फसलों के नुकसान की आर्थिक भरपाई से जुड़ी प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना किसानों से कहीं अधिक बीमा कंपनियों के लिए मुनाफे का सौदा साबित हुई है। प्रदेश सरकार की पड़ताल में भी अब यह सच्चाई उजागर हो चुकी है की बीमा कंपनियों द्वारा प्रीमियम के तौर पर ली गई राशि के एवज में बीते वर्षों में किए गए भुगतान के आंकड़े काफी कम हैं। औसत दावा अनुपात 40-60 प्रतिशत रहा है। जिससे सरकार को आर्थिक चोट भी पहुंच रही है क्योंकि प्रीमियम की राशि का 98 प्रतिशत केंद्र व राज्य सरकार द्वारा दिया जाता है। पिछले अनुभवों से सबक लेते हुए कृषि विभाग ने फसल बीमा कंपनियों को नफे-नुकसान के दायरे में बांधा है। नतीजा यह है की पहली बार बीमा कंपनियां सरकार को प्रीमियम के तौर पर वसूली गई राशि का एक बड़ा हिस्सा वापस करेंगी। यह राशि 300 करोड़ से अधिक हो सकती है।
फसल बीम कंपनियों द्वारा प्रीमियम के एवज में ली जा रही राशि और वितरित क्षतिपूर्ति के अध्ययन के बाद गत वित्तीय वर्ष कृषि विभाग ने एक गाइड लाइन जारी की थी, जिसके अनुसार यदि बीमा कंपनियां वसूले गए प्रीमियम का 80 प्रतिशत से कम भुगतान करती हैं तो उन्हें शेष राशि सरकार को वापस करनी होगी। वहीं यदि दावा अनुपात 110 प्रतिशत से अधिक पहुंच जाता है तो उनके घाटे की भरपाई प्रदेश सरकार करेगी। कृषि विभाग के तत्कालीन अपर मुख्य सचिव डॉ देवेश चतुर्वेदी की पहल पर लिया गया यह निर्णय अब सही साबित होता दिख रहा है। बीते वर्ष खरीफ व रबी की फसल के दौरान बीमा कंपनियों ने केंद्र व राज्य सरकार के साथ-साथ किसानों के अंशदान के रूप में 935 करोड़ रुपए प्रीमियम के रूप में लिए जबकि क्लेम के रूप में किसानों को 405 करोड़ रुपए का ही भुगतान किया गया। यह 80 प्रतिशत के तय मानक से 36.69 प्रतिशत कम है। सीधे शब्दों में समझे तो बीमा कंपनियों को 343 करोड़ रुपए की राशि सरकार को वापस करनी पड़ सकती है। हालांकि ऐसा नहीं है की इससे बीमा कंपनियों को इस फार्मूले से कोई नुकसान होगा, उनकी जेब में भी मुनाफे के तौर पर करीब 187 करोड़ रुपए आएंगे। नफे-नुकसान के दायरे में बंधने पर अब पहले जैसा फायदा नहीं होगा।
कृषि विभाग ने मोटे तौर पर अध्ययन कर बीमा कंपनियों को इस संबंध में पत्र लिखा है और उनसे भी आंकलन करने को कहा है। सरकार को बीमा कंपनियों के जवाब की प्रतीक्षा है। इन आंकड़ों में आंशिक फेरबदल की गुंजाइश भी बताई जा रही है। खरीफ के दौरान किसानों से फसल बीमा के एवज में प्रीमियम की महज दो प्रतिशत राशि ली जाती है शेष राशि केंद्र व राज्य सरकार बराबर-बराबर करते हैं। वहीं रबी में किसान का अंशदान महज डेढ़ प्रतिशत का होता है और शेष राशि केंद्र व राज्य सरकार 50-50 प्रतिशत के अनुपात में देती है। हालांकि फसल बीमा किसानों के हित में है क्योंकि उनके प्रीमियम के बड़े हिस्से का भुगतान सरकार करती है।