फेल होने के बाद घर छोड़कर भागे, आज है 70 करोड़ की फूड चेन

इंसान की योग्यता उसको शिखर पर पहुंचाकर ही दम लेती है, चाहें वो इंसान अपनी शुरुआत कैंटीन में बर्तन धोकर ही क्यों न की हो! हम बात कर रहे हैं देश में सागर रत्ना फूड चेन के मालिक जयराम बानन की, जयराम के इस फूड चेन के मालिक बनने की कहानी दिल्चस्प और संघर्ष से भरी हुई है।
फेल होने के बाद घर छोड़कर भाग गए
जयराम का बचपन कर्नाटक के उडिपी में बीता। पेशे से ऑटो ड्राइवर उनके पिता काफी सख्त थे और परीक्षा में कम नंबर आने या स्कूल में शरारत करने पर वे बच्चों की आंख में मिर्च झोंक देते थे। जयराम सात भाई-बहन थे। जब वे 13 साल की उम्र में थे तो स्कूल में फेल हो गए। अपने पिता की मार खाने के डर से उन्होंने चुपके से पिता के पर्स से कुछ पैसे निकाले और घर से भाग कर मुंबई जाने वाली एक ट्रेन पकड़ ली।
कैंटीन में बर्तन धोने लगे
जयराम के साथ उनके गांव का एक व्यक्ति और था जो मुंबई जा रहा था। उसने जयराम को नवी मुंबई के पनवेल में स्थित हिंदुस्तान ऑर्गेनिक केमिकल्स (HOC) की कैंटीन में काम पर लगा दिया। यहां वह बर्तन धुलते थे, जहां उन्हें सिर्फ 18 रुपये महीने के मिलते थे।
जयराम ने बर्तन धुलते-धुलते थोड़ी सी तरक्की की और बर्तन से टेबल तक पहुंच गए यानी वेटर बन गए। आठ साल तक वे वहां पर काम करते रहे और फिर हेडवेटर होते हुए मैनेजर की पोस्ट तक पहुंचे। HOC में काम करते-करते उन्होंने बिजनेस और मैनेजमेंट की जानकारी हासिल कर ली। अब उन्हें हर महीने 200 रुपये मिलने लगे थे।
आज उनकी कंपनी का 70 करोड़ से अधिक का टर्नओवर
जयराम आज सागर रत्न रेस्टोरेंट की चेन चलाते हैं। यह नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं है। वे इस चेन से हर साल 70 करोड़ से अधिक का टर्नओवर कमा लेते हैं। उनकी कहानी किसी चमत्कार से कम नहीं लगती। हिंदुस्तान ऑर्गेनिक केमिकल्स (HOC) में काम करते हुए उन्हें बिजनेस का आइडिया सूझा और उन्होंने मुंबई में ही साउथ इंडियन फूड रेस्टोरेंट खोलने का सोचा, लेकिन उस वक्त मुंबई में साउथ इंडियन फूड के काफी सारे रेस्टोरेंट खुल रहे थे इसलिए जयराम 1973 में दिल्ली चले आए।
भाई दिल्ली के रेस्टोरेंट में मैनेजर थे
1973 में जिन दिनों जयराम ने मुंबई छोड़ कर दिल्ली में अपना काम शुरू करने का फैसला लिए, उन दिनों उनके भाई दिल्ली के उडुपी रेस्टोरेंट में मैनेजर का काम करते थे। इसी वक्त उनकी शादी प्रेमा से हुई। सरकार उस वक्त गाजियाबाद में सेंट्रल इलेक्ट्रॉनिक्स की स्थापना कर रही थी। जयराम ने वहां की कैंटीन का ठेका हासिल कर लिया। उस वक्त उनके पास सिर्फ 2,000 रुपये थे। यह उनके करियर का टर्निंग पॉइंट साबित हुआ। उन्होंने तीन काबिल रसोइयों को हायर किया और अच्छी क्वॉलिटी का खाना उपलब्ध कराना शुरू कर दिया, जिसके चलते उनके खाने की लोकप्रियता काफी बढ़ चुकी थी।
साउथ इंडियन खाने की डिमांड
जिन दिनों जयराम ने दिल्ली में अपना काम शुरू किया उन दिनों वहां अच्छा साउथ इंडियन भोजन खोजने से भी नहीं मिलता था। इसी मौके का फायदा उठाते हुए जयराम ने सड़क पर ठेले लगाने वालों के दाम पर ही इडली और डोसा बेचना शुरू कर दिया। 1986 में जयराम ने दिल्ली की डिफेंस कॉलोनी मार्केट में पहला रेस्टोरेंट खोला। इसका नाम उन्होंने रखा सागर। हालांकि उनके पास इन्वेस्टमेंट के नाम पर सिर्फ 5,000 रुपये ही थे, लेकिन अपनी लगन और मेहनत पर भरोसे उन्होंने अपनी धाक जमा ली। उन्हें हर महीने दुकान का 3,000 रुपये किराया देना होता था, लेकिन इसके बावजूद उन्होंने कभी खाने की क्वॉलिटी से कोई समझौता नहीं किया। वह सुबह 7 बजे से देर रात तक काम में लगे रहते थे। उनका साउथ इंडियन रेस्टोरेंट इतना पॉप्युलर हो गया, कि बैठने की सीट्स नहीं खाली रहती थीं और लोगों को लाइन लगाकर इंतजार करना पड़ता था।
ब्रांड बन चुका है सागर रत्न फूड
बहुत जल्द ही उन्होंने 'सागर रत्न फूड' के नाम से अपना ब्रैंड स्थापित कर लिया। आज चंडीगढ़, मेरठ, गुड़गांव, लुधियाना जैसे लगभग 35 शहरों में उनके 90 से अधिक फूड आउटलेट्स हैं। अमेरिका, सिंगापुर और ऑस्ट्रेलिया में भी उनके रेस्टोरेंट की ब्रांच हैं।
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