पार्टियों की छोड़िए, एक बार उत्तर प्रदेश को वोट कीजिए!

उत्तर प्रदेश में फिर चुनावी समर के लिए रणभेरी बज चुकी है। मैदान सज चुका है और उत्तर प्रदेश की किस्मत का फैसला होने में दो महीने से भी कम वक्त बचा है। 11 फरवरी से चुनाव शुरू होंगे और एक महीने बाद ठीक 11 मार्च को उत्तर प्रदेश की किस्मत का पिटारा खुल जाएगा।
अब यहां चर्चा के दो सिरे हो सकते हैं। एक यह कि यहां सरकार किसकी बनेगी और दूसरा यह कि उत्तर प्रदेश को क्या हासिल होगा। दुख इस बात का है कि दशकों से राजनीतिक बहसें तो जनता और प्रदेश को केंद्र में रखकर की जाती हैं, लेकिन प्रदेश के बनने या बिगड़ने से किसी को कोई मतलब नहीं होता।
पार्टी को उनके रिपोर्टकार्ड पर कसें
करीब 15 साल बाद उत्तर प्रदेश के बाद एक मौका है अपनी किस्मत का फैसला करने का। यह वह मोड़ है, जब प्रदेश अपनी तकदीर का फैसला किसी सियासी झगड़े या वादे को ध्यान में रखकर नहीं बल्कि यह सोचकर करे कि उसके वर्तमान को कौन संवार सकता है। समाजवादी पार्टी, कांग्रेस, बहुजन समाज पार्टी और भारतीय जनता पार्टी को उनके वादों पर नहीं, बल्कि उनके रिपोर्टकार्ड पर कसना होगा और तय करना होगा कि प्रदेश के लिए किसे चुना जाए।
देश के सबसे बड़े प्रदेश को अगर उसका हक नहीं मिल पाया है तो उसके लिए कोई और नहीं बल्कि मतदाता ही जिम्मेदार हैं। इससे पहले कि आप अपनी राय बनाएं, कुछ बातें हम बता देते हैं। कुछ आंकड़े भी दे देते हैं। आपको राय बनाने में थोड़ी मदद मिलेगी और मुमकिन है कि पिछले कुछ दशकों से चली आ रही रवायत टूटेगी और उत्तर प्रदेश को ऐसा नेतृत्व मिलेगा, जो जनसेवक की तरह काम करे।
यूपी में महिलाओं की हालत बहुत बुरी
महिलाओं से शुरुआत करते हैं। सृष्टि की जननी ही अगर कष्ट में है, तो सृष्टि कैसी होगी इसकी कल्पना करना आपके लिए मुश्किल नहीं है। जरा सोचिए, क्या प्रदेश की महिलाओं को स्वस्थ समाज, बेहतर कानून व्यवस्था, स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा और सुरक्षा की जरूरत नहीं है? जरा सोचिए, एक मां अपनी बेटी को क्या सिखाएगी जब वह खुद जिंदगीभर घुट-घुट कर गली-बाजारों में डरी-सहमी सी नजरें झुकाए चलती रही हो?
यह भी सोचिए कि आपने अपने जिन बच्चों को जी जान लगाकर, अपनी हड्डियां गलाकर पढ़ाया हो कि एक दिन वो जरूर साहब बन जाएगा, क्या उसे रोजगार का अधिकार नहीं मिलना चाहिए। जिस प्रदेश में रोजगार के नाम पर सिर्फ भत्ते बांट दिए जाएं, उसमें युवाओं को क्या आत्मसम्मान मिल पाएगा? जिस प्रदेश में गली-गली में गुंडे और मवालियों का कब्जा हो, वहां के बच्चे कैसे निडर होकर आगे बढ़ सकेंगे? जिस प्रदेश में हर सरकारी दफ्तर के बाहर भ्रष्टाचार का अदृश्य बोर्ड टांग दिया गया हो, वहां कैसे ईमानदार लोग जी सकेंगे?
क्या आपको नहीं लगता कि अब वक्त आ गया है कि प्रदेश सियासी पार्टियों के भविष्य के लिए नहीं बल्कि अपनी आकांक्षाओं के लिए सरकार बनाए? जरा सोचिए, क्या प्रदेश को स्मारकों और पार्कों से ज्यादा स्कूलों और अस्पतालों की जरूरत नहीं है? जरा सोचिए, क्या प्रदेश को एक्सप्रेस वे से ज्यादा जिलों और कस्बों की बेहतर सड़कों की जरूरत नहीं है? वोट डालने से पहले यह भी सोचिएगा कि जो नेता हिंदू और मुसलमान, दलित और पिछड़ा बताकर वोट मांग रहे हैं, उनकी नीयत प्रदेश बनाने की है या सिर्फ आपको बांटकर वोट कमाने की।
बेरोजगारी चरम पर
प्रदेश में बेरोजगारी चरम पर है, महिलाओं के खिलाफ अपराधों में उत्तर प्रदेश देश में अव्वल है। औद्योगिक विकास में प्रदेश 14वें नंबर पर है। हत्या, अपहरण और दंगों के मामले में भी आपके प्रदेश ने देश के बाकी सभी प्रदेशों को पीछे छोड़ दिया है। देश को सबसे ज्यादा प्रधानमंत्री देने वाले प्रदेश को जब यादव सिंह जैसे भ्रष्ट अफसरों, आत्महत्या कर रहे किसानों, गरीबी में जिंदगी बसर कर रहे परिवारों के लिए जाना जाने लगे तो इससे बड़ी त्रासदी और क्या होगी।
अब आप मतदाताओं को यह तय करना है कि विकास का दामन थाम कंधे से कंधा मिलाकर चलना है या फिर गुंडे और भ्रष्ट नेताओं के साथ घिसटते जाना है। आपके सामने कुछ ऐसे नेता भी हैं जो रोज ही देश को उज्जवल भविष्य की राह पर ले जाने के लिए दिन रात एक करके काम कर रहे हैं। भ्रष्टों और बेइमानों के खिलाफ आंदोलन छिड़ा है, बच्चियों से लेकर दिव्यांगों तक सबका ख्याल रखा जा रहा है। इस सरकार पर ढाई साल के दौरान एक भी भ्रष्टाचार का केस नहीं है। अब फैसला आपके हाथ में है, क्योंकि भविष्य भी आपका है।
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