
भारतीय रिजर्व बैंक आरबीआई के गवर्नर डा. शक्तिकांत दास ने सोमवार को चेतावनी दी कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता पर निर्भरता से साइबर हमलों और डेटा उल्लंघनों का खतरा बढ़ रहा है, जिससे देश की वित्तीय स्थिरता को खतरा हो सकता है। इसके साथ ही उन्होंने निजी वित्तीय संस्थानों की तरफ से अंधाधुंध कर्ज वितरण का मुद्दा उठाया है और इसे देश व दुनिया के लिए वित्तीय स्थिरता के लिए खतरा बताया है।
आरबीआई गवर्नर सोमवार को यहां ‘सेंट्रल बैंकिंग एट क्रासरोड्स’ नाम से आयोजित कांफ्रेंस में मुख्य अभिभाषण देते हुए उक्त बात कही। उन्होंने ब्याज दरों को लेकर दुनिया के अलग-अलग केंद्रीय बैंको की तरफ से अलग-अलग रवैया अपनाने के मौजूदा तौर-तरीके पर भी सवाल उठाया और इसे भी वैश्विक वित्तीय स्थिरता के लिए एक चुनौती करार दिया।
वित्तीय स्थिरता जोखिम
दास ने कहा कि वैश्विक केंद्रीय बैंकों को आज वित्तीय स्थिरता के लिए कई उभरते जोखिमों का सामना करना पड़ रहा है। सबसे बड़ा जोखिम यह है कि वैश्विक मौद्रिक नीतियों में भिन्नता। कुछ अर्थव्यवस्थाओं में मौद्रिक ढील से लेकर कुछ में सख्ती और कई अन्य अर्थव्यवस्थाओं में ठहराव, पूंजी प्रवाह और विनिमय दरों में अस्थिरता पैदा कर सकती है जो वित्तीय स्थिरता को बाधित कर सकती है।
आरबीआई गवर्नर ने कहाकि अगस्त की शुरुआत में जापानी येन में तीव्र वृद्धि के साथ हमने इसकी एक झलक देखी जिसके कारण येन कैरी ट्रेड में उथल-पुथल मच गई और दुनिया भर के वित्तीय बाजारों में उथल-पुथल मच गई।
उन्होंने कहा कि सीमित विनियमन के साथ निजी ऋण बाजारों में तेजी से विस्तार से वित्तीय स्थिरता के लिए महत्वपूर्ण जोखिम उत्पन्न हो रहे हैं, विशेष रूप से इसलिए क्योंकि मंदी के दौरान उनका तनाव परीक्षण नहीं किया गया है।
उनकी यह टिप्पणी हाल ही में केंद्रीय बैंक की उस चेतावनी के बाद आई है जिसमें उसने गैर-बैंकिंग ऋणदाताओं, विशेष रूप से निजी इक्विटी या उद्यम पूंजी खिलाड़ियों द्वारा समर्थित ऋणदाताओं द्वारा सोना, बंधक और माइक्रोफिनेंस जैसे असुरक्षित और सुरक्षित ऋणों के कुछ क्षेत्रों में बेईमानी से वृद्धि के बारे में चेतावनी दी थी।
दास ने उच्च ब्याज दरों से उत्पन्न जोखिमों पर भी प्रकाश डाला, जिसका उद्देश्य मुद्रास्फीति संबंधी दबावों को कम करना है; जैसे कि ऋण सेवा लागत में वृद्धि, वित्तीय बाजार में अस्थिरता और परिसंपत्ति गुणवत्ता के लिए जोखिम। उन्होंने कहा कुछ क्षेत्रों में परिसंपत्तियों के बढ़े हुए मूल्यांकन से वित्तीय बाजारों में संक्रमण फैल सकता है जिससे और अस्थिरता पैदा हो सकती है। कुछ क्षेत्रों में वाणिज्यिक अचल संपत्ति (सीआरई) की कीमतों में सुधार से छोटे और मध्यम आकार के बैंकों पर दबाव पड़ सकता है, क्योंकि इस क्षेत्र में उनके बहुत ज्यादा जोखिम हैं।
उन्होंने आगे कहा कि सीआरई, गैर-बैंक वित्तीय संस्थानों और व्यापक बैंकिंग प्रणाली के बीच परस्पर जुड़ाव इन जोखिमों को बढ़ाता है। आज केंद्रीय बैंकों के सामने‘बढ़ती सार्वजनिक ऋण’ एक और चुनौती है जो कई देशों में मौद्रिक नीति पर एक बाध्यकारी बाधा बन रही है। वैश्विक सार्वजनिक ऋण महामारी के बाद 2023 में सकल घरेलू उत्पाद के 93.2 प्रतिशत तक बढ़ गया है और 2029 तक सकल घरेलू उत्पाद के 100 फीसदी तक बढ़ने की संभावना है।
