इंसान गरीब पैदा हुआ, यह उसकी किस्मत हो सकती है, लेकिन वो हमेशा गरीब ही रह जाय ये जरूरी नहीं है। क्योंकि उसके कर्म उसको कहीं भी पहुंचा सकते हैं। ऐसी ही एक कहानी के बारे में हम आपको बताने जा रहे हैं। जब बचपन में ही पिता के निधन के बाद मां ने मेहनत मजदूरी कर अपने चार बच्चों को पाला। अब उस मां का बेटा 128 करोड़ की कंपनी का मालिक है।
ये है भगवान गवई की कहानी
अभावों में पैदा होने के बावजूद मां-बाप ने अपने इस बेटे का नाम भगवान रखा। भगवान भी भगवान का साथ देते रहे और आज वो करोड़ों की कंपनी खड़ा करने में सफल हो गए। भगवान जब बहुत छोटे थे तभी उनके पिता की असमय मृत्यु होने से घर-परिवार की सारी जिम्मेदारी उनकी मां पर आ गयी।
मां ने मेहनत-मजदूरी कर अपने चार बच्चों, दो बेटों और दो बेटियों की मूलभूत ज़रूरतों को पूरा करना शुरू किया। एक समय हालात इतने खराब हुए कि दो जून रोटी का इंतज़ाम करना भी बहुत ही मुश्किल हो गया था।
महाराष्ट्र के सिंदखेड़ में जन्मे भगवान गवई का बचपन बेहद गरीबी में गुज़रा। पिता बेलदार थे और मां भी खेतों में मजदूरी करती थी। पिता की मौत के बाद भगवान गवई की मां को मुंबई के कांदिवली इलाके में महिंद्रा एंड महिंद्रा की एककंस्ट्रक्शन साइट पर काम मिल गया। जिंदगी की इस मार की वजह से दो तीन साल तक बच्चों की पढ़ाई छूट गई थी। बाद में उन्हें कांदिवली के ही म्यूनिसिपल स्कूल में भर्ती करवाया लेकिन कुछ ही दिनों बाद साइट का काम पूरा हो गया और इस परिवार का घर और काम दोनों छूट गए।
मां मुसीबतों से पार पाते हुए करती रही मजदूरी
इसके बाद मां को दूसरी जगह काम मिल गया। काम के लिए इस बार मां को मुंबई से दूर महाराष्ट्र के ही रायगढ़ जिले के खोपोली जाना पड़ा। यहां पर स्टील का प्लांट बनाया जा रहा था। यहां पर भगवान गवई की मां और उनके बड़े भाई को काम मिल गया। मां और बड़े भाई दोनों मजदूरी कर रहे थे भगवान गवई की पढ़ाई नहीं छूटी और वे पांचवीं क्लास में पहुंच गए। इसके बाद रत्नागिरी में भगवान गवई के परिवार को सरकारी अस्पताल, स्कूल, ऑफिस बनाने की साइट पर काम मिला। रत्नागिरी में काम की कमी नहीं रही और अगले चार साल तक वे सब वहीं रहे।
ऐसा रहा भगवान का सफर
1978 में भगवान गवई ने अखबार में एक विज्ञापन देखा। विज्ञापन था विश्वविख्यात कंपनी लार्सेन एंड टूब्रो (L&T) में नौकरी का। विज्ञापन देखकर भगवान गवई ने नौकरी के लिए अप्लाई कर दिया। उन्हें नौकरी मिल गयी, नौकरी की वजह से आर्थिक तंगी मिटने लगी, लेकिन भगवान गवई ने नौकरी के साथ-साथ अपनी पढ़ाई जारी रखी। 1982 में हिंदुस्तान पैट्रोलियम कार्पोरेशन लिमिटेड (एचपीसीएल) ने एससी-एसटी कोटे में भर्ती करने की मुहिम चलाई। भगवान गवई मैनेजमेंट ट्रेनी चुन लिए गए। उधर वे बैंक की परीक्षा भी पास कर चुके थे, लेकिन उन्होंने बैंकिंग सैक्टर में न जाकर पैट्रोलियम इंडस्ट्री में आने का फैसला लिया जो आगे जाकर उनके जीवन का सबसे अहम और सही फैसला साबित हुआ।
सरकार के कदम से मिला भगवान को फायदा
