मीलिया डूबिया और यूकेलिप्टस से अब घर आएगी 'खुशहाली'

पौधरोपण के सहारे जीविका चलाने वाले किसानों के 'अच्छे दिन' आने वाले हैं। मीलिया डूबिया और यूकेलिप्टस लगाना अब पहले से ज्यादा फायदेमंद हो गया है।
जी हां...इंडियन काउंसिल ऑफ फॉरेस्ट्री रिसर्च एंड एजुकेशन (आईसीएफआरई), देहरादून ने ज्यादा प्रॉडक्टिविटी वाले 20 पौधों को विकसित किया है। वैज्ञानिकों को यह सफलता 10 वर्ष के कठिन परिश्रम के बाद मिली है। वैज्ञानिकों ने मीलिया डूबिया की 10 और यूकेलिप्टस की 3 नई प्रजातियां खोजी हैं, जिससे किसानों को ज्यादा फायदा होगा।
इन पौधों की लकड़ियों की है भारी डिमांड
मीलिया डूबिया को आम बोलचाल की भाषा में गोरा नीम भी कहा जाता है। इसे ड्रेक या मालाबार नीम के नाम से भी जाना जाता है। इन पौधों की लकड़ियों की भारी डिमांड है। ये पौधे ज्यादा उत्पादन क्षमता वाले हैं। प्रति वर्ष/प्रति हेक्टेयर औसतन 34.57 क्यूबिक मीटर लकड़ियां पैदा होती हैं। इन लकड़ियों की प्लाई इंडस्ट्री में जबरदस्त मांग है।
इसी तरह यूकेलिप्टस की प्रति वर्ष/प्रति हेक्टेयर प्रॉडक्टिविटी 19.44 क्यूबिक मीटर दर्ज की गई। पहले उत्पादन 5-7 क्यूबिक मीटर प्रति हेक्टेयर/प्रति वर्ष दर्ज की जाती थी। नई प्रजाति में रोग प्रतिरोधक क्षमताएं भी विकसित की गई हैं।
वैज्ञानिकों के मुताबिक, इस मुहिम के तहत गोरा नीम की 10 और यूकेलिप्टस की 3 प्रजातियां विकसित कर उनका रोपण हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में किया गया। नतीजे बेहद उत्साहजनक आए।
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