यहां 'मोक्ष एयरपोर्ट' से अंतिम यात्रा पर निकलते हैं परिजन, वजह है बेहद खास

मौत एक ऐसी सच्चाई है जिसे बदला नहीं जा सकता है, हर इंसान को एक दिन इसका सामना करना पड़ता है। मौत के बाद गमगीन परिजनों के उपर अपने प्रिय के जाने का गम इस कदर हावी हो जाता है कि वो पूरा परिवार नकारात्मकता में घिरा चला जाता है। इसी नकारात्मकता को कम करने के लिए साउथ गुजरात के बारडोली में मोक्षधाम के प्रमुख सोमाभाई पटेल ने एक प्रयास किया है।
श्मशान का पूरा लुक एयरपोर्ट की तरह
सोमाभाई पटेल ने साउथ गुजरात के बारडोली में मोक्षधाम को एयरपोर्ट के लुक में तैयार करवा रहे हैं। यह श्मशान देश में अपने आप में इकलौता है जिसे एयरपोर्ट की तर्ज पर लुक दिया जा रहा है। इसका मोटिव श्मशान में फैली नकारात्मकता और शब्द के भारीपन को कम करना है। अंतिमधाम का नाम मोक्ष एयरपोर्ट होगा।
सर्वाधिक सुविधाजनक अंतिमधाम
ये अंतिमधाम गुजरात के सर्वाधिक सुविधाजनक अंतिमधाम में आता है। इसको मींढोला नदी के किनारे बनाया गया है। आसपास के लगभग 40 गांवों के लोग अंतिम क्रिया के लिए यहां आते हैं। यहां 40-40 फुट के विमान के दो मॉडल लगाने की तैयारी है ताकि अंतिम संस्कार के लिए आने वालों को हवाई अड्डे जैसा एहसास हो।
टेकऑफ मुद्रा में प्लेन
श्मशान के लिए बनाई नई शब्दावली ताकि कम कर्कश लगे श्मशान शब्द साथ ही टेकऑफ मुद्रा में लगेंगे प्लेन के 40-40 फुट के दो मॉडल। मोक्ष एयरलाइंस’ एवं 'स्वर्ग एयरलाइंस’ रखे गए हैं। प्रवेश से लेकर पार्थिव देह को भट्टी तक पहुंचाने तक की प्रक्रिया हवाई अड्डे के माहौल जैसी बनेगी। मोक्षधाम में दो लकड़ी तथा तीन गैस चिताएं (भट्टी) हैं। इनके लिए अब गेट शब्द प्रयोग होगा।
टेकऑफ के बाद लाइटें जगमग होंगी
पार्थिव देह लेकर आए स्वजन किस नंबर की चिता पर जाएंगे इसका अनाउंसमेंट एंट्री गेट- 2 के रूप में होगा। अंतिम अनुष्ठान के बाद चिताएं बंद होते ही विमान के टेकऑफ होने की आवाज के साथ मॉडल विमान में लाइटें जगमग होंगी। इससे ऐसा एहसास होगा कि दिवंगत स्वजन को विमान में विदा किया है। इसकी तैयारी चल रही है। जल्द ही मोक्षधाम -अंतिम उड़ान मोक्ष एयरपोर्ट बन जाएगा।
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ऐसे आया आइडिया
अंतिम धाम के प्रमुख सोमाभाई पटेल कहते हैं कि श्मशान शब्द बोलते ही एक पूरा दृश्य आंखों के सामने आ जाता है। इसलिए श्मशान शब्द को पृष्ठभूमि में ले जाने का एक साधारण विचार आया कि अगर कोई दूसरा नाम दिया जाए तो क्या हो सकता है। पहले बुजुर्ग किसी स्वजन की मृत्यु होने पर बच्चों से कहते थे रोना नहीं, दादा दो स्वर्ग में गए हैं। तुम्हारे दादाजी को विमान लेने आया था। ये बात स्मरण होने पर साफ हुआ कि श्मशान से विमान शब्द पहले से जुड़ा है। इस पर श्मशान पर एयरपोर्ट जैसा माहौल बनाना तय किया।
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