दुनिया न देख पाने वाली दिखाती हैं लोगों को दुनिया

लगभग हर किसी को सैर सपाटे में दिलचस्पी होती है, इंसान नई-नई जगहों पर जाता है तो वहां की संस्कृति और खूबसूरती को देखता और समझता है। आजकल तो कहीं घूमने जाने से पहले ही आपको ऐसे ट्रैवल एजेंट मिल जाएंगे जो आपको हर तरह की सुविधाएं जाने से पहले ही मुहैया करा देंगे।
ऐसी ही एक कंपनी दिल्ली में काम करती है जो ये सभी काम करती है। अब आप कहेंगे तो इसमें नया क्या है? और बताने वाली बात क्या है? तो रुकिए जनाब हम बताते हैं क्या है इस ट्रैवल एजेंसी की खासियत...
नहीं देख पाते हैं यहां काम करने वाले सभी कर्मचारी
चौंक गए न! दिल्ली के लक्ष्मीनगर इलाके से संचालित इस कंपनी का सारा काम एसिड अटैक से दृष्टिबाधित महिलाएं करती हैं। नियुक्ति से लेकर, प्रेजेंटेशन तैयार करने और ग्रुप्स को टूर पर ले जाने तक के सभी काम वे ही करती हैं। अब तो वे कुरियर गिफ्ट भी तैयार करने लगी हैं।
टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक इस कंपनी को चलाने वाले आकाश भारद्वाज बताते हैं कि ये महिलाएं अपना लैपटॉप एक सॉफ्टवेयर JAWS (job access with speech) की मदद से अपना सारा काम करती हैं। उन्होंने स्मार्टफोन भी इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है और पिछले महीने 20-25 अपॉइंटमेट फिक्स किए और दो टूर भी फाइनलाइज किए।
कैसे बनी ये कंपनी
करीब एक साल पहले आकाश भारद्वाज दिवाली के मौके पर शॉपिंग कर रहे थे तभी तभी उनकी नजर पड़ी अपने करीब खड़ी एक नेत्रहीन महिला पर जो गुब्बारे बेच रही थी। महिला के गोद में एक बच्चा भी था। उस महिला के साथ एक दर्दनाक घटना घट चुकी थी। महिला के पड़ोसी ने उस पर तेजाब से हमला किया था। जिसके बाद उसकी आंखें चली गई। इस घटना के बाद से उसके ऊपर आफतों का पहाड़ टूट पड़ा। पहले नौकरी चली गई फिर पति छोड़ कर चला गया।
भारद्वाज ने जब उस महिला से पूछा कोई नौकरी क्यों नहीं कर लेती तो उस महिला ने कहा जिस औरत को मुंह देखकर निकाल दिया, उसको कौन नौकरी देगा? बस यहीं से भारद्वाज को एक लक्ष्य मिल गया।
इसके बाद भारद्वाज ने एक स्टार्ट-अप शुरू किया। उन्होंने एक ट्रैवल फर्म 'खास' लॉन्च की और साथ-साथ एक गिफ्ट कूरियर फर्म 'खास उपहार' की स्थापना की। सबसे बड़ी बात ये है कि दोनों फर्म दृष्टिबाधित महिलाएं ही चलाती हैं। भारद्वाज की योजना है कि वह दो महीने में एसिड अटैक की 4 पीड़ित महिलाओं को रोजगार दे सकें। भारद्वाज एक कंसल्टिंग कॉरपोरेटर ट्रेनर हैं और साथ ही साथ एक फ्रीलांस ट्रैवल एजेंट भी हैं। उन्होंने इस एंटरप्राइज को शुरू करने के लिए अपनी बाइक और पत्नी के गहने बेच दिए। वर्तमान में कंपनी में 5 महिलाएं कमलेश, दीप्ति, प्रेमा और निर्मल कम कर रही हैं और ये सभी दृष्टिबाधित हैं।
क्या कहती हैं वहां काम करने वाली महिलाएं
अगर वहां कम कर रही महिलाओं की शैक्षणिक स्तर की बात करें तो एक एंप्लायी अर्चना गृह विज्ञान में मास्टर्स है। जब वह 23 साल की थी तो इलाज में लापरवाही की वजह से ब्रेन ट्यूमर ऑपरेशन के दौरान उसकी आंख की रोशनी चली गई। कमलेश जामिया यूनिवर्सिटी से पॉलिटिकल सायंस से पोस्ट ग्रजुऐट हैं। इसी तरह प्रेमा डीयू से ओपन लर्निंग से बीए थर्ड ईयर की पढ़ाई कर रही है। दीप्ति भी पॉलिटिकल सायंस से एमए है। जबकि निर्मल 8 साल की बच्ची की मां है और उसके पति की मौत हो चुकी है।
इन सभी महिलाओं का कहना है कि वें ऑफिस में आकर काम करने, साथ रहने और नए-नए लोगों से मिलकर खुश हैं। इनमें से कुछ महिलाएं हॉस्टल में रहती हैं क्योंकि इनका परिवार यहां नहीं रहता है।
फिलहाल इनका ऑफिस ईस्ट दिल्ली के लक्ष्मीनगर इलाके में है। जहां वे चौथी मंजिल पर काम करते हैं। लेकिन यहां दृष्टिबाधित महिलाओं को सीढ़ियां चढ़ने में दिक्कत होती है। इसलिए ये टीम फिलहाल ग्राउंड फ्लोर पर ऑफिस की खोज में है।
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