पहले ठेले पर बेचते थे पकौड़े, आज हैं पटना के सबसे बड़े ज्वैलर्स

'खराब किस्मत' का इंसान की सफलता से कोई रिश्ता नहीं होता है, अगर इंसान काबिल है तो वो कम संसाधनों के बावजूद अपनी राह बना ही लेता है। आपने ऐसी कई कहानियां पढ़ी होंगी, उसी में से हम आपको एक और सफल इंसान की कहानी बताने जा रहे हैं जो 10 साल की उम्र पर अपनी मां के साथ ठेले पर पकौड़े बेचा करते थे। आज वो एक सफल व्यवसायी हैं।
क्या है इनकी कहानी
यह कहानी है, जयपुर के रहने वाले चांद बिहारी। इनका बिहार से कोई लेना देना नहीं था, लेकिन आज वो बिहार और उत्तर प्रदेश के जाने माने ज्वैलर हैं। चांद बिहारी की हालत हमेशा से ऐसी नहीं थी, उनके पिता की अच्छी खासी कमाई थी। लेकिन उनके पिता ने जिस व्यवसाय से पैसे कमाए, उसी में वो सभी पैसे लुटा भी दिए जिससे इनका पूरा परिवार सड़क पर आ गया।
मां के साथ सड़कों पर बेचने लगे पकौड़े
चांद के पिता को सट्टा खेलते थे, उस समय सट्टा खेलना लीगल हुआ करता था। चांद के पिता ने शुरू में तो सट्टे से काफी पैसे बना लिए, लेकिन धीरे-धीरे उनकी किस्मत खराब होती गई और वे सारे पैसे लुटाते चले गए। घर की हालत इतनी बुरी हो गई कि चांद बिहारी स्कूल ही नहीं जा पाए। उनकी मां नवल देवी अग्रवाल ने घर का पूरा बोझ अपने कंधों पर ले लिया।
1966 में जब चांद बिहारी महज 10 साल के थे तब वह अपनी मां और भाई रतन के साथ एक ठेले पर पकौड़े बेचा करते थे। उनके दो छोटे भाई स्कूल जाते थे और उनकी बहन घर का काम-धाम देखती थीं। चांद बताते हैं कि वे रोज 12 से 14 घंटे तक काम किया करते थे। वो कहते हैं, 'स्कूल जाने का सपना, सपना ही लगता था, क्योंकि हमें पेट भरने के लिए भी पैसे चाहिए थे।' उनके अनुसार यदि उन्हें स्कूली शिक्षा मिली होती तो वह और जल्दी सफल हो जाते लेकिन हालात ऐसे थे कि वह पढ़ ही न हीं सके।
इसके बाद 12 साल की उम्र में उन्होंने जयपुर में ही एक साड़ी की दुकान पर सेल्समैन के तौर पर काम करना शुरू कर दिया। इस काम से उन्हें हर महीने 300 रुपये मिलने लगे थे। उस जमाने में 300 रुपये काफी होते थे।
भाई की शादी से बदली किस्मत
1972 में उनके बड़े भाई रतन की शादी हो गई। शादी के भेंट में मिले 5000 रुपयों से रतन ने जयपुर में 18 पीस चंदौरी साड़ियां खरीदीं और पटना में आकर उन्हें सैंपल के तौर पर दिखाया। यहां उनकी साड़ियां काफी पसंद की गईं। इसके बाद उन्होंने जयपुर से साड़ियां लाकर पटना में बेचने का काम शुरू कर दिया। पटना में ही रतन की ससुराल है। धीरे-धीरे रतन का काम बढ़ता गया और उन्हें मदद के लिए कुछ लोगों की जरूरत महसूस होने लगी।
1973 में चांद बिहारी भी पटना आ गए
उन्होंने 1973 में चांद बिहारी को अपने पास पटना बुला लिया। उनके पास पैसे तो ज्यादा नहीं थे, लेकिन उनका सपना बहुत बड़ा था और सपने के साथ ही काम करने की शिद्दत भी थी। पैसे न होने की वजह से वे किराए पर दुकान नहीं ले पाए और उन्होंने पटना रेलवे स्टेशन के पास फुटपाथ पर ही अपनी दुकान शुरू कर दी। चांद बिहारी उन दिनों को याद करते हुए कहते हैं, 'गर्मी की तपती दोपहर में लोगों को बुलाना और उनसे सामान खरीदने के लिए कहना काफी मुश्किल होता था।'
चांद की किस्मत ने फिर धोखा दिया
हालांकि चांद की किस्मत ने एक बार फिर धोखा दे दिया, 1977 में उनकी दुकान में चोरी हो गई। इसी साल चांद बिहारी की शादी हुई थी और खून-पसीने की कमाई से खड़ा किया पूरा बिजनेस धाराशाई हो गया। लगभग 4 लाख का नुकसान हुआ। इसके एक साल पहले ही रतन ने भी साड़ी का काम छोड़कर रत्न और आभूषण का काम शुरू कर दिया था। चांद बिहारी बताते हैं कि यह उनकी जिंदगी का सबसे बुरा दौर था। उस वक्त वे खुद को असहाय और कमजोर मान बैठे थे।
हिम्मत नहीं हारी और फिर शुरू किया बिजनेस
इसके बाद रतन ने चांद बिहारी को संभाला और उनसे ज्वैलरी में हाथ आजमाने को कहा। उन्हें इस बिजनेस के बारे में कोई जानकारी नहीं थी, लेकिन रतन ने उन्हें सब समझाया। उन्होंने 5,000 रुपये से रत्न और आभूषण की दुकान शुरू की। उनकी किस्मत अच्छी निकली और उनका यह बिजनेस भी चल पड़ा। इसके बाद चांद बिहारी ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।
1988 में इसी धंधे की बदौलत उन्होंने दस लाख की पूंजी इकट्ठा की और सोने के व्यापार में कदम रख दिया। अपनी क्वॉलिटी और भरोसे के दम पर चांद बिहारी ने यूपी और बिहार में अपना नाम जमा लिया। 2016 में उनका टर्नओवर लगभग 17 करोड़ था। उनकी छोटी सी दुकान आज एक बड़ी कंपनी बन गई है। एक साल पहले ही उन्हें सिंगापुर में ऑल इंडिया बिजनेस ऐंड कम्यूनिटी फाउंडेशन की ओर से सम्मानित भी किया गया।
संबंधित खबरें
सोसाइटी से
अन्य खबरें
Loading next News...
