'मशरूम लेडी' का अनोखा स्टार्टअप, उत्तराखंड से रोक रहा युवाओं का पलायन

भारत के इस पहाड़ी राज्य की कहानी इसके जन्म लेने के समय से ही बिखरने लगती है। हम बात कर रहे हैं उत्तराखंड की, साल 2000 में उत्तर प्रदेश से अलग होकर अलग राज्य बना उत्तराखंड। इस राज्य की विडंबना ये है कि तब से लेकर आज तक करीब 20 लाख लोग गांवों को छोड शहरों की तरफ पलायन कर चुके हैं।
इस राज्य में गांवों से जब एक तरफ लोग पलायन कर रहे हैं, उसी समय एक शिक्षित लड़की गांव में जाकर अपना एक र्स्टाटअप खोलती है और सलाना लाखों कमा रही है। हम बात कर रहे हैं उत्तराखंड में मशरूम लेडी के नाम से मशहूर दिव्या रावत की। मूलत: देहरादून की रहने वाली दिव्या रावत आज बड़े-बड़ों को रोजगार के हुनर सीखा रही है। दिव्या को अभी हाल ही में राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने नारी शक्ति पुरस्कार से सम्मानित किया है।
मशरूम उत्पादन में नई संभावनाएं
मशरूम उत्पादन के क्षेत्र में महारत हासिल कर चुकी दिव्या ने 35 से 40 डिग्री तापमान में मशरूम उत्पादन कर इस क्षेत्र में रोजगार की नई संभावनाओं को जन्म दिया है। जबकि आम धारणा यही है कि मशरूम उत्पादन कम तापमान (20 से 22 डिग्री) में ही संभव है। दिव्या का घर न सिर्फ मशरूम की प्रयोगशाला है, बल्कि सीखने वालों के लिए किसी उच्च कोटि के संस्थान से कम नहीं। जहां वह सीखने वालों को न सिर्फ प्रेक्टिकल ज्ञान देती हैं, बल्कि थ्योरी भी समझाती है।
नोएडा से प्राप्त की उच्च शिक्षा
एएमआईटीवाई विश्वविद्यालय नोएडा से बीएचडब्ल्यू में उच्च शिक्षा और इसके बाद इग्नू से सोशल वर्क में मास्टर डिग्री लेने के बाद दिव्या ने करीब तीन वर्ष तक दिल्ली में एक संस्थान से दूसरे संस्थान में नौकरी करने के बाद अपना काम करने की ठानी। वर्ष 2012 में शुरू हुआ दिव्या का यह सफर आज सौम्या फूड प्राइवेट लिमिटेड कंपनी के रूप में खड़ा है। एक ऐसी कंपनी जो कई लोगों को रोजगार देने के साथ सालाना लाखों के टर्नओवर तक पहुंच चुकी है। इससे पूर्व दिव्या में डिपार्टमेंट ऑफ हॉर्टिकल्चर, डिफेंस कालोनी, देहरादून से एक हफ्ते का मशरूम उत्पादन का प्रशिक्षण प्राप्त किया।
फौजी अफसर स्व तेज सिंह रावत की इस बेटी का आज मोथरोवाला क्षेत्र में एक तीन मंजिला मकान है। जिसमें पहली और दूसरी मंजिल में वह अपना मशरूम प्लांट चलाती है। इस प्लांट में वर्ष भर में तीन तरह का मशरूम उत्पादित किया जाता है। सर्दियों में बटन, मिड सीजन में ओएस्टर और गर्मियों में मिल्की मशरूम का उत्पादन किया जाता है। बटन एक माह, ओएस्टर 15 दिन और मिल्की 45 दिन में तैयार होता है। मशरूम के एक बैग को तैयार करने में 50 से 60 रुपये लागत आती है, जो फसल देने पर अपनी कीमत का दो से तीन गुना मुनाफा देता है।
पलायन रोकना चाहती हैं दिव्या
दिव्या चाहती हैं पढ़े-लिखे नौजवान रोजगार के लिए पलायन न कर अपना काम करें। चूंकि वह मशरूम उत्पादन के क्षेत्र में है, इसलिए वह इस क्षेत्र में आने के लिए खासकर युवाओं को प्रेरित करती हैं। दिव्या सप्ताह में एक दिन अपनी गाड़ी में मशरूम की ट्रे रखकर शहर के अलग-अलग इलाकों में रोड शो कर लोगों को मशरूम के बारे में बताती हैं। इसके अलावा सोशल साइट पर एक बड़ी कम्यूनिटी उसने तैयार कर ली है, जो इस काम को कर रही है। दिव्या के पास दूसरे प्रदेशों से भी लोग ट्रेनिंग के लिए आते हैं। सौम्या फूड प्रोडक्शन प्राइवेट लिमिटेड के 80 प्रतिशत मशरूम की खपत निरंजनपुर सब्जी मंडी देहरादून में हो रही है, बाकी का मशरूम लोकल बाजारों और दिल्ली स्थित आजादपुर मंडी में जाता है।
गांव की महिलाओं को बनाया आत्मनिर्भर
दिव्या ने मोथरोवाला स्थित अपने घर में सौ बैग से काम शुरू किया था। जल्दी ही मेहनत के बल पर उसने रफ्तार पकड़ ली। इसके बाद प्रदेश में 2013 की आपदा आ गई। तब दिव्या ने अपने पैतृक गांव कंडारा, चमोली गढ़वाल जाकर महिलाओं को मशरूम का प्रशिक्षण देकर उन्हें स्वावलंबी बनाने की ओर हाथ बढ़ाया। दिव्या ने गांव में खाली पड़े खंडहरों और मकानों में ही मशरूम उत्पादन शुरू किया। इसके अलावा कर्णप्रयाग, चमोली, रुद्रप्रयाग, यमुना घाटी के विभिन्न गांवों की महिलाओं को इस काम से जोड़ा। दिव्या बताती हैं उस समय प्रशिक्षण प्राप्त बहुत सी महिलाएं आज भी इस काम में लगी हैं।
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