इस फसल की खेती करने से किसानों को हो सकता है फायदा, कीमत में हुआ इजाफा

सोयाबीन की कीमतों में पिछले साल के मुकाबले 1,000 रुपये प्रति क्विंटल से ज्यादा का इजाफा हुआ है और इसकी मांग भी देश में हर जगह है। भारत का खाद्य तेल आयात तकरीबन 150 लाख टन सालाना है।
महाराष्ट्र के राज्य कृषि मूल्य आयोग के प्रमुख पाशा पटेल का कहना है, प्रदेश के किसानों का रुझान इस साल कपास के बजाय सोयाबीन की फसल की तरफ होगा क्योंकि इस बार उसकी कीमतों में भारी इजाफा हुआ है। इसकी खेती में पिंकबॉलवर्म जैसे रोग का भी कोई खतरा भी नहीं है। इसलिए आगामी बुवाई सीजन में कपास का रकबा घटकर सोयाबीन क बढ़ सकता है।
कॉटन एसोसिएशन ऑफ इंडिया ने भी अपने मासिक विश्लेषण में इस बात को स्वीकारा कि कपास के बजाय सोयाबीन की खेती के प्रति इस साल किसानों का रुझान ज्यादा होगा। एसोसिएशन के प्रमुख अतुल गंतरा ने इसके दो प्रमुख कारण गिनाए। उनके मुताबिक, एक तो पिंक बॉलवर्म का प्रकोप है दूसरा कपास चुनने में मजदूरों का अभाव और दोनों से ही किसान परेशान हैं।
कपास की खेती का घट सकता है रकबा
कपास की खेती करने वाले किसान कीटों से बहुत परेशान हैं ऐसे में सोयाबीन की खेती उनके लिए फायदेमंद साबित हो सकती है। एक क्विंटल रूई पर कपास चुनने की लागत 1,000 रुपये से अधिक आती है। ऐसे में ऊंचे भाव पर बिकने के बावजूद भी यह किसानों के बहुत लाभकारी फसल साबित नहीं हुई है क्योंकि इसमें मजदूरी अच्छी खासी लग जाती है। वहीं इस साल फिर मानसून अच्छे होने की संभावना है जिससे खाद्य फसलों की तरफ किसानों का झुकाव बढ़ सकता है।
हालांकि कुछ दिन पहले ही मुंबई में आयोजित सीएआई के सम्मेलन में भारत की टेक्सटाइल कमीश्नर कविता गुप्ता ने भी कहा कि कपास का रकबा भले ही इस सीजन में थोड़ा कम रहे लेकिन, रूई के उत्पादन में कोई कमी नहीं रहेगी।
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