बाल श्रम निषेध दिवस: कब मासूम काम छोड़कर देख पाएंगे सपने
बाल श्रम के खात्मे के लिए आज पूरी दुनिया में बाल श्रम निषेध दिवस मनाया जा रहा है। बाल श्रम निषेध दिवस पर श्रमिक संगठन, स्वयंसेवी संगठन और सरकारें बालश्रम को कम करने के लिए इस दिवस पर तमाम उत्सव-आयोजन कर रही है। सरकारें बाल श्रम को समाप्त करने के लिए बड़े-बड़े वादे करती हैं। लेकिन इसके बावजूद भी बाल श्रम रुक नहीं पा रहा है। आज भी भारत में 1.01 करोड़ से अधिक से बाल श्रम काम में लगे हैं। यह आंकड़े बताते हैं कि हर भले ही बाल श्रम को करने की प्रतिज्ञा ली जाती हो, लेकिन इसके बाद भी मासूम काम के बोझ तले दबे हुए हैं। बता दें बाल मजदूरी के खिलाफ जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से और 14 साल की उम्र के कम बच्चों को इस काम से निकालकर उन्हें शिक्षा दिलाने के उद्देश्य से इस दिवस की शुरुआत साल 2002 में 'द इंटरनेशनल लेबर ऑर्गनाइजेशन' की ओर से की गई थी।
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भारत में इतने बच्चे बाल श्रम को मजबूर
दुनिया की बात दूर बालश्रम निषेध को लेकर नोबल पुरस्कार जीतने वाले कैलाश सत्यार्थी के देश में ही स्थिति बहुत ही भयावह है। यहां पर बाल श्रम को लेकर व्यापक आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं। भारत में अंतिम बार साल 2011 में हुई जनगणना के अनुसार, भारत में 5 से 14 साल के 25.96 करोड़ बच्चे है। इसमें से 1.01 करोड़ बच्चे बाल श्रम करने को मजबूबर है। हालांकि साल 2001 के मुकाबले बाल श्रम में 5 फीसद गिरावट हुई है। 2011 में भारत में महज 3.9% बालश्रम ही रह गए है। गिरावट की यह दर संयुक्त राष्ट्र सतत विकास लक्ष्य को पूरा करने में नाकाफी है। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) के अनुसार आज भी दुनियाभर में लगभग 15.2 करोड़ बच्चे बाल श्रम के लिए मजबूर हैं।
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आज भी सात से आठ करोड़ बच्चे अनिवार्य शिक्षा से वंचित
बाल श्रम को कम करने के लिए वर्षों से काम कर रही कैलाश सत्यार्थी की संस्था बचपन बचाओ आंदोलन की रिपोर्ट कहती है कि आज भी भारत में सात से आठ करोड़ बच्चे अनिवार्य शिक्षा से वंचित है। शिक्षा से वंचित बच्चों में संगठित रैकेट का शिकार होकर बाल मजदूरी के लिए मजबूर किए जाते हैं। इसके अलावा करोड़ों बच्चे गरीबी के कारण स्कूल का मुंह नहीं देख पाते। यही नहीं सैकड़ों बच्चों को उनके अभिभावक ही अपने काम में मदद के लिए बच्चों को स्कूल नहीं भेज रहे हैं। यही नहीं हर साल हजारों बच्चों की तस्करी भी एक राज्य से दूसरे राज्यों में हो रही है। इसके अलावा आज भी बच्चों की बाल मजदूरी और बाल वेश्यावृत्ति के लिए खरीद फरोख्त हो रही है। यही वजह है कि आज भी करोड़ों बच्चे सरकार की लाख कोशिशों के बाद भी वंचित नहीं है।
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बाल श्रम कानून और सरकार का रवैया
बाल श्रम कानून को बनने हुए वर्षो हो गए है, लेकिन उसका वास्तव में पालन नहीं हो रहा है। आज भी जब बाल श्रम के उन्मूलन की बात आती है, तो सरकार से लेकर नीति निर्माता तक एक ही राग अलापते हैं कि जब तक गरीबी नहीं मिटती, तब तक बाल मजदूरी भी खत्म नहीं होगी। लेकिन, हकीकत कुछ और ही है। गरीबी भले ही एक हो सकती है, लेकिन बच्चों को बेहतर अवसर न मिलने की वजह से वह बाल श्रम करने पर मजबूर हो रहे हैं। आज भी बच्चों की अशिक्षा इसकी एक बड़ी वजह है। बच्चों को सरकारी स्कूलों में ही गुणवत्तापूर्ण शिक्षा न मिलने के कारण बच्चे बाल मजदूरी करने को मजबूर है। आज भी बच्चे स्कूल की बजाय खेत-खलिहान, कल-कारखानों, घरों, मकानों, होटलों, ढाबों में मजदूरी कर रहा होगा, तो निश्चित रूप से वह एक अशिक्षित नागरिक भी बन रहा होगा। उनकी अशिक्षा की वजह से उनकी आने वाली अगली पीढ़ी भी बाल मजदूर और निरक्षर हो रही है। बाल मजदूरी का गरीबी और अशिक्षा से त्रिकोणात्मक संबंध है।
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