याएं बनी हुई हैं।
खरीफ में बंपर उत्पादन की उम्मीद
प्याज की बढ़ती कीमतों के बीच, सरकार को आगामी खरीफ सीजन से उम्मीदें हैं। कृषि मंत्रालय के सचिव के अनुसार, इस साल खरीफ सीजन में प्याज की फसल का रकबा पिछले साल की तुलना में काफी अधिक है, जिससे अगले महीने से बाजार में प्याज की अच्छी आवक की संभावना है। उन्होंने कहा, “उत्पादन को लेकर कोई चिंता नहीं है, आने वाले समय में प्याज की आपूर्ति बेहतर होगी।”
अन्य वस्तुओं के दामों में वृद्धि
खाद्य वस्तुओं की कीमतों पर बात करते हुए सचिव ने कहा कि खाद्य तेलों की कीमतों में हाल ही में हुई वृद्धि का कारण आयात शुल्क में की गई बढ़ोतरी है। उन्होंने बताया कि यह कदम घरेलू किसानों की सुरक्षा और उन्हें समर्थन देने के लिए उठाया गया है। सचिव ने आश्वासन दिया कि आने वाले समय में प्याज और अन्य वस्तुओं की कीमतों में स्थिरता आने की संभावना है।
सरकार की ओर से प्याज की कीमतों को नियंत्रित करने के प्रयास जारी हैं, लेकिन इसका लाभ आम जनता तक कब पहुंचेगा, यह देखना अभी बाकी है।