यूपी के लिए 'UP' योगी

आशुतोष शुक्ला, सीनियर प्रोड्यूसर, न्यूज 18
यूपी में 2022 की बिसात बिछनी शुरू हो गई है। सहूलियत की सियायत में सारी पार्टियां एक दूसरे से आगे निकलने की होड़ में हैं। कोई चुनाव से ठीक पहले अपनी पार्टी छोड़कर दूसरी पार्टी में अपना राजनीतिक भविष्य देख रहा है, तो कई माननीय अपनी पार्टी में अनदेखी बताकर विरोधी पार्टियों के दफ्तर के चक्कर काट रहे हैं। समाजवादी पार्टी के सुप्रीमो अपना सियासी कुनबा बढ़ाने को लेकर दिन रात एक किए हैं। इसके लिए वो बुआ की पार्टी के बागियों पर लगातार डोरे डाल रहे हैं। वहीं, बीएसपी मुखिया मायावती भी कोरोना काल में ट्वीट पॉलिटिक्स से सूबे की सियासत में अपनी सियासी उपस्थिति दर्ज कराती रहती हैं। जिससे कहीं समाजवादी पार्टी और बीजेपी कहीं ये ना समझ लें कि, चुनावी चौसर में मुकाबला सिर्फ उन्हीं दोनों के बीच है।
कोरोना पर विजय पाती योगी सरकार
लेकिन पिछले एक महीने की बात करें तो सबसे ज्यादा सुर्खियों में सत्ताधारी बीजेपी रही। वो भी कुछ खास वजहों से। सियासी गलियारों में ये बात कई बार गूंजी कि, यूपी बीजेपी में ऑल इज नॉट वेल है। विपक्ष से लेकर कुछ समाचार पत्रों और चैनलों ने खूब चटकारे लेकर खबर दिखाई कि, यूपी में नेतृत्व परिवर्तन हो सकता है। ऐसे में देश के सबसे लोकप्रिय मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को लेकर सोशल मीडिया पर भी सवाल पूछा जाने लगा कि, आखिर यूपी में अगर योगी नहीं तो कौन। कभी बीजेपी विधायकों की नाराज़गी की खबर वायरल हुई तो कभी नवनिर्वाचित MLC और गुजरात कैडर के पूर्व IAS अधिकारी एके शर्मा को योगी सरकार में बड़ी जिम्मेदारी मिलने की खबर ने लोगों की जिज्ञासा बढ़ाई। इसी बीच दिल्ली में यूपी को लेकर संघ और मोदी सरकार के बीच बड़ी बैठक हुई और उसके कुछ दिन बाद ही राष्ट्रीय संगठन मंत्री बीएल संतोष और यूपी बीजेपी प्रभारी राधामोहन सिंह ने लखनऊ में 3 दिन तक डेरा डाल दिया। कहने को तो बीजेपी ने इसे रुटीन प्रक्रिया बताया गया। लेकिन राजनीति में हर बात कही नहीं जाती। वैसे भी बीजेपी को संकेतों की सियासत में महारत हासिल है। मीडिया के बड़े बड़े संपादक कयास ही लगाते रहे कि, किन किन मुद्दों पर बैठक में चर्चा हुई। लेकिन सही सटीक खबर निकल कर बाहर नहीं आई। ये बीजेपी के अंदर के अनुशासन को दिखाता है। डिप्टी सीएम हों या कैबिनेट मंत्री, संगठन के पदाधिकारी हों या प्रवक्ता, विधायक हों या सांसद सभी से बीएल संतोष और राधामोहन सिंह ने सरकार और संगठन के बारे में फीडबैक लिया। संगठन और सरकार के तालमेल को भी परखा। लेकिन बीजेपी से बाकी दलों को सीखने वाली बात है कि, एक भी नेता ने बैठक के अंदर किन बातों पर चर्चा हुई, इसकी भनक मीडिया को नहीं लगने दी। सभी रुटीन कहकर मीडिया को बहलाते रहे, लेकिन राजनीति की समझ रखने वाले सभी लोग जानते थे कि, आखिर डिजिटल युग में 3 दिन तक किस बात का फीडबैक लिया गया।
