पूजा के फूलों का 'पुनर्जन्म' करा फिर भगवान को अर्पित करते हैं निखिल

आप अगर मंदिर जाते होंगे तो देखा होगा कि श्रद्धालु फूल माला भगवान को अर्पित कर अराधना करते हैं। लेकिन क्या आपने सोचा है इन फूलों का क्या होता है? आपको बता दें, अभी तक तो इन फूलों का कुछ नहीं होता था। ये फूल कूड़े का ढेर बनकर मिट्टी में मिल जाते थे, लेकिन इन फूलों का पुनर्जन्म होने लगा है!
आप सोच रहे होंगे, हम कैसी बातें करने लगे। तो हम आपको बता दें, इन फूलों को रिसाइकिल कर अगरबत्ती बनाने का काम किया जा रहा है। और ये अगरबत्ती एक बार फिर भगवान को अर्पित किया जा रहा है। ऐसा करने वाले शख्स का नाम है निखिल गम्पा। निखिल को ये विचार आया कैसे इसकी कहानी भी रोचक है।
मजबूरी में मंदिर में रुकना पड़ा
कहते हैं, भगवान के दर पर इंसान की सोचने की शक्ति और बढ जाती है। ऐसा ही कुछ निखिल के साथ भी हुआ। निखिल गम्पा उन दिनों मध्य प्रदेश के सफर पर थे, संयोगवश उस दौरान उन्हें एक दिन मंदिर में विश्राम करना पड़ा। वहां उन्होंने देखा कि मूर्तियों पर भारी मात्रा में चढ़ाया गया फूल कूड़े की तरह फेंका जा रहा है। पहले तो उन्हें धार्मिक नजरिए से यह अनुचित लगा लेकिन उसी क्षण उनके दिमाग में एक पल के लिए ऐसा आइडिया कौंधा, जिससे भविष्य की एक बड़ी योजना ने मन ही मन उनके भीतर आकार ले लिया।
रिसाइकिलिंग का विचार आया
निखिल ने सोचा कि इस तरह तो देश के सभी मंदिरों से रोजाना न जाने कितनी मात्रा में फूल फेंक दिए जाते होंगे। इनकी क्यों न रिसाइकिलिंग कर कोई नया सामान तैयार किया जाए। इसके बाद निखिल ने टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ़ सोशल साइंस से सोशल आंत्रेप्रेन्योरशिप में मास्टर गम्पा ने सर्वप्रथम इस सम्बंध में विशेषज्ञों से सम्पर्क किया और उनके सहयोग से मुम्बई में 'ग्रीन वेव' संस्था गठित की। मुंबई के मंदिरों के आसपास डस्टबीन रखवा दिए गए। अगले दिन से ही मंदिरों का कचरा उन डस्टबीन्स तक पहुंचने लगा। संस्था से जुड़ी महिलाओं के माध्यम से डस्टबीन में पड़े फूल गम्पा के कार्यस्थल पर जमा करने के साथ ही उसे सुखाया जाने लगे। सूख जाने के बाद उससे अगरबत्तियां तैयार की जाने लगीं।
हर महीने ने 60-70 किलो अगरबत्तियां हो रही हैं तैयार
कचरे के फूलों से अब गम्पा की कार्यशाला में हर महीने लगभग साठ-सत्तर किलो अगरबत्तियां तैयार की जा रही हैं। काम चल निकला है। अब वह रोजाना प्रोडक्शन के बारे में गंभीरता से विचार कर रहे हैं। गम्पा ने एक पंथ दो काज ही नहीं, बल्कि कई काज साध लिये हैं। एक तो मंदिरों के इर्द-गिर्द साफ-सफाई रहने लगी है और दूसरी, इस काम के शुरू होने से बड़ी संख्या में महिलाओं को रोजगार मिला है, साथ ही बासी-कचरा फूलों से एक अच्छा-खासा उद्यम खड़ा कर लिया गया।
मंदिरों के पास रहने लगी सफाई
निखिल के चौकन्ना दिमाग ने उस चीज को अपनी आय के स्रोत और तमाम महिलाओं के लिए रोजगार में तब्दील कर लिया, जो मंदिरों, तीर्थस्थलों पर चढ़ाए जाने के बाद प्रतिदिन टनों मात्रा में कचरे की तरह फेंक दिया जाता है। डस्टबीनों में जमा किए पूजा के बासी फूलों से वह हर महीने लगभग साठ-सत्तर किलो अगरबत्तियां बना रहे हैं। सुखद है कि अगरबत्तियां भी पूजा के ही काम आती हैं। उन्होंने उस चीज़ को अपनी आय का स्रोत बनाया है, जिसे आमतौर पर कचरा करार कर दिया जाता है।
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