देश की राजनीतिक पार्टियों को चंदा देने की शुरुआत आप कब करेंगे?

साल 2019 आपका इंतजार कर रहा है। नए साल में सभी अपनी तरफ से कोशिश करते हैं कि पुरानी बातों को भुलाकर कुछ नई शुरुआत की जाए। और ये शुरुआत किसी और के लिए नहीं बल्कि खुद के लिए ही होनी चाहिए है। ऐसी ही कुछ नई कहानी आप भी लिख सकते हैं, जो पूरा सच हो। कहानी के पात्र आप होंगे और ज्यादा बढ़िया तरीके से लिखने के लिए आप इसमें दूसरे लोगों को भी शामिल कर सकते हैं। इस कहानी की शुरुआत आप राजनीतिक पार्टियों को चंदा देकर कर सकते हैं।
जो राजनीति हमें सबसे ज्यादा प्रभावित करती है, उसके लिए हमारा क्या योगदान है?
किसी भी पार्टी को दिए जाने वाले चंदे की क्या अहमियत है, आइए अब उसकी बात करते हैं। भारतीय लोकतंत्र की खासियत है कि कई राजनीतिक पार्टियां, कई राजनीतिक विचार हैं, कई विचारधाराएं हैं। उन राजनीतिक पार्टियों को पसंद करने वाले लोग भी है। कुछ लोग इन बातों को खुलकर जाहिर करते हैं तो कुछ नहीं करते। पर लोकत्रंत हर राजनीतिक पार्टी और हर विचारधारा के साथ चलता है और उससे चाहते और न चाहते हुए भी लोग प्रभावित होते हैं। भारतीय लोकतंत्र आज 69 साल का हो चुका है और कुछ दिन बाद 70 साल का भी हो जाएगा। पर जो राजनीति हमें सबसे ज्यादा प्रभावित करती है, उसके लिए हमारा क्या योगदान है? अगर उसके बारे में हम सोचेंगे तो बस चुनाव के समय वोट देने के अलावा हमारे पास ऐसी कोई बात भी बताने के लिए नहीं होगी कि हमने खुद भारतीय राजनीति को साफ सुधरा और पारदर्शी बनाने के लिए क्या किया।
जनता के प्रति उनकी जवाबदेही बढ़ेगी
तो अगर आप खुद चाहते हैं कि राजनीतिक पार्टियां की आपके प्रति और ज्यादा जवाबदेही तय हो, तो आप भी राजनीतिक पार्टियों को चंदा देना शुरू कर सकते हैं। इस शुरूआत में और लोगों को भी आप अपने साथ जोड़ सकते हैं। अगर लोग बड़ी संख्या में राजनीतिक पार्टियों को चंदा देना शुरू करेंगे तो राजनीतिक पार्टियां जनता के द्वारा दिए गए रुपयों से चुनाव लड़ेंगी और ऐसी परिस्थिति में जनता के प्रति उनकी जवाबदेही बढ़ेगी। अभी 120 करोड़ से ज्यादा की जनसंख्या वाले देश भारत में कुछ चुनिंदा लोग ही राजनीतिक पार्टियों को चंदा देते हैं और राजनीतिक दल जब उन लोगों के रुपयों से चुनाव लड़ती हैं तो भविष्य में नीतियां बनाते समय उन चुनिंदा लोगों के फायदे को ध्यान में रखते हैं। इस दशा और दिशा दोनों को बदलने की जिम्मेदारी आप पर है।
राजनीतिक पार्टियों के प्रत्याशी जनता से हैं, न कि जनता उनसे
अभी होता क्या है कि चुनाव में एक प्रत्याशी चुनाव लड़ने के लिए करोड़ो रूपये खर्च कर देते हैं और वो पैसा उन्हें कौन देता है किसी को नहीं पता। चुनाव आयोग ने एक प्रत्याशी के चुनाव लड़ने पर खर्च सीमा को भी तय किया है। पर हर बार चुनावों में अप्रत्यक्ष तौर से उससे ज्यादा पैसा एक प्रत्याशी खर्च कर देता है। ये जो ज्यादा खर्च प्रत्याशी की तरफ से किया जाता है, उसकी भरपाई आने वाले सालों में जनता को ही करनी पड़ती है। कहीं अवैध निर्माण होते हैं, कहीं जमीनों पर कब्जा, कहीं पर सड़क नहीं होती और कहीं पर पीने का साफ पानी नहीं मिलता। ये परिस्थिति तब ही बदलेगी जब आप राजनीतिक पार्टियों को चंदा देकर उनपर दबाव बनाएंगे और खुद संगठित होकर इस बात के लिए तैयार करेंगे कि राजनीतिक पार्टियों के प्रत्याशी जनता से हैं, न कि जनता उनसे।
लोकसभा चुनावों में 50-60 हजार करोड़ रुपये खर्च हो सकते हैं
एक न्यूज रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2019 के लोकसभा चुनावों में 50-60 हजार करोड़ रुपये खर्च हो सकते हैं जबकि साल 2014 के लोकसभा चुनावों में यह खर्चा करीब 35,000 करोड़ रुपये था। कर्नाटक विधानसभा चुनाव में करीब 10 हजार करोड़ रुपये का खर्चा हुआ जो कि वर्ष 2013 में हुए चुनावों की तुलना में करीब दोगुना ज्यादा था। वर्ष 2012 से 2016 के बीच में राजनीतिक पार्टियों को जितना भी चंदा मिला, उसमें से 89 फीसदी फंडिंग कॉरपोरेट घरानों ने की है। वर्ष 2016-17 में देश की छह राष्ट्रीय पार्टियों को हुई कुल फंडिंग में से 46 फीसदी अज्ञात स्रोत से हुई है। ये कुछ आंकड़े अगर आपको परेशान नहीं करते हैं तो आपके परेशान होने की जरूरत है। क्योंकि आखिर इतना पैसा चुनावों में क्यों खर्च हो रहा है और ये पैसा कौन दे रहा है। इस बारे में पूरी तरह से चुनाव आयोग को भी नहीं पता है। ऐसे में आम जनता की ओर से पॉलिटिकल फंडिंग करना जरूरी हो जाता है। अगर जनता फंडिंग करेगी तो मजबूरन राजनीतिक पार्टियों पर एक दबाव होगा कि जनता के लिए काम करने वाले प्रत्याशियों का चयन किया जाए। साथ ही उन प्रत्याशियों के चुनाव लड़ने के लिए भी राजनीतिक पार्टियां फंडिंग भी करेंगी।
पांच साल तक अपना सिर नोंचते रहेंगे
अगर आप पॉलिटिकल फंडिंग नहीं करेंगे तो चुनावों में टिकटों के बिकने का सिलसिला जारी रहेगा। प्रत्याशी करोड़ो रुपये खर्च करते रहेंगे। कोई जीते या कोई हारे, आप पांच साल तक अपना सिर नोंचते रहेंगे और फिर पांच साल बाद एक दिन वोट देकर राजनीति के सुधरने की उम्मीद लिए जिंदगी काटते रहेंगे। फैसला आपको ही करना है राजनीति को बदलने के लिए उसमें प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से योगदान करना है या फिर सिर्फ आलोचना के भरोसे ही राजनीति के स्वच्छ और पारदर्शी होने के ख्वाब देखने हैं।
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