इस बैठक से कुछ बातें छनकर जरूर बाहर आईं। जैसे – जनप्रतिनिधियों की आम शिकायत थी कि, अधिकारी उन्हें गंभीरता से नहीं लेते। और उनके आदेश या सुझाव की अनदेखी करते हैं। कई नेताओं ने अपनी पीड़ा बताई कि, वो जैसे समाजवादी पार्टी की सरकार में खुद को उपेक्षित महसूस करते थे। वैसे अपनी सरकार में भी उनकी कहीं सुनवाई नहीं होती। एक नामी अखबार ने सूत्रों के हवाले से छापा कि, दोनों में से एक डिप्टी सीएम ने संगठन मंत्री और प्रभारी से यहां तक कह दिया कि, वो उनके आगे से डिप्टी हटा दें तो हर चीज कंट्रोल में आ जाएगी और अगली बार बीजेपी 300 पार का करिश्मा फिर से दोहराएगी। हालांकि, इस बात का प्रमाण किसी के पास नहीं है। लेकिन एक बात तय है कि, अगर ऐसी ही बैठक किसी दूसरी पार्टी की होती तो कई नाराज नेता प्रेस कॉन्फ्रेंस में अपना गला साफ करते नजर आते। लेकिन यही बीजेपी की मजबूती है। बड़े से बड़ा नेता खुद को सिर्फ पार्टी का साधारण कार्यकर्ता बताता ही नहीं है। सार्वजनिक मंचों पर वैसा बर्ताव भी करता है और यही कारण रहा कि, कथित अंदरूनी मनमुटाव और थोड़ी बहुत खींचतान के बावजूद एक भी आधिकारिक बयान उसकी पुष्टि नहीं कर सका। बहरहाल, लखनऊ में जो 3 दिन तक मंथन चला। उसकी रिपोर्ट दिल्ली में बीएल संतोष ने बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा को सौंपी। उस रिपोर्ट पर फिर अमित शाह और पीएम मोदी के बीच मंथन हुआ। इसी बीच सोशल मीडिया पर एक बार फिर तेजी से ये खबर वायरल हुई कि, पीएम मोदी और सीएम योगी में वैचारिक मतभेद चल रहे हैं। हालांकि, इसका प्रमाण किसी के पास नहीं था। न्यूज चैनल और समाचार पत्रों ने बहुत हिम्मत करके प्रश्नवाचक चिन्ह और विस्मयादिबोधक हथियार का इस्तेमाल करते हुए कुछ खबर दिखाने और छापने की हिम्मत दिखाई। लेकिन फिर बीजेपी की मजबूत नींव ने मीडिया को ऐसी मसालेदार खबरों से दूर कर दिया और पार्टी के प्रवक्ता ऑल इज वेल बताते रहे। जो शायद था या नहीं भी। दोनों के बीच कथित वैचारिक मतभेद की खबर के बीच फिर ट्विस्ट आया। जब सीएम योगी के जन्मदिन के मौके पर ट्विटर पर पीएम मोदी, अमित शाह, जेपी नड्डा ने उन्हें शुभकामनाएं नहीं दीं। आमतौर पर ट्वीट शिष्टाचार के तहत सभी बड़े नेता एक दूसरे को विश करते हैं। लेकिन इस बार इस संयोग को सियासी बताया गया। हालांकि, मैनेज करने के लिए ये बात सामने आई कि, फोन पर बधाई दी गई थी।

यूपी बीजेपी और केंद्र में कथित अनबन की जो कई थ्यौरी मीडिया से लेकर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म तक तैर रहीं थीं। उनमें एक थ्यौरी कॉमन थी कि, गुजरात कैडर के पूर्व IAS और पीएम मोदी के बेहद करीबी एके शर्मा सो कॉल्ड टेंशन की वजह हैं। इन थ्यौरी के मुताबिक, केंद्र खास तौर पर पीएम मोदी और अमित शाह योगी मंत्रिमंडल में उन्हें मजबूत भूमिका में देखना चाहते थे। लेकिन सीएम योगी के