आर्थिक सर्वेक्षण : देश विश्व की सर्वाधिक तेजी से विकसित हो रही अर्थव्यवस्था

आर्थिक सर्वेक्षण 2016-17 में तेज पुनर्मुद्रीकरण, कर दरों, स्टांप शुल्कों में कटौती और अत्यधिक कर लगाने की नीति से देश एक बार फिर विश्व की सर्वाधिक तेज अर्थव्यवस्था बन सकता है। केंद्रीय वित्तमंत्री अरुण जेटली ने संसद में सर्वेक्षण पेश करते हुए कहा कि पुनर्मुद्रीकरण की लागत अल्पकालीन थी, लेकिन उससे लंबी अवधि के लिए लाभ रखा गया।
जीएसटी से साझा घरेलू बाजार का सृजन होगा
सर्वेक्षण के मुताबिक, 'इन गतिविधियों से विकास 2017-18 के रुझान की ओर लौटेगा, जिससे देश विश्व की सर्वाधिक तेजी से विकसित हो रही अर्थव्यवस्था बनेगा।' सर्वेक्षण में कहा गया है कि 2016-17 में घरेलू नीति से संबंधित दो प्रमुख घटनाक्रम हुए, जिसमें से एक संविधान संशोधन से वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) का मार्ग प्रशस्त होना और दूसरा नोटबंदी रहा।
सर्वेक्षण के मुताबिक, 'जीएसटी से साझा घरेलू बाजार का सृजन होगा, कर अनुपालन और सुशासन में सुधार होगा और निवेश एवं विकास बढ़ेगा। यह देश के सहकारी संघवाद के सुशासन में एक नया बदलाव भी है।' इस सर्वेक्षण में यह भी कहा गया कि इस साल देश ने कई वैधानिक उपलब्धियां हासिल की हैं, जिसमें दिवालियापन कानून में सुधार करना भी है।
विकास दर 6.75-7.5 फीसदी रहेगी
देश के आर्थिक सर्वेक्षण में वित्त वर्ष 2016-17 में देश के विकास दर के 6.75 फीसदी से 7.5 फीसदी रहने का अनुमान लगाया गया है। जबकि केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय ने विकास दर 7.1 फीसदी रहने का अनुमान जाहिर किया है। वित्तमंत्री अरुण जेटली ने आर्थिक सर्वेक्षण को मंगलवार को संसद में पेश किया। उन्होंने कहा कि चालू वित्त वर्ष में कृषि क्षेत्र की रफ्तार अच्छी है और यह 4.1 फीसदी रहेगी। वहीं, औद्योगिक उत्पादन घटकर 5.2 फीसदी और सेवा क्षेत्र की रफ्तार 8.8 फीसदी रहेगी।
इस सर्वेक्षण में पिछले साल नवंबर में लागू की गई नोटबंदी के बारे में कहा गया है, 'जैसे जैसे नई मुद्रा प्रचलन में बढ़ती जाएगी और नोटबंदी के बाद सरकार द्वारा उठाए गए कदमों और नई मुद्रा का प्रचलन बढ़ने के बाद वित्त वर्ष 2017-18 में अर्थव्यवस्था की रफ्तार सामान्य हो जाएगी।' सर्वेक्षण में कहा गया है, 'वित्त वर्ष 2017-18 में भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास दर 6.75 से 7.5 फीसदी रहेगी।'
सार्वजनिक संपत्तियों के पुनर्गठन के लिए एजेंसी बनेगी
वित्तमंत्री अरुण जेटली ने मंगलवार को आर्थिक सर्वेक्षण 2016-17 को संसद में प्रस्तुत करते हुए केद्रींकृत सार्वजनिक संपत्ति पुनर्गठन एजेंसी (पारा) के गठन की बात कही है। सर्वेक्षण के मुताबिक, देश इस समय 'दोहरे बैलैंस शीट (टीबीएस)' की समस्या से जूझ रहा है। एक तरफ ऋण के बल पर कारोबार कर रही कंपनियां हैं, तो दूसरी तरफ बुरे ऋण देकर फंसे हुए बैंक हैं। यह वैश्विक वित्तीय संकट के आसपास के वर्षो में आई उछाल से मिली विरासत है।
सर्वेक्षण में कहा गया है, 'अब तक, वहां सीमित सफलता मिली है। कई समस्याएं जारी हैं, जैसे बैंकिंग प्रणाली (खासतौर से सरकारी बैंकों) में गैर निष्पादित परिसंपत्तियां (फंसे हुए कर्जे) बढ़ती जा रही हैं, जबकि ऋण देने और निवेश की रफ्तार में कमी आ रही है।' सर्वेक्षण में कहा गया है, 'अब समय आ गया है कि इसे हल करने के लिए अगल दृष्टिकोण अपनाया जाए। इसलिए एक केंद्रीकृत पारा का गठन किया जाएगा, जो कर्ज घटाने के सबसे मुश्किल मामलों पर फैसला करेगी और राजनीतिक रूप से कठिन निर्णय लेगी।'
सर्वेक्षण में बताया गया है, 'इस समय भारत के एनपीए का स्तर किसी भी अन्य उभरती अर्थव्यवस्था से अधिक है, जिसमें रूस एक अपवाद है। इससे बैंकों की हालत खस्ताहाल है, जिससे वे जरूरी क्षेत्रों को भी कर्ज नहीं दे पा रहे हैं। इनमें प्रमुख रूप से छोटे व मझोलो उद्योग (एमएसएमई) शामिल हैं। ऐसी स्थिति पिछले दो दशकों में कभी नहीं आई थी।'
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