राष्ट्रीयकरण की हवा के चलते सरकार ने पैट्रोलियम सेक्टर में कदम रखा और इस कंपनी की मालिक बन गई। इस अहम बदलाव से भगवान गवई जैसे कई दलित युवाओं को लाभ पहुंचा। 1985 में एचपीसीएल ने भगवान गवई को आईआईएम कोलकाता में मैनेजमेंट की पढ़ाई करने के लिए भेजा। यह तीन महीने का एक्ज़ीक्यूटिव ट्रेनिंग प्रोग्राम था जिससे भगवान गवई का आत्मविश्वास बहुत बढ़ गया। सरकारी कंपनी में उनके जातिगत भेदभाव का शिकार भी होना पड़ा था।
नौकरी में विवाद भी हुआ
विवादों के चलते भगवान ने भारत में सरकारी नौकरी छोड़ दी और बहरीन चले गए। बहरीन में कैलटेक्स ऑइल जॉइन मेंउन्हें एचपीसीएल से 20 गुना ज़्यादा सैलरी मिल रही थी। इसी दौरान भगवान गवई ने मां से सब्जी बेचने का काम छुड़वा दिया और गांव में ज़मीन खरीदकर मां और भाई को खेती करने भेज दिया तथा खुद बहरीन चले गए।
सात साल में उन्हें तीन प्रमोशन मिले और उनकी सैलरी ढाई गुना हो गई। फिर दुबई में एमिरेटस नेशनल ऑइल कंपनी (इनोक) की नई रिफाईनरी से उन्हें डबल सैलरी का ऑफर आया और वे दुबई चले गए। यहां भगवान गवई का काम इनोक रिफाईनरी से दुनिया-भर में तेल भेजने का था। इसी दौरान उनकी मुलाक़ात बकी मोहम्मद से हुई जिनसे भगवान गवई इनोक के लिए जहाज़ किराये पर लेते थे। बकी ने उनसे कहा कि अगर वे इतनी अच्छी तरह से ऑइल की ट्रेडिंग कर लेते हैं तो अपना काम क्यों नहीं शुरू कर लेते? अनपढ़ बकी खुद केवल हस्ताक्षर करना जानते थे, लेकिन फिर भी अपना बिज़नेस करते थे। उनसे प्रेरणा लेकर भगवान गवई ने बिज़नेस की दुनिया मेंकदम रखने का निर्णय लिया।
बिजनेस में धोखा भी मिला
साल 2003 में भगवान गवई ने बकी के साथ मिलकर बकी फुएल कंपनी की शुरुआत की। इसमें उनका शेयर 25 प्रतिशत था। बकी की मार्केट में अच्छी जान-पहचान थी, इस वजह से तेल का कारोबार शुरू हो गया। दोनों पार्टनर रिफाईनरी से तेल खरीदकर दुनिया-भर में बेचते थे। कारोबार अच्छी तरह चल रहा था तभी बकी की मां का निधन हो गया और उन्होंने कारोबार समेट लिया। फिर कज़ाकिस्तान में एमराल्ड एनर्जी नामक कंपनी के मालिक ने यही काम भगवान गवई को अपने साथ करने का ऑफर दे दिया और एक-डेढ़ साल में शेयर देने का वादा भी किया। मेहनती और होनहार भगवान गवई की मेहनत रंग लाई और साल 2008 तक इस कंपनी का टर्न ओवर 400 मिलियन डॉलर तक पहुंच गया। लेकिन शेयर देने के वक़्त कंपनी का मालिक मुकर गया, इससे आहत होकर भगवान गवई ने फैसला किया कि अब वे अपनी कंपनी शुरू करेंगे।
कारोबार बढ़ता गया
इस समय भगवान गवई की मलेशिया में भी दो और कंपनियां हैं, जो ऑइल और कोयले की खरीद-फरोख्त करती हैं। इसके अलावा उनकी मैत्रेयी डेवलपर्स और बीएनबी लॉजिस्टिक्स में भी हिस्सेदारी है। मैत्रेयी डेवलपर्स दलितों की दोस्ती या मैत्री से बनी है जिसे 2006 में 50 लाख दलितों ने एक-एक लाख लगाकर 50 लाख के निवेश के साथ शुरू की थी। इसमें सब बराबर के भागीदार हैं। कंपनी फिलहाल मेन्यूफ़ेक्चरिंग का काम करती है और आगे चलकर उनका इरादा इस कंपनी की ज़मीन बेचकर दूसरे बिज़नेस में लगाने का है।