पास पहले से दो डिप्टी होने की वजह से उनका सियासी स्पेस मंत्रिमंडल में बनता नहीं दिख रहा था। मंत्रिमंडल में उनकी संभावित एंट्री पर ये दलील दी जा रही थी कि, अगर यूपी में ब्यूरोक्रेट्स और सरकार के बीच तालमेल नहीं बन पा रहा है। तो एके शर्मा के लंबे प्रशासनिक अनुभव का इस्तेमाल करते हुए ब्यूरोक्रेसी और सरकार के बीच बेहतर तालमेल बनाया जा सकेगा। इसी बीच उन्हें पीएम के संसदीय क्षेत्र वाराणसी और आस पास के कोविड मैनेजमेंट का जिम्मा मिला। जिसे उन्होंने बखूबी निभाया। हालांकि, उनके डिप्टी सीएम की अटकलों पर तब विराम लग गया, जब यूपी बीजेपी में उन्हें उपाध्यक्ष बना दिया गया। चूंकि, बीजेपी में एक पद, एक व्यक्ति का कॉन्सेप्ट है। इसलिए अब उनके इस मंत्रिमंडल में शामिल होने पर करीब करीब विराम लग गया है।
मोदी में कुछ तो बात है, विपक्ष को सियासत के गुर उनसे सीखने चाहिए
माना जा रहा है कि, सीएम योगी के 2 दिन के दिल्ली दौरे पर इन्हीं बातों पर मंथन हुआ होगा। जिससे बीजेपी इन बातों से ऊपर उठकर 2022 के मिशन में पूरी शिद्दत से जुट सके। हमेशा चटकारे वाली खबरों के इंतजार में रहने वाले खबरिया चैनलों ने योगी के दिल्ली दौरे पर भी बहुत कयास लगाए कि, पहले दिन उनकी पीएम मोदी से मुलाकात नहीं हो सकी। साथ ही अमित शाह और जेपी नड्डा से मुलाकात के बाद सीएम योगी ने ट्वीट किया कि, समय देने के लिए बहुत बहुत आभार। आमतौर पर इससे पहले ऐसी भाषा नहीं देखी गई थी। खैर इस बार भी बीजेपी ने मीडिया को कोई मसाला नहीं दिया।
'हमें बीमारी से लड़ना है, बीमार से नहीं'

एक महीने में लखनऊ में राष्ट्रीय संगठन मंत्री बीएल संतोष और राधामोहन सिंह के दूसरे दौरे ने फिर बीजेपी में उथल पुथल की खबर वायरल होने लगी। 21, 22 और 23 जून को यूपी बीजेपी में फिर महामंथन हुआ। जिसमें 2022 के रोडमैप पर चर्चा हुई। साथ ही मोदी मंत्रिमंडल के संभावित विस्तार में यूपी के कुछ सांसदों को जगह मिल सकती है। इस पर भी विस्तार से बात हुई। वहीं, हाल ही में कांग्रेस से मोहभंग के बाद बीजेपी में शामिल हुए पूर्व केंद्रीय मंत्री जितिन प्रसाद को एडजस्ट करने पर भी चर्चा हुई। जितिन प्रसाद के आने से बीजेपी को प्रत्यक्ष रूप से तो बहुत फायदा होता नहीं दिख रहा। लेकिन राजनीति में परसेप्शन बहुत मायने रखता है। वो राहुल गांधी की कोर टीम का लंबे समय तक हिस्सा रहे। साथ ही ब्राह्मण वोटर्स को मैसेज देने के लिए जितिन की एंट्री अहम बताई जा रही है। उन्हें यूपी में प्रियंका गांधी की सक्रियता को देखते हुए भी आगे किया जाएगा। जिससे वो राजनीतिक हमले कर प्रियंका को असहज कर सकें।