प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में ऋण-जीडीपी अनुपात ऊपर की ओर बढ़ रहे हैं जिससे उनकी स्थिरता और व्यापक वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए उनके नकारात्मक प्रभाव के बारे चिंताएं बढ़ रही हैं। कई अन्य देशों में, केंद्रीय बैंकों से ऐसे विशाल सार्वजनिक ऋणों के वित्तपोषण की सुविधा प्रदान करने की अपेक्षा की जाती है जिसका प्रभाव उभरती और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं और यहां तक कि अन्य उन्नत अर्थव्यवस्थाओं द्वारा भी महसूस किया जाता है।
उन्होंने कहा, पूंजी प्रवाह के कारण व्यापार प्रवाह के मुकाबले इन प्रभावों के और बढ़ने की उम्मीद है। स्वाभाविक रूप से, उभरती अर्थव्यवस्थाओं को इस बाहरी प्रवाह को प्रबंधित करने और इसके प्रतिकूल परिणामों को कम करने के लिए अपने नीतिगत ढांचे और बफर को मजबूत करना होगा।
सीमा पर भुगतान
दास ने कहा,सीमा पर भुगतान बाजार में सीमा पार से काम करने वाले लोगों द्वारा भेजे जाने वाले धन, पूंजी के सकल प्रवाह और सीमा पार ई-कॉमर्स की मात्रा में वृद्धि के कारण उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। इस प्रकार, धन प्रेषण के लिए लागत और समय को महत्वपूर्ण रूप से कम करने की बहुत अधिक गुंजाइश है जिसे कई उभरती और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के लिए सीमा पार पीयर-टू-पीयर भुगतान के लिए शुरुआती बिंदु माना जाता है।
भारत 24X7 रियल टाइम ग्रॉस सेटलमेंट (RTGS)प्रणाली वाली कुछ बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक है।USD, EUR और GBP जैसी प्रमुख व्यापारिक मुद्राओं में लेनदेन निपटाने के लिएRTGS के विस्तार की व्यवहार्यता द्विपक्षीय या बहुपक्षीय व्यवस्थाओं के माध्यम से तलाशी जा सकती है। उन्होंने कहा कि भारत और कुछ अन्य अर्थव्यवस्थाओं ने द्विपक्षीय और बहुपक्षीय दोनों तरीकों से सीमा पार तेज भुगतान प्रणालियों के संपर्क का विस्तार करने के प्रयास पहले ही शुरू कर दिए हैं। इनमें प्रोजेक्ट नेक्सस शामिल है जो चार आसियान (दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के संगठन) देशों (मलेशिया, फिलीपींस, सिंगापुर और थाईलैंड) और भारत के घरेलू त्वरित भुगतान प्रणालियों (आईपीएस) को जोड़कर तत्काल सीमा पार खुदरा भुगतान के लिए एक बहुपक्षीय अंतरराष्ट्रीय पहल है।
द्विपक्षीय व्यवस्थाओं के तहत, भारत द्वारा सिंगापुर, यूएई, मॉरीशस, श्रीलंका और नेपाल के साथ सीमा पार भुगतान संपर्क पहले ही स्थापित किए जा चुके हैं। वैश्विक सीमा पार भुगतान का मूल्य 2027 तक 250 ट्रिलयन डॉलर से अधिक होने का अनुमान है।
आरबीआई द्वारा उद्धृत रिपोर्टों के अनुसार, वैश्विक सीमा पार बी2सी ई-कॉमर्स बाजार का मूल्य 2022 में 889 बिलियन डॉलर था और 2030 तक राजस्व में छह गुना से अधिक बढ़कर 5.6 ट्रिलियन डॉलर होने का अनुमान है।
दास ने कहा कि यहां केंद्रीय बैंक डिजिटल मुद्राएं (सीबीडीसी) महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं। उन्होंने कहा कि भारत अपने थोक और खुदरा सीबीडीसी पायलटों के तहत मूल्यवर्धित सेवाओं जैसे कि प्रोग्रामेबिलिटी, यूपीआई-खुदरा तीव्र भुगतान प्रणाली के साथ अंतर-संचालन और दूरदराज के क्षेत्रों और आबादी के वंचित वर्गों के लिए ऑफलाइन समाधान के विकास के साथ प्रयोग कर रहा है।
आगे बढ़ते हुए, सीबीडीसी के लिए सीमा पार भुगतान और क्रिप्टोकरेंसी से जुड़ी वित्तीय स्थिरता संबंधी चिंताओं को दूर करने के लिए मानकों और अंतरसंचालनीयता का सामंजस्य महत्वपूर्ण होगा। दास ने कहा कि हालांकि एक प्रमुख चुनौती यह हो सकती है कि देश अपने स्वयं के सिस्टम डिजाइन करना पसंद कर सकते हैं लेकिन इसे ‘प्लग-एंड-प्ले सिस्टम’ विकसित करके दूर किया जा सकता है जो भारत के अनुभव की नकल करने की अनुमति देता है और साथ ही संबंधित देशों की संप्रभुता को भी बनाए रखता है।