SORRY MSD! इससे अच्छा तो आप संन्यास ही ले लेते...

आज से कुछ साल बाद आप धोनी को किस तरह याद करेंगे या करना चाहेंगे? एक बेहतर विकेटकीपर, एक बेहतर फिनिशर, एक बेहतरीन खिलाड़ी या एक बेहतर कप्तान? आपका तो पता नहीं लेकिन मैं तो धोनी को सबसे पहले एक बेहतर कप्तान मानता हूं। इसके पीछे मेरी अपनी सोच और वजहे हैं, और मैं धोनी के कप्तानी छोड़ने के फैसले से निराश हूं!
अपने क्रिकेट करियर की तरह भले ही धोनी ने कप्तानी छोड़कर सबको चौंका दिया हो पर इसके पीछे की जो कहानी है वो पच नहीं रही है। बताया जा रहा है कि धोनी ने कप्तानी इसलिए छोड़ी क्योंकि वो अभी टीम इंडिया के लिए और खेलना चाहते हैं और बल्लेबाजी पर ध्यान देना चाह रहे हैं। यही बात सचिन ने कप्तानी छोड़ने के समय कही थी, सचिन जो केवल रन बनाने के लिए ही पैदा हुए थे तो उनका फैसला सही भी था। लेकिन धोनी जो कप्तानी करने के लिए ही पैदा हुआ हो, वो बल्लेबाजी के लिए कप्तानी छोड़ दे ये बात कुछ जमी नहीं।
धोनी संन्यास लेकर एक विकेटकीपर को भी तो मौका दे सकते थे!
15 जनवरी से टीम इंडिया अपने घरेलू मैदान पर इंग्लैंड के खिलाफ वनडे सीरीज खेलने जा रही है। धोनी इस सीरीज में करीब 76 दिन बाद मैदान पर उतरने वाले थे। उसके ठीक पहले कप्तानी छोड़ने का फैसला यह दिखा रहा है कि उन पर काफी दबाव था। धोनी पिछले 10 मैचों में केवल 55 रन बना पाए थे जबकि इन मैचों के दौरान उनकी कप्तानी में भारत ने 5 मैच जीते, 4 हारे और एक मैच बेनतीजा रहा। मतलब कि यहां भी उनका बतौर कप्तान प्रदर्शन अच्छा था न कि बतौर बल्लेबाज। ये बात ठीक है भविष्य के कप्तान (जो विश्व कप में करेगा) के लिए धोनी ने कप्तानी छोड़ी, तो धोनी को टीम में रहने की जरूरत ही क्या थी? जब उनकी बल्लेबाजी लगातार खराब ही हो रही है। क्या धोनी को संन्यास लेकर युवा विकेटकीपर/बल्लेबाज को मौका नहीं देना चाहिए था? जो कि टीम की सबसे बड़ी समस्या है।
कहीं राजनीति के शिकार तो नहीं हो गए धोनी?
धोनी के इस फैसले की जानकारी बीसीसीआई ने ट्वीट करके दी। इस सिलसिले में न तो धोनी की तरफ से कोई बयान आया और न ही बोर्ड के किसी सदस्य ने प्रेस में आकर ये बात कही। बीसीसीआई के पुराने 'खेल' और पूर्व में सीनियर खिलाड़ियों को लेकर रवैये के बाद तो इस बात का संदेह होने लगता है कि धोनी बोर्ड की अंदरूनी राजनीति के शिकार हुए हैं। ऐसा तो नहीं बोर्ड के पास धोनी को उनकी खराब बल्लेबाजी की वजह से टीम से निकालने के बीच में उनकी कप्तानी आड़े आ रही थी! इसलिए उनसे पहले कप्तानी ली गई।
क्या धोनी अगला विश्वकप खेल पाएंगे?
जिस तरह धोनी की बल्लेबाजी अभी है, उसके हिसाब से तो 2018 में होने वाले टी20 और 2019 में होने वाले विश्वकप में खेलना मुश्किल ही है। ये तो आप भी मानते होंगे धोनी अब उतने बड़े फिनिशर रहे नहीं, जितने की वो पहले हुआ करते थे। हाल ही में टीम इंडिया ने कई ऐसे मैच हारे हैं जिसमें धोनी अंत तक बल्लेबाजी करते रहे। तो क्या यह मान लिया जाय कि आने वाले दिनों में हम एक 'लाचार' धोनी मैदान पर देखने वाले हैं! अगर ऐसा हुआ तो बहुत बुरा होगा, धोनी जिसका मतलब ही धुंआधार बल्लेबाजी हो गया था वो सिर्फ एक नाम बन कर रह जाएगा।
बतौर कप्तान धोनी के सफर पर एक नजर
महान बल्लेबाज सचिन तेंदुलकर के कहने पर चयनकर्ताओं ने धोनी को टीम की कमान सौंपी थी और धोनी ने सचिन की सिफरिश को शत प्रतिशत सही ठहराया। अपनी पहली परीक्षा में उन्होंने भारत का नाम इतिहास में दर्ज करा दिया। दक्षिण अफ्रीका में हुए पहले टी-20 विश्व कप में धोनी पहली बार भारतीय टीम का नेतृत्व कर रहे थे। धोनी ने जीत के सिलसिले को इस तरह शुरू किया कि टीम फाइनल में चिर-प्रतिद्वंद्वी पाकिस्तान को हराकर विजेता बनकर लौटी।
इसके बाद धोनी जीत और कप्तानी की नई इबारत लिखते चले गए। टी-20 विश्व कप जीत के बाद राहुल द्रविड़ के एकदिवसीय में कप्तानी छोड़ने के बाद धोनी को टीम का कप्तान बनाया गया। धोनी ने इस प्रारूप में भी सफलता के नए आयाम लिखे। 2011 में भारतीय सरजमीं पर खेले गए 50 ओवरों के विश्व कप के फाइनल में धोनी ने छक्का लगाकर 28 साल बाद देश को विश्व कप खिताब दिलाया।
अनिल कुंबले ने टेस्ट में टीम की कप्तानी छोड़ी तो धोनी यहां भी जिम्मा लेने को आगे खड़े थे। नवंबर, 2008 में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ खेली गई सीरीज के चौथे टेस्ट मैच में धोनी को टीम की कमान सौंपी गई। टेस्ट में भी धोनी ने टीम को पहली बार नंबर-1 बनाया।
धोनी भारत के इकलौते ऐसे कप्तान हैं जिन्होंने आईसीसी के सभी आयोजनों में टीम को जीत दिलाई है। एकदिवसीय में धोनी ने कुल 199 मैचों में टीम का नेतृत्व किया। दुनिया के सर्वश्रेष्ठ फिनिशर माने जाने वाले धोनी ने टीम को कप्तान रहते कुल 110 मैचों में जीत दिलाई जबकि 74 मुकाबलों में उन्हें हार मिली। चार मुकाबले टाई और 11 मैचों का कोई परिणाम नहीं निकला।
धोनी को क्रिकेट इतिहास में करिश्माई कप्तान भी कहा जाता है। क्रिकेट के मैदान पर उन्होंने कई बार ऐसे जोखिम उठाए जिसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी। उन्होंने 72 टी-20 मैचों में टीम की कमान संभाली और 41 जीत टीम को दिलाई और 28 हार का सामना किया। एक मैच टाई और दो मैचों का परिणाम नहीं निकला। वह टी-20 में सबसे ज्यादा मैचों में कप्तानी करने वाले खिलाड़ी हैं। टी-20 में कप्तान रहते उन्होंने 122.60 के स्ट्राइक रेट से 1112 रन बनाए।
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