चार्टेड एकाउंटेंट की नौकरी छोड़ ये युवा बना रहा वर्मी कम्पोस्ट

प्रतीक बजाज उत्तर प्रदेश के बरेली जिले के रहने वाले हैं। पढ़ाई में तेज तर्रार प्रतीक ने चार्टेड एकाउंटेंट की पढ़ाई की। उसके बाद वह अपने पिता के बिज़नेस को आगे बढ़ाने वाले थे, लेकिन उन्होंने ऐसा न करके किसानों के लिए वर्मी कंपोस्ट खाद बनाने लगे। उन्होंने अपने इस प्रोडक्ट का नाम 'ये लो खाद' रखा। इस वर्मीकंपोस्ट किसानों इनकम डबल होने लगा।
दो साल पहले शुरू किया काम
2015 का वक्त था उस समय प्रतीक सिर्फ 19 साल के थे। बारहवीं की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने सीए बनने के लिए पहली सीढ़ी यानी सीपीटी की परीक्षा पास की। उसके बाद वे सीए की पढ़ाई में लग गए। वहीं प्रतीक के बड़े भाई ने डेयरी फार्म का काम शुरू किया था और डेयरी का काम आगे बढ़ाने के लिए वे कृषि विज्ञान केंद्र से ट्रेनिंग ले रहे थे। प्रतीक ने भी वहीं से वर्मीकंपोस्ट बनाना सीख लिया।
उसके बाद उन्होंने सीए की पढ़ाई छोड़कर वर्मी कम्पोस्ट बनाने के काम में लग गये। इससे न सिर्फ उनकी अच्छी खासी इनकम होने लगी साथी ही किसानों का भी फायदा हुआ। प्रतीक के भाई के डेयरी फार्म से जो गाय और भैंस का गोबर निकलता था वो बेकार चला जाता था। उसका सामान्य तरीके से ही खेतों में इस्तेमाल होता था। उन्हें लगा कि इसको वर्मीकंपोस्ट में तब्दील करके खाद का अच्छा इस्तेमाल करने के साथ ही पैसे भी बनाये जा सकते हैं।
वैज्ञानिकों की मदद से वर्मीकंपोस्ट के बारे में और रिसर्च की
प्रतीक ने बेहतर और ज्यादा प्रोडक्शन के लिए आईवीआरआई इज्जतनगर के वैज्ञानिकों की मदद से वर्मीकंपोस्ट के बारे में और रिसर्च की। जिससे वर्मीकंपोस्ट को और बेहतर बनाने का प्रयास किया। उन्होंने अपनी पहली वर्मीकंपोस्ट बेची तो घर वालों को लगा कि प्रतीक ये बिजनेस अच्छे से कर सकता है। प्रतीक बताते हैं,कि अगर वे दिन में 10 घंटे की पढ़ाई करके सीए बनते तो शायद उन्हें इतनी खुशी नहीं मिलती, लेकिन अब वे अपने खेतों और प्लांट में 24 घंटे लगे रहते हैं और ऐसा करने से उन्हें बेइंतहा खुशी मिलती है। साथ ही वे ये भी कहते हैं, कि जिस काम में आपका मन लगे, जो आपको खुशी दे, वही काम आपको करना चाहिए।
प्रतीक ने अपने पूरे सात बीघे खेत में वर्मी कंपोस्ट तैयार करना शुरू कर दिया है। उसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। वह कचरा प्रबंधन के साथ-साथ उसे खाद में कैसे बदला जाए, इस पर भी काम कर रहे हैं। प्रतीक मंदिर में पूजा के बाद बेकार हो जाने वाली पूजन सामग्री और फूल, घर में खराब हो जाने वाली सब्जी और चीनी बनाने के बाद निकले कचरे से खाद बनाने का काम कर रहे हैं। धीरे-धीरे प्रतीक ने वर्मीकंपोस्ट के जरिए आर्गेनिक खेती भी शुरू कर दी। अब वे जानवरों के मूत्र में नीम की पत्ती मिलाकर खेतों में छिड़काव करते हैं और रासायनिक खाद का बिलकुल भी इस्तेमाल नहीं करते हैं।
फसल को भी कोई नुकसान नहीं होता
वह किसानों को बिलकुल फ्री में वर्मीकंपोस्ट और और्गेनिक खेती करने के बारे में ट्रेनिंग देते हैं। प्रतीक के इस नेक काम से किसानों की काफी बचत हो रही है। पहले जहां किसान हर एकड़ में रासायनिक खाद और कीटनाशक पर 4500 रुपये खर्च करते थे, वहीं अब उन्हें सिर्फ 1,000 रुपये खर्च करने पड़ते हैं और इससे खेत की जमीन के साथ ही फसल को भी कोई नुकसान नहीं होता है। ऑर्गेनिक तरीके से उगाए गए गेहूं और चावल का दाम सामान्य तरीके से रासायनिक खाद और कीटनाशक का प्रयोग कर उगाए गए गेहूं से अधिक दाम मिलते हैं। प्रतीक अब अपना प्रोडक्ट नोएडा, गाजियाबाद, शाहजहांपुर, बरेली और यूपी के तमाम जिलों में बेचने का प्रयास कर रहे हैं। प्रतीक ने जिस तरह से बिज़नेस के साथ-साथ किसानों को आगे बढ़ाने का काम किया है। उनकी लगन देश के उन तमाम युवाओं को प्रेरित कर रही है, जो बिजनेस के साथ लोगों की भलाई करने का सपना देखते हैं।
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