... एक साथ तीन तलाक को तलाक

मुस्लिम ख्वातीनों को बधाई ! चाय गिर जाने, कपड़े ठीक से प्रेस न करने, पलटकर जवाब देने, दारू के नशे में चिखना लाने में देरी जैसे टुच्चे मुद्दों पर अकड़ू शौहर मियां एक बार में बीवी को तलाक नहीं दे सकेंगे । एसएमएस, मोबाइल फोन, फेसबुक और सोशल मीडिया के जरिए भी एक झटके में तलाक नहीं हो सकेगा ।
तीन तलाक ऐसा मुद्दा है जिसको लेकर बहुत ज्यादा भ्रम है। यह सबसे ज्यादा न समझे जाने वाला मुद्दा है । सुप्रीम कोर्ट के फैसले का असर क्या होगा । पहली बात तो यह जान लें कि फैसले से तलाक पर कोई रोक नहीं लगी है । फर्क यह आया है कि एक सांस में, एक बार में तीन तलाक नहीं दिया जा सकेगा । कोई हजरत अपनी बीवी को तलाक देने पर आमादा ही है तो उसे तकरीबन तीन महीने लगेंगे ।
तीन तलाक पर रोक बहुत बड़ी राहत
दरअसल पुरुषों का ब्रह्मास्त्र माने जाने वाले तीन तलाक को एक बार में इस्तेमाल करने से रोके जाने पर ही महिलाएं जश्न मना रही हैं । इसी से समझा जा सकता है कि तीन तलाक से मुस्लिम महिलाएं कितनी खौफ खाती थीं। इसलिए एक बार में तीन तलाक पर रोक बहुत बड़ी राहत है ।
अब निकाह के नीलोफर जैसी दास्तां नहीं लिखी जाएगी। मानव स्वभाव है बहुत बार गुस्से में आकर कोई अतिवादी कदम उठा लेता है और बाद में पछतावा भी करता है । एक बार में तीन तलाक पर पछतावा करने वाले शौहरो को अपनी गलती सुधारने का पूरा मौका देगा। कोई तीन महीने तक लगातार गुस्से में ही रहे ऐसे आपवादिक शख्स की बात छोड़ दें तो बहुतों का गुस्सा खत्म हो जाएगा और तलाक पर रोक लग सकेगी ।
कुरान शरीफ में तीन तलाक ही क्यों तलाक को ही सबसे बुरी चीजों मे से एक माना गया है । जब एक दूसरे के साथ निबाह करना नामुमकिन हो जाए तभी तलाक की बुराई का सहारा लेने की हिदायत दी गई है । लेकिन तीन तलाक का दुरुपयोग करने वालों ने कुरान की मूल भावना का अपमान ही किया है । फैसले से उस पर भी रोक लगेगी। सुप्रीम कोर्ट ने संसद को इस विषय पर छह महीने में कानून बनाने का निर्देश दिया है । इस निर्देश से घबराने की जरूरत नहीं है ।
हिन्दू कोड बिल जब आया तब भी मचा था बवाल
जब हिन्दू कोड बिल लाया गया था तब बड़ा भारी विरोध हुआ था । कानून को हिंदू धर्म में हस्तक्षेप मानकर पोंगा पंडितों ने खूब बावेला मचाया था । कट्टरपंथियों के विरोध को देखते हुए तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने कोड बिल पर दस्तखत करने के बजाय संसद को लौटा दिया था । बाद में कोड बिल को चार एक्ट में बांटकर अलग अलग पास करना पड़ा था। हिंदू विवाह अधिनियम बना तो उसमें हिंदू धर्म और परंपराओं का पूरा ध्यान रखा गया । परंपरागत सप्तपदी हिंदू विवाह अधिनियम की भी अनिवार्य शर्त है । अधिनियम में इसके अलावा समाज विशेष में चल रही पंरपराओं, मान्यताओं और रूढियो को भी मान्यता दी है । अलबत्ता, अधिनियम में कई चीजें पहली बार सामने आई थीं । हिंदू धर्म में ईसाई धर्म की तरह तलाक की मान्यता नहीं है । एक्ट ने पहली बार तलाक को मान्यता दी । इसी तरह बहु विवाह पर पहली बार अधिनियम के जरिए रोक लगाई गई थी ।
संसद में भविष्य में पारित होने वाला मुस्लिम विवाह अधिनियम कुरान शरीफ और समाज में प्रचलित मान्यताओं के अनुरूप ही होगा यह उम्मीद की जा सकती है। लेकिन तीन तलाक पर रोक लगाने के अलावा कुछ अन्य सुधार भी देखने को मिल सकते हैं ।
इस्लाम में कानून के कई सोर्स हैं । कुरान ( अल्लाह का प्रत्यक्ष आदेश ) और हदीस ( परिस्थिति विशेष में हजरत मोहम्मद साहब का आचरण सर्वमान्य और बाध्यकारी है । लेकिन जिन हालात की बाबत कुरान और हदीस में जिक्र नहीं मिलता उसमें इज्मा अर्थात विवेक के इस्तेमाल की इजाजत दी गई है । इज्मा के इस्तेमाल की इजाजत देना बताता है कि इस्लाम एक प्रगतिशील मजहब है लेकिन चंद कठमुल्लों ने इसे अपने स्वार्थ के लिए ऐसी छवि गढी है मानों इस्लाम प्रगतिवादी धर्म न होकर दकियानूसी तथा लकीर का फकीर बना रहने वाला मजहब है। इस गलत धारणा को तोड़ने का वक्त आ गया है ।
फैसले का स्वागत करें
फैसले को सियासत के चश्मे से न देखें । इसका खैरमकदम किया जाना चाहिए । एक बात और । चीफ जस्टिस केहर और मुस्लिम जज साहिबान ने तीन तलाक की हिमायत करके साबित किया है कि जजों में भी इस मुद्दे पर एक राय नहीं थी। फैसला बहुमत का है। लेकिन मुल्क की सबसे बड़ी अदालत के हर फैसले का ऐहतराम होना चाहिए ।
अमर उजाला के वरिष्ठ पत्रकार कुमार अतुल के फेसबुक वॉल से साभार
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