बहानों के रेगमाल से कश्मीर में राजनीति चमकाने की नाकाम कोशिश
किसी की राजनीति चमक रही है, तो कोई बहानों के रेगमाल से अपनी राजनीति चमकाने में जुटा है। कभी मंदिर-मस्जिद के नाम पर, कभी आतंकवाद के नाम पर तो कभी आम नागरिकों की समस्या सुलझाने के ढोंग के नाम पर। बहानों का ऐसा ही एक रेगमाल इन दिनों पीडीपी नेता महबूबा मुफ्ती और उमर अब्दुल्लाह लिए घूम रहे हैं। अमरनाथ यात्रियों की सुरक्षा में लगाई गई सेना से वहां के नागरिकों को क्या परेशानी हो रही है, यह चर्चा का विषय हो सकता है लेकिन सबसे ज्यादा उमर और महबूबा खिसिया रहे हैं। हाइवे पर हाय तौबा मचाए हुए हैं।
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अमरनाथ यात्रियों की सुरक्षा में तैनात सैनिक
ऐसा मैं कश्मीर से हजारों किलोमीटर दूर बैठकर नहीं बल्कि उस पूरे सुरक्षा घेरे से गुजरने और वहां के आम नागरिकों से मिलने के बाद कह रहा हूं। यह सच है कि अमरनाथ यात्रियों की सुरक्षा को देखते हुए सुरक्षा बेहद कड़ी है। सेना की कॉनवाई जहां से भी गुजरती है, वहां आस-पास का ट्रैफिक रोक दिया जाता है। इन सबके बावजूद आम नागरिकों में इस प्रक्रिया से गुजरने में किसी तरह की कोई परेशानी नहीं नजर आती है। अगर परेशान हैं तो कश्मीरियों के हितों की रक्षा करने वाली छद्म रूहें। ऐसा इसलिए कहा जाना जरूरी है क्योंकि जिन लोगों से मैं मिला, जितने लोगों से बात की, उनमें से किसी के भी माथे पर कश्मीर में तैनात सुरक्षाकर्मियों को लेकर शिकन नहीं थी। अमरनाथ यात्रा से लौटते हुए काज़ीकुंड में जब साथ में आए लोग ड्राईफ्रूट्स लेने के लिए उतरे मैं भी हाथ में पश्मीने की शॉल लिए मंज़ूर से बात करने पहुंच गया। मंजूर कहते हैं कि धंधे में मंदी और तेजी तो लगी रहती है।
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हां, यह सच है कि जब हालात खराब हो जाते हैं तो दुकानें बंद होने की वजह से नुकसान उठाना पड़ता है। हर बार सेना को हम अपने धंधे में घाटे के लिए दोष नहीं दे सकते। एक समय था जब बिजनेस में तेजी थी। पहलगाम जाने वाले सभी यात्री इसी रोड से होकर गुजरते थे लेकिन कश्मीर-कन्याकुमारी हाईवे बनने से अब यहां वही लोग आते हैं, जिन्हें यह पता है कि काज़ीकुंड में उन्हें अच्छे और सस्ते ड्राईफ्रूट्स मिल सकते हैं। बाकी राज्य सरकार और लोकल पुलिस के बारे में भी मंज़ूर बहुत कुछ बताना चाहता था पर कुछ तो था जो उसे रोक रहा था। मैंने भी उसे बताने के लिए ज्यादा जोर नहीं डाला क्योंकि कुछ चीजें अनकही ही छोड़ दी जाएं तो ही अच्छा है। शायद फिर किसी मोड पर यह कहानी पूरी हो। जब कोई और बहानों के रेगमाल से अपनी राजनीति चमकाने की कोशिश कर रहा होगा। तब तक कश्मीर की इस तस्वीर का मजा लीजिए या वक्त बेवक्त कश्मीर हो आइए। हालात इतने भी बुरे नहीं हैं, जितना हमारी आंखों को दिखाया और कानों को सुनाया गया है।
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