वहीं, लखनऊ में महामंथन के दौरान पीएम मोदी के पंचायत से पार्लियामेंट तक बीजेपी के सपने को साकार करने का स्केच भी खींचा गया। क्योंकि, जिस तरह पंचायत चुनाव में सत्ताधारी बीजेपी को समाजवादी पार्टी ने पटखनी दी। उससे एक बार फिर अखिलेश यादव को बैठे बिठाए सियासी संजीवनी मिल गई। सभी जानते हैं कि, अखिलेश ने कोरोनाकाल में पंचायत चुनाव को ज्यादा गंभीरता से नहीं लिया था। लेकिन कुछ जगह स्थानीय बीजेपी नेताओं की गुटबाजी से अखिलेश को फायदा मिला। तो कुछ जगह कथित एंटी इनकंबेंसी से एसपी की सीटें बढ़ीं। इसके पीछे राजनीति के जानकार बताते हैं कि, बंगाल चुनाव में जिस तरह पीएम मोदी और सीएम योगी ने कोरोनाकाल में रैलियां कीं। उससे जनता के बीच गलत मैसेज गया और विपक्ष इस बात को जनता के बीच बार बार बताने में कामयाब रहा कि, बीजेपी को आपकी फिक्र नहीं है। सूत्रों से खबर है कि, सीएम योगी भी बंगाल चुनाव में अपनी रैलियों को लेकर सहज नहीं थे। क्योंकि, उस दौरान यूपी में कोरोना से मौत का आंकड़ा लगातार बढ़ रहा था। यहां तक कि, सीएम खुद पॉजिटिव हो गए थे। लेकिन सीएम ने पंचायत चुनाव के नतीजों और आंतरिक सर्वे को अलार्मिंग सिचुएशन के रूप में लिया। और जिस दिन उनकी कोरोना रिपोर्ट निगेटिव आई, उसी दिन से उन्होंने ग्राउंड जीरो पर जाकर स्वास्थ्य व्यवस्थाओं का मुआयना शुरू कर दिया। उन्होंने एक दिन में कभी 2 ज़िले कभी 3-3 जिलों का दौरा कर जनता को संदेश दिया कि, उनका परिवार यूपी की 24 करोड़ जनता ही है। इसलिए वो संकट के समय हर तरह से परिवार के साथ हैं।
राजनीतिक विश्लेषक बताते हैं कि, यूपी में जिस तरह योगी आदित्यनाथ ने काम किया है। उससे उन्हें दोबारा सत्ता के सिंहासन पर बैठने से कोई रोक नहीं सकता क्योंकि, सीएम योगी ने मायावती सरकार की प्रशासनिक सख्ती से काफी बड़ी लाइन खींच दी है। वहीं, अखिलेश सरकार में जिस तरह भ्रष्टाचार के आरोप लगते थे। उस तस्वीर को भी सीएम योगी ने अपनी खास काम करने की शैली से पलटकर रख दिया है। वहीं, क्राइम कंट्रोल में भी आंकड़े सीएम योगी के पक्ष में नजर आते हैं। और एक बात भी साफ हो गई है कि, कम से कम यूपी में बीजेपी में उनके बराबर के सियासी कद का दूसरा कोई नाम नहीं है। लेकिन पहले डिप्टी सीएम केशव मौर्य और उसके बाद कैबिनेट मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्या ने ये कहकर सवाल खड़ा कर दिया कि, केंद्रीय नेतृत्व तय करेगा कि, चुनाव में सीएम का चेहरा कौन होगा। जबकि, यूपी के पूर्व सीएम और रक्षामंत्री राजनाथ सिंह साफ कह चुके हैं कि, यूपी में योगी नहीं तो कौन। बहरहाल बीजेपी भी ये बात बखूबी जानती है कि, अगर 2024 में दिल्ली में बीजेपी सरकार की हैट्रिक लगानी है तो उसके लिए 2022 में यूपी फतेह करना बेहद ज़रूरी है। क्योंकि, इतिहास बताता है कि, दिल्ली का रास्ता यूपी होकर ही जाता है। शायद बीजेपी भी इसीलिए लगातार मंथन कर रही है कि, कैसे 22 में लखनऊ में दोबारा भगवा परचम लहराया जाए। खैर अब ये तो कुछ महीनों बाद ही तय होगा कि, बीजेपी के लिए यूपी में योगी कितने उपयोगी साबित होंगे।
(ये लेखक के अपने निजी विचार हैं।)
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